Featured book on Jail

Workshop on Sound: Juxtapose pre-event: March 2024

Dec 29, 2022

2022: Yearend special on Media: वैकल्पिक मीडिया में है एक तिनका उम्मीद

‘जिस वैकल्पिक मीडिया की बात सबसे कम होती है, मुझे उसी में एक तिनका उम्मीद दिखाई दे रही है’

-डॉ. वर्तिका नंदा


मेरी नजर में मीडिया के लिए साल 2022 डर, अपराध, जेल, भ्रष्टाचार व शोर और उससे मिल सकने वाले मुनाफे का साल रहा। मीडिया ने साल की शुरुआत से लेकर अंत तक इन्हें भरपूर प्राथमिकता दी। अपराधों की नई किस्मों को परोसा। अपराध करने के नुस्खे-तरीके बताए और साथ में चलते-चलते अपराध की खबर भी बताई। पूरे साल कई बड़े नामों को जेल में जाते और जेल से बाहर आते हुए देखा गया। जेल में मालिश से लेकर जेल से रिहा हुए चार्ल्स शोभराज तक, टुकड़ों में गर्लफ्रेंड को काट देने वाले से लेकर काली कमाई के मामले में गिरफ्त में आए नामचीन लोगों तक मीडिया ऐसी तमाम खबरें ढूंढता रहा, जो उसे टीआरपी बटोरने में मदद करतीं। लेकिन, इनमें सामाजिक सरोकार नहीं था। विशुद्ध मुनाफा था। मीडिया कारोबार और मुनाफे से चिपका रहा। पूंजी में जान अटकी रही।

2022 गलतफहमियों में गुजर गया। ढेर सारे चैनलों के बीच में किसी एक पत्रकार की मजबूत छवि बनने का दौर कभी का चला गया। अब न ही जनता को बहुत सारे पत्रकारों के चैनल याद रहते हैं और न ही खुद उनके नाम। जो पत्रकार कुछ दिन तक टीवी पर नहीं दिखता, जनता उसका नाम भूलने लगती है। मतलब यह कि अब नाम गुमने लगे हैं। इसके बावजूद आत्ममुग्धता और गुमान के नकली संसार में जी रहे मीडिया को अपना अक्स देखने की फुर्सत अब तक नहीं मिली है। फिर पत्रकारों का वर्गीकरण भी हुआ है। स्टार एंकर-रिपोर्टरों को छोड़ दें तो बाकी की स्थिति में कोई बड़ा फेरबदल नहीं हुआ है। वे आज भी उतने ही लाचार हैं, जितने पहले थे। चैनलों को किसी के होने या न होने से लेशमात्र भी फर्क नहीं पड़ता। यह तबका संवेदना के लायक है, लेकिन उससे हमदर्दी करने वाले भी नदारद हैं।

वैसे नामों का गुम जाना इस बात को साबित करता है कि भीड़ में  जगह बनाना मुश्किल काम है। दूसरा संकट मीडिया की उस गिरती विश्वसनीयता का है, जिसे वो मानने को राजी नहीं है। इसलिए मैं मिसाल जेल की ही देना चाहूंगी। भारतभर की जितनी जेलों में मैं गई, उसमें बंदियों ने इस बात को बड़ा जोर देकर कहा कि उनका विश्वास न तो कानून पर है और न ही मीडिया पर। कानून पर विश्वास न होने की वजह समझ में आ सकती है, लेकिन जेल की कोठरी में बैठा कोई बंदी मीडिया पर भरोसा न रखता हो, यह बात सोचने की जरूर है। कड़वी बात शायद बंदी ही कह सकता है। लेकिन, उसकी भी सुनता कोई नहीं।

ठीक 10 साल पहले तक नया साल आने पर ज्यादा चर्चा इस बात पर होती थी कि क्या प्रिंट मीडिया अपने अस्तित्व को बचा पाएगा और क्या निजी चैनलों के बीच में उसको खुद को संभाल पाना मुश्किल होगा? आज 2022 में चिंता इस बात की नहीं है कि प्रिंट का क्या होगा, चिंता इस बात की जरूर है कि टीवी न्यूज के शोर के बीच अब खबर का क्या होगा? खबरों के खालिसपन पर अब खुद खबरनवीसों का यकीन नहीं रहा। दर्शक भी खबर परोसने वाले को देखकर हौले-से मुस्कुरा देता है। देखते ही देखते न्यूज मनोरंजन में बदल गई और मनोरंजन न्यूज में। भाषा और व्याकरण दयनीय बना दिए गए हैं। सही भाषा लिखने वाले ढूंढने की कोशिशें भी अब नहीं होतीं। बाजार में सब स्वीकार्य है बशर्ते पैसा आता हो। तिजोरी ने भाषा को शर्म से भर दिया है। इस सारे गड़बड़झाले के बीच खबर की स्थिति सर्कस के जोकर की तरह होने लगी है। हां, एक फर्क यह जरूर है कि सर्कस में एक ही जोकर होता है और वही सर्कस का नायक भी बना रहता है।

एक और चिंता मीडिया की पढ़ाई को लेकर है। अब क्या पढ़ाया जाए, क्या बताया जाए और क्या सिखाया जाए। छात्र जो सीखता है वो न्यूजरूम में मिलता नहीं और न्यूजरूम में है, उसे पढ़ाया नहीं जा सकता। मीडिया शिक्षण एक ऐसे चौराहे पर आ खड़ा हो गया है, जहां बैलेंस और वैरिफिकेशन की बात को छात्र हजम नहीं कर पाता। क्लासरूम की पढ़ाई जिस शालीन खबर की बात करती है, वो टीवी के पर्दे पर दिखती नहीं। दंगल में बदल चुके टीवी न्यूज चैनलों की भीड़ में यह लेखा-जोखा करना मुश्किल लगता है कि मीडिया आने वाले सालों में अपनी छवि को कैसे सुधारेगा।

दर्शक को वैसा ही मीडिया मिल रहा है, जिसके वह योग्य है। मीडिया का स्तर दर्शक के स्तर को भी रेखांकित कर रहा है। इसलिए अब मीडिया से शिकायत न कीजिए। गौर कीजिए कि आप दिनभर क्या सुनना, देखना, बोलना और पढ़ना पसंद करते हैं। पढ़ने की घटती परंपरा ने तेजी से परोसे जा रहे समाचारों की जमीन तैयार की है। आपके जायके का स्वाद ही मौजूदा मीडिया है और जायके में सुधार है-वैकल्पिक मीडिया। इसलिए जिस मीडिया की बात सबसे कम होती है, मुझे उसी में उम्मीद दिखाई दे रही है।

पब्लिक सर्विस ब्रॉडकास्टर की अपनी सीमाएं और प्राथमिकताएं हैं। प्राइवेट मीडिया अपनी साख के संकट से जूझ रहा है। तीनों तरह के मीडिया में यह बात साफ तरह से उभरने लगी कि आने वाला साल वैकल्पिक मीडिया के लिए एक नई जगह खड़ी कर सकता है। दिल्ली पुलिस ने 2022 की जनवरी को अपने पॉडकास्ट ‘किस्सा खाकी का’ की शुरुआत की। हर रविवार को प्रसारित होने वाली इस कड़ी में हर बार एक नया किस्सा होता है। पुलिस जैसा बड़ा और दमदार महकमा भी अब अपने लिए वैकल्पिक प्लेफार्म तैयार कर चुका है। यह एक शुरुआत है। नागरिक पत्रकारिता बड़ा आकार ले रही है। सोशल मीडिया ने जैसे पत्रकारों की फौज ही खड़ी कर दी है। हर किसी के पास कहने-पोस्ट करने के लिए कुछ है। वे अब किसी पर आश्रित नहीं। ऐसे में एक तिनका उम्मीद बाकी है, क्योंकि उम्मीद और हौसले के लिए तिनका भी बहुत होता है।


Courtesy: Samachar4media

Dec 26, 2022

Delhi Police: Podcasts: Kissa Khaki Ka: Episode 52

 Promo of Episode 52: 


Watch on YouTube: https://youtu.be/Txc_xU3rwHA

Fifty-Second Episode of Kissa Khaki Ka: Released on 25 December 2022:


Watch on YouTube: https://youtu.be/6zXVw57ore8

Delhi Police: Podcasts: Kissa Khaki Ka: Episode 51

 Fifty-First Episode of Kissa Khaki Ka: Released on 18 December 2022:


Watch on YouTube: https://youtu.be/FvQB27sf0UA

Dec 15, 2022

Tinka Tinka India Awards 2022: Results Announcement

 Press Release: TTIA 2022

Occasion: Human Rights Day, 2022

  • 13 jail inmates and 3 jail officers awarded.
  • Of the 13 recognised inmates, 9 are males, 3 females and 1 transgender.
  • 6 of the awardees   are convicts and 7 are undertrials.
  • 1 transgender from Uttarakhand chosen for a special award

Theme for this year was ‘Newspapers in Jails’

In 2022, over 600 entries were received under the Painting and Special Mention categories and 45 entries by the jail staff.

Youngest among nominees was 18 year old Jatuni incarcerated in District Jail, Faridabad, and 75 year, Ram Gopal from Central Jail, Ujjain was the oldest.

Awards were released by Dr. K.L.N. Rao, DG Prisons, Gujarat and Dr. Vartika Nanda, Founder, Tinka Tinka Foundation

Dr. A.P. Maheshwari, IPS (retd.) Former DG, BPR&D, Sanjay Chaudhary, IPS (retd.), Former DG, Prisons & Correctional Services, Madhya Pradesh were members of the jury

Till 2021, 126 inmates have received the award in the Painting and Special Mention category while 27 inmates have been chosen for the Tinka Tinka Bandini Awards. 43 jail administrators have also been honoured under this initiative.

On the eve of Human Rights Day, Tinka Tinka Foundation has continued its efforts in prison reformation by announcing the 8th edition of the national Tinka Tinka India Awards. These exclusive awards aim to recognise extraordinary contributions by prison inmates, staff and administration towards prison reform in India. Tinka Tinka has conferred 13 inmates and 3 jail administrators with this award for the year 2022, under 4 categories, namely Painting, Special Mention, Prison Administration and Bandini Awards. 

7 inmates have been chosen for awards in the Painting category while 4 have been selected for their special contribution to prison life. One transgender has been chosen under the special mention category. 2 women inmates have also been chosen for the special Tinka Tinka Bandini Awards. Besides this, 3 jail staffers have been chosen for the special Tinka Tinka Award for prison administration this year. Of the 13 recognised inmates, 6 are convicts and 7 are undertrials.

Tinka Tinka Awards in Painting

Chiranjit (28) lodged in Central Jail, Bilaspur (Chhattisgarh), has bagged the 1st prize in the painting category. Second prize has been awarded to Shraddha Satish Mangale (32), an undertrial in Central Jail, Thane (Maharashtra). Amarjeet Singh (48), an undertrial in Delhi’s Tihar Jail has been honoured with the third prize. A graduate with an excellent track record in drawing and painting, Amarjeet also works as a ‘Sahayak’ in the painting section of the jail.

Consolation prizes in Painting were conferred on four inmates. 28-year old Ajay Ratre lodged in Central Jail, Bilaspur, who also won the first prize in the painting category at Tinka Tinka India Awards 2019, Sanjay (29) of Central Jail, Bhopal (Madhya Pradesh), Jal Kumar (29) detained in Delhi’s Tihar Jail as well as Subhash Ramchandra Gurugula (25) an undertrial in Central Jail, Thane (Maharashtra), have been chosen for consolation prizes.

Tinka Tinka Special Mention Awards

Contributions of 4 inmates have been recognised in the Special Mention category. 45-year-old Kulmeet Kumar lodged in District Jail, Sonipat (Haryana), has been honoured for his contributions as a teacher in jail whose constant efforts are helping inmates receive higher education. Having spent more than 20 years in jail, Kulmeet has successfully undertaken the responsibility of encouraging illiterate inmates to join literary programmes in jail. He is also the radio jockey for the upcoming Tinka Tinka Jail Radio in Sonipat. Raghvendra Lodhi, aged 30, from District Jail, Fatehpur (Uttar Pradesh), has been felicitated for his efforts in spreading literacy in jail by reading newspapers for inmates on a daily basis. At the time of his entry in prison, he was an illiterate person.

Sarika, a 56 year old transgender inmate who has been in District Jail, Dehradun (Uttarakhand), since 2017, has also been honoured for her work as a ‘Convict Overseer’ of the women's enclosure of the prison. Her immense contributions in the role have helped bridge the gap between incarcerated women and prison administration.

54 years-old Mahendra Virambhai Prajapati detained in Sabarmati Central Jail, Ahmedabad (Gujarat), has been recognised for recording over 130 digital audio books to make learning accessible to the visually impaired.

Tinka  Tinka Bandini Awards

Two inmates received special recognition in the Tinka Tinka Bandini Awards. Jaswinder (43)  from Mandoli Jail, Delhi, has done extraordinary work with the welfare department of the jail. She helps in arranging basic facilities especially for those inmates who do not receive any visitors in jail. She runs a beauty parlour in the jail and is always willing to contribute to make prison a better space for the inhabitants.

Baby Mandle (45), lodged in Central Jail, Bilaspur (Chhattisgarh), has also been honoured for her efforts in providing educational support to women inmates in the prison. Before coming to the jail, she worked as a support staff member in a private hospital.

Tinka Awards for Prison Administration

This year, three prison administrators from across the country have received the Tinka Tinka India Awards for excellent and extraordinary efforts in reforming prisons. Ramesh Chandra Arya (55) Superintendent of Circle Jail, Shivpuri (Madhya Pradesh), has been in service since 1995. His efforts towards spreading literacy, including computer literacy and vocational training, expanding the jail industry during COVID-19, creating and maintaining gaushala, building new toilets, providing furniture, establishing hair cutting salons, etc., in the interest of the entire prison community have completely changed the face of the prison complex.

Paras Mal (40), Deputy Superintendent of High Security Prison, Ajmer (Rajasthan), has been honoured for his efforts in building, maintaining and expanding the prison library which introduced a wealth of knowledge in the lives of inmates along with the opportunity to pursue their academic pursuits and stay connected with the affairs in the outside world. Since his joining the jail service in 2006, he has contributed in providing basic training to nearly 1500 warders. Preparing reading material for the trainees. He has also coordinated educational programmes in association with IGNOU and NIOS.

Vishal Sharma (42), Warder in District Jail, Panipat (Haryana), has been recognised for his immense contributions towards increasing literacy in the prison and giving support for Tinka Tinka Jail Radio radio which has given a new direction and confidence to inmates to restart their lives behind the bars. He has played the key role in the selection of radio jockeys in the jail. His contribution towards reviving the jail radio immensely helped inmates overcome depression during COVID-19.

About Tinka Tinka Foundation and Prison Reforms

Tinka Tinka Foundation, a movement on jails, to help in the reformation of inmates and improve prison life, is the brainchild of media educator and prison reformer, Dr. Vartika Nanda. She is the recipient of Stree Shakti Puraskar, highest civilian honour for women empowerment in India, conferred upon her in 2014 by the President of India for her contribution in media & literature. Her name has been included twice in Limca Book of Records (2015 and 2017) for introducing innovative concepts related to creative expressions of inmates in the field of prison reforms. Her action oriented research on prisons was also taken into cognizance by the Supreme Court of India in 2018 in the matter of “Inhuman conditions in 1382 prisons”.

Initiated in 2015, Tinka Tinka’s exclusive national series ‘Tinka Tinka India Awards’ has recognised the unique contributions by inmates, children of inmates, and jail administrators towards the cause of prison reformation in India. Receiving hundreds of entries from all over India in four different categories every year, the award has highlighted the extraordinary creative and enterprising initiatives behind the bars that have helped bring a positive transformation to the lives of inmates and the prison community in the country. The awards follow a select relevant theme every year. The theme for the awards in 2021 was ‘Telephones in Jail’, ‘COVID-19 and Prisons’ in 2020, and ‘Dreams inside Prisons’ in 2019, accurately capturing the realities, challenges and aspirations of India’s incarcerated.

Dr. Vartika Nanda is also credited for conceptualising, training and executing prison radio in District Jail Agra, Jails of Haryana and Uttarakhand. Tinka Jail Radio is the only podcast in India dedicated to prison reforms. Three books under Tinka Tinka are considered to be masterpieces on prison life, which are a culmination of continuous engagement with prisons.

_________________________________________________________







________________________________________________________

Dec 13, 2022

Delhi Police: Podcasts: Kissa Khaki Ka: Episode 50

Promo of Episode 50: 



Fiftieth Episode of Kissa Khaki Ka: Released on 11 December 2022:

Dec 9, 2022

Delhi Police: Podcasts: Kissa Khaki Ka: Episode 49

 Promo of Episode 49:


Watch on YouTube: https://youtu.be/Mk26c6DCbiU

Forty-Ninth Episode of Kissa Khaki Ka: Released on 4 December 2022:


Delhi Police: Podcasts: Kissa Khaki Ka: Episode 48

 Promo of Episode 48:


Watch on YouTube: https://youtu.be/F70h6QLpOy4

Forty-Eighth Episode of Kissa Khaki Ka: Released on 27 November 2022:


Weekly Class Report: Introduction to Broadcast Media

 14th - 18th October, 2022

Introduction to Broadcast Media

The week started with a revision of the format of writing for television broadcasts. Dr. Nanda assigned the class the task of creating a news story about the freshers on campus. The class was divided into four groups and the news stories were shot on campus. 

The students showed the prepared news stories according to the assigned groups. Each of those was screened for the class. Dr. Nanda then asked the class to carefully analyze each of the stories and try to figure out what sections they needed improvement in. She then gave her feedback on how to improve their stories. 

The students were then asked to create another news story on the same topic so as to be able to track the progress and changes in their script and style. 

A lecture was held to allow the students to work on their script writing skills. Concerns were addressed and questions were answered regarding the same. The class was asked to research current affairs for a discussion in the following week. 

Report by 
Stuti Garg
CR - Batch 2024

Nov 22, 2022

Delhi Police: Podcasts: Kissa Khaki Ka: Episode 47

 Promo of Episode 47:


Watch on YouTube: https://youtu.be/ubs0WKIuGj4

Forty-Seventh Episode of Kissa Khaki Ka: Released on 20 November 2022:


Nov 16, 2022

Delhi Police: Podcasts: Kissa Khaki Ka: Episode 46

Promo of Episode 46:


Watch on YouTube: https://youtu.be/hbJQB9PQxnc

Forty-Sixth Episode of Kissa Khaki Ka: Released on 13 November 2022:


Nov 10, 2022

Delhi Police: Podcasts: Kissa Khaki Ka: Episode 45

  Promo of Episode 45:


Forty-Fifth Episode of Kissa Khaki Ka: Released on 6 November 2022:


Gomti Book Festival, Lucknow: National Book Trust

Gomti Book Festival, Lucknow: National Book Trust: 5 November, 2022: Different strokes of public and private FM radios with RJ Prateek, RJ Ginnie and Anupam Pathak.

National Book Trust India (NBT-India) organized the first edition of Gomti Book Festival in Lucknow on the serene backdrop of Gomti Riverfront Park – from 29th Oct to 6 Nov 2022. Spread across more than 1000 sq.m., this book festival presented the best elements of a Book Fair and a Literary Festival with Azadi ka Amrit Mahotsava as the core theme, and with NEP 2020 and YUVA Scheme as the sub-themes.








___________________________________________________________________________

Nov 7, 2022

Conversation with prison officers at State Institute of Correctional Administration (SICA)

2022: 3 November: Conversation with prison officers at State Institute of Correctional Administration (SICA), Hyderabad, Telangana: Attended by 158 delegates of Delhi Prisons (Tihar and Mandoli).






Nov 4, 2022

Laadli Media Award: Tinka Tinka Jail Radio

2nd November 2022

Tinka Tinka Prison Radio is honoured with the Laadli Media Award in Hyderabad in the Hindi category of Web Podcasts. The award was given for episode 11 of Tinka Tinka Jail Radio Podcast titled ‘Holi and Karnal Jail Radio’. This was broadcast on March 29, 2021.

The episode focused on the dry-run of Jail Radio in District Jail, Karnal, undertaken by 10 inmate-turned-RJs of the jail. These inmates were a part of the radio skill production training programme, included in the broad prison radio training project in the state of Haryana. The training was intended to carve Radio Jockeys from the league of inmates and prepare them to run their own radio stations from behind the prison bars.  Audition, training and execution of prison radio in Haryana is done by prison reformer Dr. Vartika Nanda. She heads the Department of Journalism in Lady Shri Ram College, Delhi University.  She was conferred Stri Shakti Award by the President of India in 2014. This is the highest civilian award for women empowerment in India. 

Tinka Tinka Jail Radio Podcasts are an exclusive audio series for jails across India. These podcasts are the only podcasts in India solely dedicated to prison reforms in the country and aim to bring about a positive change in prisons. With no financial support, these podcasts. which began in 2020, have been successful in highlighting original voices of inmates from different prisons of the country. Conceptualised, scripted and voiced by Dr. Vartika Nanda, these podcasts are freely available on Tinka Tinka Foundation’s YouTube channel: Tinka Tinka Prison Reforms.

Laadli Media Awards is an initiative of the Laadli group which works with media to change the way India thinks about its women and releases annual Media and Advertising awards for Gender Sensitivity. This was the 12th year of such awards.

Award winning category:  Episode 11: Holi and Karnal Jail Radio: Vartika Nanda

Tinka Tinka Jail Radio: Ep 11: Holi and Karnal Jail Radio: Vartika Nanda - YouTube




Watch Video:


Read on Woman's era: 

Nov 2, 2022

Tinka Tinka Jail Radio: Episode 50: Haryana Day: Voices behind Bars

तिनका तिनका जेल रेडियो जेलों में इंद्रधनुष बनाने की कोशिश करता है। आज यह हमारा 50वां अंक है। रंगों, आवाजों और कलम के जरिए जेलों को संवारने के इस यज्ञ में हरियाणा की जेलों ने खूब साथ दिया है। इन जेलों की तरफ से आज हरियाणा राज्य को हरियाणा दिवस मुबारक। तिनका जेल रेडियो के आज के अंक का ऑडियो संपादन सुखनंदन बिंद्रा ने किया है। शुरुआती की एपिसोड हर्ष वर्धन ने संपादित किए। आज के इस 50वें अंक के बाद तिनका जेल रेडियो एक पहल की घोषणा करेगा। 

Tinka Tinka Jail Radio completes its 50th episode today. These podcasts are the ONLY podcasts in India that revolve around the issues of prison reforms. These are neither sponsored nor funded. These come from the heart and are disseminated to the audience that listens to it with equal passion. Started on a very emotional note in 2020, delighted to share that this spiritual journey has enlightened us in many ways.


Watch on YouTube: https://youtu.be/-mxXEriqe2g

Nov 1, 2022

Delhi Police: Podcasts: Kissa Khaki Ka: Episode 44

 Promo of Episode 44:


Watch on YouTube: https://youtu.be/ssgpAKpzf8k

Forty-Fourth Episode of Kissa Khaki Ka: Released on 30 October 2022:


Oct 27, 2022

Documenting audio visual heritage of prisons: Tinka Tinka Foundation launches a new initiative

On the occasion of World Day of Audio Visual Heritage on 27th October, Tinka Tinka Foundation has launched a new segment- Tinka Tinka Prison Bytes- for the preservation of Audio Visual documents pertaining to jails. This segment will preserve and document jail voices, activities and contributions in the audio-visual format. It will also promote inter-jail podcast programmes, encouraging inmates towards art and creativity, further leading to reformation. 

Founded by India’s leading prison reformer, Dr. Vartika Nanda, Tinka Tinka Foundation has been engaged in bringing positive change in prisons. Foundation has launched prison radio in the jails of Haryana and District Jail, Agra. Tinka Tinka Prison Reforms, a YouTube channel by Tinka Tinka is the only channel in India that is dedicated to prison reforms. Today, Tinka Tinka Prison Bytes has been launched under the banner of Tinka Tinka Prison Research Cell (established in 2021) devoted to prison related research.  Foundation has also published 3 books on prison reforms that are considered to be an authentic version of prison life.

Tinka Tinka Foundation also gives Tinka Tinka India Awards and Tinka Tinka Bandini Awards at the national level to inmates and jail staff doing an extraordinary contribution to jails. These annual awards were launched in 2015 and are the only awards given to inmates and the staff.

The World Day for Audiovisual Heritage is observed globally on 27 October every year. The day was chosen by UNESCO to raise awareness of the significance and preservation risks of recorded sound and audiovisual documents. The theme of the World Day for Audiovisual Heritage 2020: “Your Window to the World”.

(This segment is part of Tinka Tinka Prison Research Cell) 

------------------------------------  

27 October 

जेल और विरासत: जेलों की ऑडियो-विजुअल विरासत का दस्तावेजीकरण: तिनका तिनका फाउंडेशन ने की एक नई पहल की शरुआत

27 अक्टूबर को विश्व ऑडियो-विजुअल विरासत दिवस के अवसर पर तिनका तिनका फाउंडेशन ने जेलों से संबंधित ऑडियो विजुअल दस्तावेजों के संरक्षण के लिए एक नई सीरीज- तिनका तिनका  प्रिजन बाइट्स को लॉन्च किया. यह सीरीज जेल की आवाजों, गतिविधियों और योगदान को ऑडियो-विजुअल प्रारूप में संरक्षित और दस्तावेज करेगी. इस सीरीज के माध्यम से जेल के पॉडकास्ट कार्यक्रमों को भी बढ़ावा मिलेगा . साथ ही कला और रचनात्मकता के प्रति कैदियों को प्रोत्साहित भी करेगी, जिससे उनमें सुधार भी आ सके. 

भारत की अग्रणी जेल सुधारक डॉ. वर्तिका नन्दा द्वारा स्थापित तिनका तिनका फाउंडेशन जेलों में सकारात्मक बदलाव लाने में लगातार लगा हुआ है. फाउंडेशन ने हरियाणा और जिला जेल, आगरा की जेलों में जेल रेडियो लॉन्च किया है. तिनका तिनका का यूट्यूब चैनल- तिनका तिनका प्रिजन रिफॉर्म्स, भारत में एकमात्र यूट्यूब चैनल है, जो जेल सुधारों के लिए समर्पित है. आज तिनका तिनका प्रिजन रिसर्च सेल (2021 में स्थापित) के बैनर तले तिनका तिनका प्रिजन बाइट्स का शुभारंभ किया गया है, जो जेल संबंधी अनुसंधान को समर्पित है. फाउंडेशन ने जेल सुधारों पर 3 पुस्तकें भी प्रकाशित की हैं, जिन्हें जेल जीवन का एक प्रामाणिक दस्तावेज माना जाता है.

तिनका तिनका फाउंडेशन जेलों में असाधारण योगदान करने वाले कैदियों और जेल कर्मचारियों को राष्ट्रीय स्तर पर तिनका तिनका इंडिया अवॉर्ड्स और तिनका तिनका बंदिनी अवॉर्ड भी देता है. यह वार्षिक पुरस्कार 2015 में शुरू किए गए थे और यह कैदियों और कर्मचारियों को दिए जाने वाले एकमात्र पुरस्कार हैं.

गौरतलब है कि ऑडियो-विजुअल विरासत के लिए विश्व दिवस हर साल 27 अक्टूबर को विश्व स्तर पर मनाया जाता है. यूनेस्को द्वारा इस दिन को चुना गया था. ऑडियो-विजुअल हेरिटेज 2020 के लिए विश्व दिवस का विषय: "आपकी खिड़की दुनिया के लिए" था.

(यह सीरीज तिनका तिनका जेल अनुसंधान प्रकोष्ठ का हिस्सा है)

------------------------------------  


------------------------------------  

Oct 25, 2022

Delhi Police: Podcasts: Kissa Khaki Ka: Episode 43

  Promo of Episode 43:


Watch on YouTube: https://youtu.be/NWR6ldoNUds

Forty-Third Episode of Kissa Khaki Ka: Released on 23 October 2022:


Oct 24, 2022

Tinka Tinka Jail Radio: Episode 49: Women who bring light in jail: Vartika Nanda

सुंदरा करीब 25 साल से जेल में बंद है। वह आजीवन कारावास पर है। अपनी बड़ी बहन के साथ। सजा लंबी है। उदासी भी। शुरू के साल आंसुओं और इंतजार के नाम रहे। फिर एक दिन सुंदरा ने जेल की कोठरी में ही अपने लिए रौशनी को ढूंढ लिया। अपना दीया बनी और औरों का भी। आज प्रस्तुत है- तिनका तिनका जेल रेडियो का 49वां अंक। ऑडियो संपादन हर्ष वर्धन। जेल की सलाखों के पीछे बंद इन आवाजों को सुनना जिंदगी को समझने जैसा है। 

Presenting to you the 49th episode of Tinka Tinka Jail Radio. Conceptualised, written and narrated by Vartika Nanda, these podcasts are exclusive podcasts on prisons.

Oct 20, 2022

तिनका-तिनका जेल रेडियो: जेलों में इंद्रधनुष बनाने की कोशिश




2022: 'किस्सा खाकी का': माइक से झरतीं मानवीयता की तिनका तिनका कहानियां

54 साल के राजीव अपनी ड्यूटी के बाद महीने में कम से कम एक बार दिल्ली के एम्स औऱ सफदरजंग अस्पताल के बाहर इंतजार कर रहे लोगों को खाना खिलाने का काम करते हैं। इसके लिए वे अपने आसपास के परिवारों को कुछ दिन पहले सूचना देते हैं, ढाई सौ घरों से भोजन जमा करते हैं और एक दिन में कम से कम एक हजार लोगों को भोजन करवाते हैं।

इसी तरह एक हैं- संदीप शाही। उन्हें अब कई दिल्लीवाले हेल्मेट मैन कहते हैं। वे अपनी नौकरी के साथ-साथ अपने पैसों से लोगों में हल्मेट बांटते हैं ताकि लोगों में सड़क सुरक्षा के प्रति जागरुकता आए।

यह इंसानियत से लबरेज कहानियां हैं। इन्हें सामने लाने का काम किया है- दिल्ली पुलिस के नए पॉडकास्ट 'किस्सा खाकी का' ने। पूरे देश के किसी भी पुलिस विभाग का यह पहला पॉडकास्ट है जो पुलिस स्टाफ और अधिकारियों के संवेदना से भरे हुए यागदान को आवाज के जरिए पिरो रहा है।

कहानियां लोगों को जोड़ने का काम करती हैं। इस बात को पुलिस ने भी समझा। इसी साल जनवरी के महीने में जब 'किस्सा खाकी का' की शुरुआत हुई, तब किसी को भी इस बात का इल्म नहीं था कि देखते ही देखते कहानियों का यह पिटारा पुलिस स्टाफ के मनोबल को इस कदर बढ़ाएगा और लोगों के दिलों में जगह बनाने लगेगा। अब तक हुए तमाम अंकों में हर बार किसी ऐसे किस्से को चुना गया जो किसी अपराध के सुलझाने या मानवीयता से जुड़ा हुआ था।

पहला किस्सा 'थान सिंह की पाठशाला' पर था। दिल्ली पुलिस के इस कर्मचारी ने कोरोना के दौरान भी लाल किले के पास गरीब बच्चों को पढ़ाने का समय निकालता था। उसकी सांसें जैसे इन बच्चों में समाई हैं।

दिल्ली पुलिस अपने सोशल मीडिया के विविध मंचों पर हर रविवार को दोपहर दो बजे एक नई कहानी रिलीज करती है। आकाशवाणी भी अब इन पॉडकास्ट को अपने मंच पर सुनाने लगा है। दिल्ली पुलिस ने अपने मुख्यालय में किस्सा खाकी का एक सेल्फा पाइंट बना दिया है ताकि स्टाफ यहां पर अपनी तस्वीरें ले सके और प्रेरित हो सके। दिल्ली पुलिस की पहली महिला जनसंपर्क अधिकारी सुमन नलवा व्यक्तिगत तौर पर इन कहानियों की चयन प्रक्रिया में जुटती हैं। इन किस्सों की स्क्रिप्ट औऱ आवाज मेरी है। इन कहानियों को स्वैच्छिक सुनाया जाता है, बिना किसी आर्थिक सहयोग लिए।

आवाज की उम्र चेहरे की उम्र से ज्यादा लंबी होती है। तिनका तिनका जेल रेडियो जेलों की आवाजों को आगे लाने का काम एक लंबे समय से कर रहा है। तिनका तिनका जेल रेडियो और किस्सा खाकी का- यह दोनों ही पॉडकास्ट भारत के अनूठे और नवीन पॉडकास्ट हैं। इन दोनों की सफलता की कुंजी इनके नएपन, सकारात्मकता और गतिमयता में है। कंटेट खालिस हो तो वो हौले-हौले अपनी जगह बनाने की आश्वस्ति देता ही है। यही वजह है कि शॉट्स की भीड़ और मसालेदार खबरों के शोर में इंसानियत की आवाजें उठने लगी हैं। आवाजों की यह कोशिशें इस अंधेरे संसार में दीया बन रही हैं।

लेकिन यह मानना होगा कि जिस तेजी से झूठ वायरल होता है, मनोरंजन और मसाला बिकता है, उतने ही धीमे ढंग से जिंदगी की नर्माहट स्वीकारी जाती है। जेल और पुलिस- दोनों का परिचय अंधेरे से है। दोनों के साथ पारंपरिक तौर से नकारात्मकता की छवियां जुड़ी हैं। अंग्रेजों के जमाने से चली आ रही इन क्रूर छवियों को तोड़ना चुनौती है। दूसरे, समाज जिस आसानी से बाजारी प्रचार से मिली खबरों को पलकों में बिठाता है, वैसा उन कहानियों के साथ नहीं होता जिनसे सिर्फ संवेदना जुड़ी होती है। दुनिया शायद ऐसे ही चलती है। बहरहाल, समय की गुल्लक में ऐसी कहानियों का जमा होना तिनका भर उम्मीद को बड़ा विस्तार तो देता ही है।

(वर्तिका नन्दा जेल सुधारक हैं। जेल और अपराध बीट पर विशेषज्ञता है। दिल्ली के लेडी श्रीराम कॉलेज में पत्रकारिता विभाग की प्रमुख)

Oct 19, 2022

2022: The Light in the Dark: Tinka Tinka Dasna: तिनका तिनका डासना: जेल में सृजन, सुधार और अकादमिक शोध

Location: Tihar, Delhi

Year: 2022 

The book is the voice of prisoners in Dasna Jail, with their poems printed across the pages of Tinka Tinka Dasna. It includes some infamous cases like the Aarushi Talwar murder and the Nithari case. 

किताब - तिनका तिनका डासना

लेखिका - वर्तिका नंदा

समीक्षक -  डॉ. सम्राट् सुधा

पुस्तकों में जीवन होता है लेकिन कई बार पुस्तक इतनी जीवंत होती है कि लगता है हम सीधे जीवन को ही पढ़ रहे हैं। यह सच भी होता है। जेल के संदर्भ में लिखित पुस्तक का महत्त्व उसकी शोधपरकता से है। जेल किसी की रुचि का विषय बहुत कम है लेकिन सबका नहीं। शोधार्थी, जेल भुगते हुए लोग, उनके परिवार-जन और जीवन के प्रत्येक हिस्से को जानने के जिज्ञासु जेल के जीवन को पढ़ने से दूर ना होंगे। उन्हीं लोगों, जो संख्या में कम नहीं हैं, के लिए जेल पर लिखी पुस्तकें तथ्यपरक स्रोत का कार्य करती हैं। लेकिन अगर कोई किताब शोध के साथ बदलाव भी लाए तो वो ज्यादा उपयोगी और सार्थक हो जाती है।

शोध सारांश: पुस्तक 'तिनका तिनका डासना' में वर्णित डासना जेल और उसके बंदियों-कैदियों के साथ किए जा रहे कार्यों का उनके जीवन पर प्रभाव सम्बद्ध अध्ययन। ऐसी पुस्तक की उपादेयता व समाज पर उसका प्रभाव। एक चेतना और प्रेरणा भी। दीवारों में कैद उपेक्षित मनुष्यों को सहज जीवन की अनुभूति। एक अध्ययन।

किसी भी पुस्तक का महत्त्व उसकी उपादेयता से है। वह यदि अपनी विषयवस्तु से किसी का भला नहीं करती तो विशुद्ध आत्मालाप है। लियो टॉलस्टॉय ने लिखा है - " वे विद्वान् और कलाकार, जो दण्डविधान और नागरिक तथा अंतर्राष्ट्रीय कानून के सिद्धांतो का निर्णय करते हैं, जो नये अस्त्र-शस्त्रों और विस्फोटकों का अन्वेषण करते हैं और अश्लील नाटक अथवा उपन्यास लिखते हैं, वे अपने को चाहे कुछ भी कहें, हमें उनके ऐसे कार्यों को विज्ञान और कला कहने का कोई अधिकार नहीं है, क्योंकि उन कार्यों का लक्ष्य समाज अथवा मानव-जाति का कल्याण करना नहीं होता, बल्कि इसके विपरीत वे मानव-जाति को हानि पहुंचाते हैं!"

उक्त आधार पर विचारें तो वर्तिका नन्दा की जेल की जिदगी पर आधारित पुस्तक 'तिनका तिनका डासना' एक जीवंत पुस्तक है जिसे लिखे जाने का उद्देश्य ही कल्याण है। उत्तर-प्रदेश की डासना (जिला जेल, ग़ाज़ियाबाद) जेल पर संकेंद्रित इस पुस्तक को उस जेल में सूख चुकी फुलवारी के फिर से महकाने का या महकाने की सम्भावना का एक सुप्रयास माना जा सकता है। कैदियों के जीवन को जेल से बाहर उनके अपनों के अतिरिक्त कोई सोचता है क्या? वर्तिका नन्दा भारतीय जेलों में सुधारात्मक कार्यों के लिए एक स्थापित नाम हैं। वे इस पुस्तक के समर्पण में लिखती हैं -

"उन तिनकों के नाम

जिन्हें बचाए रखती हैं

कहीं ऊपर से टपकने वाली

उम्मीदें !"

अबोध और अघोषित बाल 'कैदी': पुस्तक 'तिनका तिनका डासना' डासना जेल की जीती-जागती कहानी है, जो सहयोगात्मक रूप में 'तिनका तिनका फाउंडेशन' की प्रमुख वर्तिका नन्दा की ज़ुबानी और उनके संकलन से संजोयी गयी है। पुस्तक नौ हिस्सों में बंटी है, सबके विषय भिन्न हैं। एक हिस्से 'मुलाकात का कमरा-जहाँ लोहा पिघलना चाहता है' के अंतर्गत वे लिखती हैं- "जितने साल उनका अपना यहाँ अंदर होगा, उतने साल सज़ा उनकी भी चलेगी, जो बाहर हैं। सज़ा कभी किसी को अकेले नहीं मिलती।" इसी क्रम में वे बहुत तथ्यपरक रूप से भारतीय जेलों की दशा बताते हुए उनमें महिला कैदियों व उनके बच्चों के लिए नदारद सोच पर टिप्पणी भी करती हैं। बच्चों की स्थिति को बहुत मार्मिक रूप से वे लिखती हैं - " ये बच्चे सिर्फ़ बच्चे हैं। बच्चे के घर-परिवार के कोई सवाल नहीं हैं, यहाँ पर बच्चे के लेकिन कुछ सवाल ज़रूर हैं। वे सवाल अभी शब्द बन रहे हैं। कुछ सालों में वाक्य बन जाएंगे... वे जानते हैं कि माँ रोज़ इस झूठ के साथ जीती है कि वे जल्द ही अपने घर जाएंगे।" पुस्तक में नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के माध्यम से बताया गया है कि इस समय (वर्ष 2015 तक) क़रीब 17000 महिलाएं जेलों में बंद हैं, जबकि उस समय तक जेलों की कुल संख्या 1,394 बतायी गयी हैं। साथ ही कई राज्यों में जेलों की कुल संख्या भी बतायी गयी है।

मीडिया ट्रायल और उसका बंदियों पर प्रभाव: पुस्तक के एक अन्य हिस्से 'तिनका तिनका ज़िन्दगी' में लेखिका ने डासना जेल में उस समय (वर्ष 2015- 2016 ) बंद कतिपय कैदियों के तत्कालीन जीवन को भी सचित्र प्रस्तुत किया है। इसमें सबसे महत्त्वपूर्ण हैं -डॉ. राजेश तलवार व डॉ. नूपुर तलवार, अपनी ही बेटी आरुषि तलवार की हत्या के अभियुक्त। दोनों के जीवन को लेखिका ने उसी गरिमा से लिखा है, जिसके वे अधिकारी हैं। जेल में वे दोनों कैसे सेवा करते हुए जीवन व्यतीत कर रहे हैं, यह पढ़ते हुए आंखें नम हो जाती हैं । इस कांड पर उस समय मीडिया और समाज ने जो अपरिपक्वता दिखायी थी, उस पर टिप्पणी करते हुए वर्तिका नन्दा लिखती हैं-"बाहर की दुनिया उन्हें सहराती है, जिसने अपने बूते पर ही अदालतों से पहले अपने कड़े फैसले को सुना दिया। वह मीडिया रात भर की टूटती-कराहती नींद के बीच दिखता है, जिन्होंने अदालत की सुनवाई से पहले ही उन्हें दरिंदा और कातिल करार दे दिया था। वे मानते हैं कि दैविक सुनवाई होनी अभी बाकी है !" डॉ. नूपुर तलवार की चार कविताएं व डॉ. राजेश तलवार की पाँच कविताएं पुस्तक में हैं, जो उनके उनके दर्द का सैलाब हैं। इन दोनों के अतिरिक्त निठारी कांड सुरिन्दर कोली , पाँच बच्चों की हत्या के अभियुक्त रवींद्र कुमार, पत्नी हत्या के अभियुक्त सुशिक्षित अमेरिका रिटर्न राजेश झा के जेल जीवन और उनकी कविताओं को पढ़ना जेल में बंद अभियुक्तों के जीवन को सर्वथा नये रूप में समझने को विवश करता है। इसी क्रम में आजीवन कारावास की सज़ा के कैदी विजय बाबा, बीटेक कर इंजीनियर रहे प्रशांत और विचाराधीन बन्दी विवेक स्वामी पर लेखिका ने मर्मस्पर्शी रूप से लिखा है।

जेल के अधिकारियों का दृष्टिकोण: इस पुस्तक में तत्कालीन कारागार मंत्री, उत्तर प्रदेश बलवंत सिंह रामूवालिया , तत्कालीन महानिरीक्षक कारागार, उत्तर प्रदेश डॉ. देवेंद्र सिंह चौहान, डिप्टी जेलर शिवाजी यादव और फार्मासिस्ट आनन्द पांडे के विचार पढ़ना एक पृथक् अनुभूति देता है। डिप्टी जेलर शिवजी यादव को एक स्थान पर उद्धृत करते हुए लेखिका लिखती हैं- "शिवाजी मानते हैं कि जेलों में हमेशा वो सच भी उघड़ जाते हैं, जो फाइलों को छू भी नहीं पाते। इन लिहाज़ से किसी जेलर के पास अगर वक़्त और नीयत हो,तो वह हर अपराध के सच को बताने वाला सबसे सटीक स्रोत हो सकता है।" इसी प्रकार फार्मासिस्ट आनन्द पांडे की कही एक बात वे उद्धृत करती हैं- " पहली बार जेल में आये बंदियों के साथ उनका गहरा अवसाद चलता है। इस अवसाद के बीच हर रोज़ एक नये पुल को बनाने की कला कोई सरकार नहीं सिखाती, सरोकार सिखाता है !"

सलाखों में सर्जन : साहित्य यह भी : पुस्तक के एक हिस्से में सात पुरुष और दो महिला कैदियों की कुल चौबीस पद्य-रचनाओं को स्थान दिया गया है। ये सभी रचनाएँ कैदियों द्वारा अपने जीवन की समग्र परिस्थितियों का अनुपम और मार्मिक चित्रण हैं। इनमें उनका वह सच है, जो अन्य के लिए अकल्पनीय और सम्भवतः अनावश्यक भी है। एक कैदी राजकुमार गौतम की ग़ज़ल के यह शेर देखिए -

"ऐ हवा इतना शोर ना कर, मैंने तूफानों को बिखरते देखा है

तूने उजाड़ा था जिन घरों को,उन्हें फिर से संवरते देखा है।

क्या हुआ जो बिखर गये मेरे सपने होकर तिनका-तिनका

मैंने तो तिनका-तिनका हुए सपनों को भी संवरते देखा है।"

महिला बंदिनी उपासना शर्मा की अपने भाई को सम्बोधित कविता 'याद' के यह अंश देखिए -

" याद है वो लड़ना झगड़ना...

मेरी नाकामयाबी पर भी

मुझे कामयाब बताना

हमेशा मुझे पिता की तरह समझाना

वो तेरा हर वक़्त मुझे बुलाना

याद है...

नफ़रत से ज़्यादा प्यार में ताक़त होती है

सबसे ज़्यादा

आपनों के विश्वास में ताक़त होती है !"

प्रश्न यह है कि इन कविताओं को साहित्य को कोई अध्याय स्वयं में समेटेगा या ये 'तिनका तिनका डासना' जैसी शोध पुस्तकों के अनुपम उदाहरण बनकर ही रह जाएंगी। सम्भवतः कोई कभी इन पर भी शोध कर सके, परन्तु इससे पहले कौन है, जो इनके सृजकों की आत्मा का भी शोध कर सके, जिसके बिना इनकी रचनाओं का शोध व्यर्थ ही नहीं, असम्भव भी है ! इस दृष्टि से पुस्तक 'तिनका तिनका डासना का मूल्यांकन इसे एक अनुपम, संग्रहणीय और महत्त्वपूर्ण पुस्तक बना देता है।

नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने लिखा है - "मुझे नहीं लगता कि अगर मैं व्यक्तिगत रूप से एक कैदी के रूप में नहीं रहा होता तो मैं किसी अपराधी को सहानुभूति की नजर से देख पाता और मुझे इस बात में ज़रा भी संदेह नहीं है कि हमारे कलाकारों और साहित्यकारों की रचनाएँ, आम तौर पर, जेल-जीवन का कुछ नया अनुभव होने पर हर तरह से लाभान्वित होंगी। हम शायद काजी नजरूल इस्लाम की कविता के कर्ज की भयावहता को महसूस नहीं करते हैं, जो उन्होंने जेलों के जीवन के अनुभव के लिए किया था।जब मैं शांति से चिंतन करने के लिए रुकता हूं, तो मुझे लगता है कि हमारे बुखार और कुंठाओं के मूल में कोई बड़ा उद्देश्य काम कर रहा है। यदि यह विश्वास ही हमारे सचेतन जीवन के प्रत्येक क्षण की अध्यक्षता कर सकता है, तो हमारे कष्ट अपनी मार्मिकता खो देंगे और हमें एक कालकोठरी में भी आदर्श आनंद के साथ आमने-सामने लाएंगे? लेकिन आम तौर पर कहा जाए तो यह अभी तक संभव नहीं है। यही कारण है कि यह द्वंद्व आत्मा और शरीर के बीच निरंतर चलते रहना चाहिए।"

रुकी ज़िन्दगी को फिर से गति: पुस्तक 'तिनका तिनका डासना' मूलतः डासना जेल के कैदियों के संग 'तिनका तिनका फाउंडेशन' की संस्थापक वर्तिका नन्दा द्वारा किये गये उन सकारात्मक और सुधारात्मक प्रयासों के प्रतिफलों का दस्तावेज हैं, जिन्हें जेल से बाहर के मनुष्य ही नहीं, प्रायः जेल के ही कैदी और कर्मी, दोनों सोच तक नहीं पाते । सबसे बड़ी कठिनाई यह है कि जेल एक उपेक्षित स्थान है, विचारक इसके बारे में सोचना नहीं चाहते , कवि कल्पना नहीं करना चाहते, दानी पहुँच नहीं पाते और सुधारक चयन नहीं कर पाते। तिनका तिनका फाउंडेशन की संस्थापक और इस पुस्तक की लेखिका वर्तिका नन्दा ने उस सब 'ना कर पाने' को किया है और कैदियों के नज़रिए से जिया है, उन्हीं का वर्णन 'तिनका तिनका डासना' में है। वे ' साहित्य ,सृजन और पत्रकारिता : जेलों में तिनका तिनका प्रयोग' शीर्षक के अपने लेख में लिखती हैं- " डासना पर काम शुरु हुआ तो आगे बढ़ता गया...उन्हें लगने लगा कि ज़िन्दगी फिर से शुरु की जा सकती है। बस, मैं यही चाहती हूँ ! ज़िन्दगी पर पूर्ण विराम क्यों लगने दिया जाए। इस उम्मीद को बचाए रखने और बदलाव के बीच सर्जन करने के लिए ही तिनका तिनका का बीज रोपा गया था। इसमें अब कोंपल आ रही है। इसे सींचने के लिए मेरे पास कोई बड़ी शक्ति नहीं है,लेकिन साहस और नीयत ज़रूर है !"

कलेवर व सामग्री का महत्त्व: यह पुस्तक तिनका तिनका फाउंडेशन के जेल सुधार कार्यक्रमों का सुंदर और महत्त्वपूर्ण संकलन है। पुस्तक की लेखिका वर्तिका नन्दा ने इसे मस्तिष्क नहीं, आत्मा से लिखा है ,वे ही तिनका तिनका की संस्थापिका और उक्त कार्यक्रमों की विचारक-निर्देशक भी हैं। मूल सामग्री के मध्य लेखिका और अन्य के कवितांशों ने पुस्तक को प्रभावी बनाया है। सम्बद्ध चित्र मोनिका सक्सेना के हैं जिनसे पुस्तक और प्रभावी हुई है। आवरण चित्र विवेक स्वामी का है, जो वर्ष 2015 में डासना जेल में एक विचाराधीन बन्दी थे और बाद में रिहा हो गये थे । एक बन्दी से उसकी प्रतिभा का उपयोग कर उसके चित्र को पुस्तक का आवरण चित्र बनाना भले ही प्रथम दृष्टि में कोई विशेष बात ना लगे,परन्तु उसके लिए यह कितना महत्त्वपूर्ण है, इसका अनुमान लगाया जा सकता है। उसे यह मनोवैज्ञानिक रूप से कितना सुदृढ़ करेगा , जब भी वह सोचेगा कि उसके जीवन के सबसे बुरे और उपेक्षित समय में किसी ने उसे यूँ सम्मान दिया। जेल से छूटने के बाद यही किताब, जेल के अंदर बना कैलेंडर और सजायी गयी एक विशेष दीवार विवेक स्वामी को एक मज़बूत नौकरी दिलवाती है। इस पुस्तक में केंद्रीय कारागार आगरा से लिखी एक कैदी की चिट्ठी बहुत मर्मस्पर्शी है।

पुस्तक का काग़ज़ उत्तम है ।

पुस्तक में लेखिका की सटीक और सूक्तिमय भाषा: इस पुस्तक में लेखिका डॉ. वर्तिका नन्दा की भाषा-शैली सटीक ,सूक्तिमय व मर्मस्पर्शी है, जो विचार-मंथन को विवश करती है । कुछ उदाहरण प्रस्तुत हैं -

1- सदा सच बोलो । जेल के बन्दी को घण्टों यह सुनाना आसान है , लेकिन उन्हें कौन समझाये, जो बाहर रहकर बड़े अपराध करते हैं और इन गलियों से एकदम बचे भी रहते हैं।

2- इस सवाल का ज़वाब तो किसी के पास नहीं है कि जो जब यहाँ से लौटेगा , तो बाहर की ज़िंदगी से कौन- से पन्ने पलट गये होंगे, फट गये होंगे या कहीं उड़ गये होंगे।

3- जितने साल उनका अपना यहाँ अंदर होगा, उतने साल सज़ा उनकी भी चलेगी, जो बाहर हैं !

4- इन सबमें अपनी परछाई से भी छोटा वो हो जाता है, जिसके सिर पर किसी और का इल्ज़ाम लगा था। वो जेल से बाहर आकर भी ख़ुद को किसी जेल में ही पाता है।

स्पष्ट है कि पुस्तक 'तिनका तिनका डासना' एक सामान्य पुस्तक ना होकर ,जेल के बन्दी व कैदियों पर लिखी अनुपम पुस्तक है, जिसे वस्तुतः एक सामाजिक शोध कहा जा सकता है। इस शोध पुस्तक की महत्ता इस लिए भी बढ़ जाती है कि इसमें काग़ज़ी शोध ना होकर पहले उन बंदियों और कैदियों के साथ उनके कल्याणार्थ कार्य किये गये , फिर उनके प्रतिफलों को इस पुस्तक में प्रकाशित किया गया।

किताब 'तिनका तिनका डासना' का एक हिस्सा है। उसका परिणाम दूरगामी रहा। जेल में बनायी गयी एक खास दीवार में जेल की ज़िन्दगी पर 10 खास बिंब बनाये गये। इस दीवार के सामने बंदियों ने वर्तिका नन्दा का लिखा गाना गाया। जब उसे फिल्माया गया, तब जेल में उत्साह देखने लायक था। वह गाना यूट्यूब पर है, लेकिन गाने से बड़ी बात है - वह सम्मान, जो इन बंदियों को मिला। इन बंदियों ने लेखिका से अपने नाम और अपनी पहचान देने की इच्छा जतायी। इच्छा पूरी हुई और बाद के सालों में जेल से छूटने पर भी मिला- जेल में सृजन कर पाने का सुकून। पुस्तक 'तिनका तिनका डासना' उसी सुकून की कथा है, जिसका कोई 'स्पांसर' नहीं था। ऊपरी शक्ति के संबल से लिखी यह कथा जेल को सम्मान और साहस की जगह देती है।