Quotes from “टेलीविज़न और क्राइम रिपोर्टिंग”
Page 4 (अपनी तरफ से) foreword
“यह मानना तर्कसंगत होगा कि घटनाओं के महासमंदर में टीवी कैमरा की बढ़ती भीड़ और तकनीक की फैलती ताकत ने अपराध ( और अपराधी के भी) आकार को भी पहले की तुलना में काफी बढ़ा दिया ह। उसकी अपील यूनिवर्सल होने लगी है, दायरा विस्तृत हुआ ह। लेकिन अगर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया तकनीक के उड़नखटोले पर सवार है तो शातिर अपराधी भी कम आधुनिक नहीं ह। ऐसे में सोचने की बात यह भी है की आपराधिक रिपोर्टिंग ने अपराध और अपराधी पर क्या वाकई अंकुश लगाया है या उसके लिए अपराध को सीखने के लिए ऐसी प्रयोगशाला खोल दी है जिसमे बिना किसी पूंजीगत निवेश के उसे अपराध को सफलता के साथ अंजाम देने के टिप्स मिलते रहते हैं? ऐसे सवाल का उठना इसलिए वाजिब है क्योंकि अब अपराध डराता नहीं है। वो स्वीकार-सा होने लगा ह। वो चौंकाता नहीं बल्कि ज़िन्दगी में रच- बस सा गया है। यह निस्संदेह सेहतमंद निशानी नहीं है।”
(Rajdeep’s quote) - (दो शब्द) foreword
“हाल के समय में अपराध टीवी न्यूज़ के बेलगाम चलते पहिये का अनिवार्य पहलु बन गया ह। अब चैनल प्राइम टाइम की कवरेज को पूरी तवज्जो देने के किये पूरे के पूरे कार्यक्रम ही बनाने लग गए हैं। इनमे से कई कार्यक्रम कंटेंट के बजाय सनसनी फैलाने और साफ़- सुथरी पत्रकारिता के नियमों का उल्लंघन करने के आरोपों का शिकार होते रहते हैं। लेकिन जब अपराध पत्रकारिता की बात होती है तो उसके आचार-विचार और मानक क्या हो सकते हैं, क्या पुलिस जो बताती है, उसे जयो का त्यों स्वीकार किया जा सकता है, क्या पुलिस में दर्ज की जा रही हर शिकायत खबर के लायक होती है, बाल- अपराधियों, बलात्कार पीड़ितों और तमाम ऐसे पीड़ितों, जिनकी पहचान नहीं बतानी चाहिए, को कैसे छिपाकर रखा जा सकता है, ये कुछ ऐसे सवाल है जिनसे जूझते हुए वर्तिका ने इस किताब को बाँधा है। ये जवाब अहम हैं क्योंकि ये पेचीदा हालत में एक पथ प्रदर्शक का काम कर सकते हैं। वैसे भी इन्हें टेलीविज़न में काम अहमियत दी गयी है। यह किताब प्रिंट के पत्रकारों के लिए भी बराबर रूप से उपयोगी साबित होगी क्योंकि इसमें पत्रकारिता के सिद्धांतो को समझने और परखने की कोशिश करती है।”
Page 39- Chapter- अपराध रिपोर्टर योग्यता और तैयारी
"टेलीविज़न के आने के बाद अपराध रिपोर्टिंग ने जल्द ही विशिष्टपूर्ण जगह हासिल कर ली। 90 के दशक से ही अपराध रिपोर्टिंग शीर्ष के काफी करीब आकर खड़ी दिखने लगी। खबरों के ताने-बाने में अपराध पर आधारित किस्सों का अनुपात काफी बड़ा है। इसकी एक बड़ी वजह यह है कि चौबीसों घंटे के न्यूज़ चैनल अकेले राजनीति के भरोसे अपना व्यापार नहीं चला सकते। जनता राजनीतिक गलियारे के बाहर की भी खबर जानना चाहती है। ऐसे में मीडिया यह महसूस करता रहा है कि अपराध में सस्पेंस, नाटक, हास्य, करुणा, विद्रूपता सहित वे तमाम अंश हैं जो दर्शक के लिए रोमांच और जिज्ञासा का कारण बन सकते हैं। कुल मिलाकर, अपराध को दिखाना मुनाफे का सौदा है।"
Page 40- Chapter- अपराध रिपोर्टर योग्यता और तैयारी
"जिस शहर में अपराध पत्रकारिता करनी हो, सबसे पहले उसके भूगोल, इतिहास, राजनीति, अर्थव्यवस्था जैसे तमाम कोणों को ठीक से जान लीजिए। फिर एक उम्दा जूता खरीदिए और कुछ दिनों तक शहर भर की ख़ाक छानिए। एक पर्यटक की तरह हर कोण को गहरी दिलचस्पी से देखिए। इससे आपको शहर की धड़कनों का अंदाजा हो जाएगा। उन तमाम जगहों पर जाने की कोशिश करिए जहाँ सबसे महत्वपूर्ण और सबसे कम महत्वपूर्ण लोग खाना खाते हैं या अलग-अलग बहानों से जमा होते हैं। इससे शहर के मिजाज से आपका सच्चा परिचय होने लगेगा। शहर से परिचित हों तो भी, शहर का एक नक्शा अपने पास रख लीजिए और जितना हो सके, घूमिए।"
Can come under introduction to crime reporting
Page 42– Chapter- अपराध रिपोर्टर योग्यता और तैयारी
“कई बारअपराध पर राजनीति की छाँव देखी जा सकती है। कई बार यह दोनों आपस में ऐसे गुंथे दिखते हैं कि यह समझना मुश्किल हो जाता है कि राजनीति में अपराध है या अपराध में राजनीति। इसलिए खबरों की खबर देने के लिए राजनीति के मिजाज को भी जानना चाहिए। वैसे भी भारतीय राजनीति में ऐसे कारनामों की फेहरिस्त काफी लंबी है, जिनमें राजनेता खुद ही अपराध के कटघरे में खड़े दिखाई दिए हैं। देश-विदेश की राजनीतिक सरगर्मियाँ समाज में पनप रहे अपराध को अनगिनत बार प्रभावित करती हैं। हत्या चाहे इंदिरा गांधी की हो, राजीव गांधी की हो या फिर फूलन देवी की, इन सभी घटनाओं ने राजनीति के गलियारों में विस्तार ले रहे मटमैलेपन को भी जाहिर किया। ऐसे में, अपराध और राजनीति के एक-दूसरे में दखल और आपसी आँख-मिचौली की जानकारी इस बीट को कवर करने के लिए विस्तृत परिप्रेक्ष्य दे सकती है।”
Page 42 – Chapter- अपराध रिपोर्टर योग्यता और तैयारी
“ज़माना नए मीडिया का है। नए ज़माने के अपराधी और आतंकवादी शिक्षित और तकनीक में पारंगत हैं। इसलिए, कई बार आतंकी लड़ाई एक संगठित अपराध के रूप में इंटरनेट पर दिखाई देती है। इसे साइबर आतंकवाद कहा जाता है। सरकार भी इस साइबर युद्ध के लिए लामबंद होने लगी है। इसलिए, दुनिया के कई देशों में साइबर सेनाएँ गठित कर दी गई हैं, जिनका काम इंटरनेटीय लड़ाई को बेदम करना है।”
Under cyber crime in types of crimes
Page 47,48– chapter- अपराध रिपोर्टर: योग्यता और तैयारी
Page 170– Chapter- इंटरव्यू, प्रेस कॉन्फ्रेंस और एंकरिंग
“इस पृथ्वी पर अनादिकाल से एक ही कहानी चल रही है जिस पर लेखक अपने-अपने ढंग से लिखते ह। यानी फार्मूला और आपकी प्रतिभा मिलकर ही एक सफल व्यवसायिक लेखक का सृजन करते हैं।”
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