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Writing for TV News: Class Assignment: Batch of 2027-28

Mar 8, 2010

बहुत हुआ


बस
अब रंगों जैसा ही हो जाना है
घुल जाना है

पानी जैसे
बह जाना है

पहाड़ जैसे
टिक जाना है

शहर जैसे
चल पड़ना है

बर्तन जैसे
बन जाना है

रिश्ते जैसे
निभ जाना है

मर्द  जैसा
बेवफा होना है

सब कुछ होना आसान ही है शायद
पर औरत होना
खुद अपने जैसा होना !!!!!


2 comments:

डा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumar said...

वर्तिका जी,आपकी इस कविता को कई बार पढ़ा--हर बार इसका एक नया अर्थ सामने आया---और इन पंक्तियों ने तो बहुत कुछ सोचने को मजबूर कर दिया---पर औरत होना खुद अपने जैसा होना !!!!! बेहतरीन कविता---

ओम पुरोहित'कागद' said...

वर्तिका जी,
वन्दे!
'आखर कलश'पर आपकी अच्छी कविताएं पढ़ कर आपके ब्लाग पर आया हूं।यहां भ्रमण कर खूब और भरपूर आनंद आया।अच्छी कविताओं के अलावा भी बहुत कुछ पढ़ने मिला।आप तो बहुआयामी व्यक्तित्व की मालकिन हैँ।आपका रचना संसार भी बहुआयामी है!बधाई हो।
आपको उचित लगे तो मेरे ब्लाग पर भी पधारेँ,अच्छा लगेगा।
http//www.omkagad.blogspot.com