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Mar 24, 2011

मिस्र में बीते मेरे वो खौफनाक पल

मैंने अपने 20 साल के करियर में कभी ये नहीं सोचा था कि इस प्रोफेशन में कैमरामैन को रिवॉल्वर दिखाकर हाथ पीछे करने के बाद हथकड़ी लगा दी जाती है और कैमरामैन से पूछा जाता है कि तुम्हारे पास कोई हथियार तो नहीं है, ये मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था। मैंने अभी तक बस यही सुना और यही देखा था कि पत्रकार की कभी लोकेशन पर मौत हो जाती है या कभी हंगामे को कवर करते वक्त उसे चोट लग जाती है। लेकिन मैंने पहली बार देखा कि चार पुलिसवाले होटल के अंदर कमरे में ले जाकर किसी कैमरामैन को हथकड़ी लगा देते हैं। यह घटना खुद मेरे साथ मिस्र में बीती है। मिस्र में मीडिया वालों के साथ मारपीट की गई, कैमरे तोड़े गए।

30 जनवरी को जब मुझे पता लगा कि मुझे मिस्र जाना है तो मुजे बहुत खुशी हुई क्योंकि 2-3 दिनों से मैं मिस्र की ही घटना को देख रहा था। वहां काफी समय से विद्रोह की आग भड़की हुई थी। मुझे पता था कि वहां पर काम करना काफी चुनौतीपूर्ण रहेगा, लेकिन मुझे इसी तरह के काम करना अच्छा लगता है इसलिए मिस्र का नाम सुनकर मैं काफी खुश था। एक फरवरी को मैं और मेरे साथ जा रहे सीनियर जर्नलिस्ट सूर्या गंगाधर ने दूतावास जाकर मिस्र का वीजा लगवा दिया। दो फरवरी की सुबह हम लोग मिस्र के लिए रवाना हो गए। शाम को हम लोग काइरो पहुंचे। काइरो के हवाई अड्डे पहुंचने के बाद कस्टम से ही समस्याएं शुरू हो गईं। काइरो हवाई अड्डे पर कस्टम पर पहुंचते ही सबसे बड़ी समस्या भाषा की थी। कस्टम अधिकारियों ने दो घंटे हमें खड़ा रखा। इसके बाद हमने दूतावास से एक कर्मचारी को बुलवाया। अधिकारियों ने हमसे 650 डॉलर कैमरा की सिक्योरिटी जमा करवाने के बाद हवाई अड्डे से जाने दिया।

हवाई अड्डे से बाहर हम जैसे ही शहर में पहुंचे जगह-जगह जनरल पब्लिक चैकिंग चल रही थी। हम जैसे ही अपने होटल के पास पहुंचे वहां पहले से ही रास्ता ब्लॉक किया हुआ था। वहां 15 साल के बच्चों से लेकर 65 साल के बुजुर्ग अपनी कॉलोनी की सेफ्टी के लिए खड़े थे। वहां पर कॉलोनी के लोगों को अपना पासपोर्ट दिखाकर हम अंदर गए। हम कमरे में जाने के बाद कैमरा लेकर बाहर आ गए। वहां एक लड़के से हमने इंटरव्यू देने के लिए पूछा। पहले तो उसने मना कर दिया लेकिन काफी कहने के बाद वह तैयार हो गया, वह काफी डरा हुआ था। उसने बोला कि यहां का माहौल काफी खराब हो गया है इससे पढ़ाई पर भी फर्क पड़ रहा है। जितना जल्दी हो सके इसका समाधान निकलना जरूरी है क्योंकि इंसान के अंदर हमेशा डर बना रहता है, एक हफ्ते से कोई आदमी अपना काम नहीं कर पा रहा है। इसके बाद वह अपने घर की तरफ चला गया।

बाद में 2-3 लड़के आए और हमसे कैमरा बंद करने के लिए बोला, उन्होंने हमें वहां से जाने के लिए बोल दिया। हम होटल के अंदर चले गए। अगले दिन सुबह हम तहरीर चौक गए, वहां पर पूरा कर्फ्यू का माहौल था। वहां सेना के कई टैंक खड़े थे और जगह-जगह पत्थर पड़े हुए थे। जब हम तहरीर स्क्वायर के अंदर गए तो हमें वहां पर डर भी लग रहा था क्योंकि वह एंटी मुबारक लोगों का मुख्य अड्डा था, वहीं पर लोग प्रोटेस्ट कर रहे थे। वहां पर मेरा कैमरा जैसे ही सेना के जवानों की ओर मुड़ा उन्होंने उसे बंद करने के लिए कहा। हमने वहां पर दो घंटे शूटिंग की। इसके बाद होटल से फीड भेजकर हम दोबारा तहरीर चौक गए।

तहरीर चौक पर मीडियावालों को ज्यादा समस्या नहीं हो रही थी। वहां थोड़ा खतरा था लेकिन मीडिया वाले शूटिंग कर सकते थे। जब मैं तहरीर चौक पर शूट कर रहा था तो पास ही एक ग्रुप में झगड़ा हो गया। मैं उस तरफ कैमरा लेकर गया और शूट करने लगा। उसी समय सेना के एक अफसर ने मुझे देख लिया और मुझसे कैमरा बंद करने के लिए बोल दिया। इसके बाद मैने कैमरा बंद कर दिया। इसके बाद वह अफसर मेरे पास आया और मुझसे कैमरा छीन लिया। मैंने उनसे कैमरा मांगा तो उन्होंने कैमरा वापस करने से मना कर दिया और मुझे अपने साथ लेकर जाने लगे। मैंने उस अफसर से काफी निवेदन किया कि मैं अपने एक रिपोर्टर से बात कर लेता हूं या भारतीय दूतावास से संपर्क कर लेता हूं लेकिन उसने मना कर दिया और मुझे तहरीर चौक से निकालकर प्रो मुबारक ग्रुप की ओर ले जाने लगा।

वहां पर दो ग्रुप थे- प्रो-मुबारक और एंटी मुबारक। सबसे ज्यादा समस्या प्रो मुबारक के साथ होती थी, मीडिया पर हमले यह ग्रुप करता था। प्रो मुबारक का कहना था कि हमारे देश में शांति है, मीडिया यहां क्यों आई है। सेना का अफसर मुझे लेकर काफी आगे आ गया लेकिन बार-बार निवेदन करने के बाद उसने मुझे छोड़ दिया। वहां से छूटने के बाद जैसे ही मैं थोड़ी दूर गया मुझे 10-15 लड़कों ने घेर लिया। वो लड़के पहले तो मेरा कैमरा छीनने लगे। जब मैंने उन्हें कैमरा नहीं दिया तो वे उसका टेप निकालने लगे। मैंने टेप निकालकर उन्हें दे दिया। मैं उनसे बात कर ही रहा था कि एक लड़के ने मेरी जेब में हाथ डालकर कुछ पैसे निकाल लिए। जब मैंने टेप उन्हें दी तो उन्होंने मेरे सामने दोनों टेप जला दिए। इसके बाद मैंने एक लड़के के हाथ में अपना आई कार्ड देखा, उसने उसे भी जला दिया। इतनी देर में सेना के जिस अफसर ने मुझे पकड़ा था वह भी वहां आ गया। जब मैं उन लड़कों से छोड़ने के लिए निवेदन कर रहा था तो वह अफसर भी स्थानीय भाषा में शायद यही कह रहा था कि इसे मैंने पकड़ा है छोड़ दो।

इसके बाद मैं वहां से होटल जाने लगा, टैक्सी से थोड़ा आगे निकले ही थे कि फिर से कुछ लड़कों ने मुझे घेर लिया। वहां लोगों में भाषा कि बड़ी समस्या थी। मैं टेप का इशारा करके बता रहा था कि मेरे पास कोई फिल्म नहीं है। वह उस समय मेरा आई कार्ड चेक कर रहे थे, लेकिन मेरे पास आई कार्ड भी नहीं था। वह मुझे वहां से पैदल लेकर जाने लगे इतने में वहां पर फायरिंग और पथराव चालू हो गया। उस वक्त एंटी मुबारक और प्रो मुबारक के बीच जबरदस्त फायरिंग हो रही थी। उन लोगों ने मुझे सेना के हवाले कर दिया।

सेना के अफसरों से जब मैंने कहा कि मेरे कैमरे में टेप नहीं है, मुझे होटल जाना है और मेरे पास आई कार्ड भी नहीं है। लेकिन सेना के अफसर एम शोधे ने मेरे हाथ से कैमरा, पासपोर्ट, मोबाइल, टेप और एक्स्ट्रा बैटरी छीनकर मोबाइल का स्विच ऑफ कर दिया। वे मुझे एक मकान के अंदर ले गए मकान के अंदर उन्होंने अपना अस्थाई ऑफिस बनाया हुआ था। मैंने उनसे भारतीय दूतावास और ऑफिस में फोन करने का बहुत निवेदन किया लेकिन उन्होंने मना कर दिया। इसके बाद सेना के दो जवान और दो लोकल लड़के मुझे उस मकान के पीछे पुराने खंडहर की तरह एक कमरा था वहां ले गए। वहां पहले से ही 4 लड़के जो कि 20 से 25 साल के थे उनको गिरफ्तार करके रखा हुआ था। मुझे भी उनके साथ ही बैठा दिया गया।

वहां 4 लड़के और 5 सेना के जवान थे, किसी को भी अंग्रेजी नहीं आती थी। सेना के एक जवान ने पूछा 'आर यू हिंद?', मैंने बोला यस 'आई एम हिंद'। फिर वह बोला हिंद वन, अमिताभ बच्चन स्टार? उसके आगे उसको कुछ बोलना नहीं आया। जब मैं वहां पर अंदर बैठा था तो बाहर गोलियां चल रही थीं। मैं उस वक्त अपने आपको हैंडिकैप्ड समझ रहा था क्योंकि मेरा कैमरा सेना की कस्टडी में था और बाहर गोलियां चल रही थीं। इस तरह के माहौल में अगर कैमरामैन के पास कैमरा न हो तो वह हैंडिकैप्ड ही हो जाता है। इस तरह के अवसर बार-बार नहीं मिलते।

मुझे वहां पर चार घंटे बिठाकर रखा गया। चार घंटे तक मैं सेना के एक जवान से विनतियां करता रहा कि मुझे एक फोन करने दिया जाए लेकिन वह मना करता रहा। उसके बाद एक मेजर और तीन सिपाही आए। वह अपनी भाषा में सबके पते लिखने लगे। उस समय मुझे डर लगा कि पता नहीं क्या लिख रहे हैं मैंने उनसे पूछने की कोशिश कि लेकिन उन्होंने मना कर दिया और बैठने के लिए बोल दिया। कुछ वक्त बाद तहरीर चौक पर सेना के जिस अफसर ने मुझे पकड़ा था वो भी वहीं पर आ गया।

मैंने उसे अपनी पूरी कहानी बताई लेकिन उसे मेरी बातों पर यकीन नहीं हुआ। सेना का अफसर सोचने लगा कि जब मैंने इसको छोड़ा होगा उसके बाद ये फिर से कहीं शूटिंग करने लगा होगा इसलिए इसे दोबारा पकडा़ होगा। उसने मुझे दोबारा बैठने के लिए कह दिया। मैंने काफी रिक्वेस्ट की कि मुझे ऑफिस या भारतीय दूतावास में फोन करने दिया जाए लेकिन उन्होंने मना कर दिया। मुझे उस वक्त डर लग रहा था। मैंने उस अफसर से बोला कि मेरी कल की फ्लाइट है और मुझे अपना सामान भी पैक करना है, मेरे पास कोई टेप भी नहीं है, मुझे वहां से जाने दिया जाए। कुछ देर बाद वहां एक मेजर आया और उसने मेरी तरफ इशारा करके मुझे कमरे से बाहर बुलवाया।

वह मुझे ऑफिस में चलने के लिए बोलने लगा। मैं उनके ऑफिस में गया वहां पर सेना का वही अफसर एम शोधे एक और अफसर के साथ मौजूद था। उन्होंने मुझे पासपोर्ट और मोबाइल देकर जाने के लिए कहा। दूसरा अफसर तो कैमरा देने के लिए तैयार हो गया था लेकिन एम शोधे बार-बार मना कर रहा था। मैं जब उससे निवेदन कर रहा था तो वह मेरा हाथ पकड़कर दोबारा अंदर करने लगा। मैंने जब कैमरे के बारे में पूछा कि मुझे कैमरा क्यों नहीं दे रहे हो तो उसने कहा कि कल आकर के कैमरा ले जाना। मैंने बोला कल तो मेरी फ्लाइट है मुझे कल भारत वापस जाना है। उसने कहा कि मैं अब कैमरा नहीं दूंगा कल किसी भी टाइम आकर ले जाना। मैं वहां से बगैर कैमरे के निकला। मेरा होटल वहां से 15 किमी. दूर था और वहां कोई टैक्सी भी नहीं थी। सेना के ऑफिस के पास ही हिल्टन होटल था। मैंने सोचा इस होटल में एंट्री कर लेता हूं तो कम से कम सुरक्षित रह सकूंगा।

मुझे सेना के ऑफिस से निकलते ही फिर से दो लोगों ने पकड़ लिया। उन लोगों ने पूछा कि कहां जा रहे हो, मैंने कहा कि इस होटल में मैं रुका हुआ हूं। मैंने उनको अपना पासपोर्ट दिखाया तब जाकर उन्होंने मुझे छोड़ा। होटल के अंदर जाते ही मुझे लगा कि अब मैं सुरक्षित जगह आ गया हूं। मेरे पीछे मेरा परिवार, दोस्त और ऑफिस बड़ी परेशानी में थे क्योंकि कई घंटे से टीवी पर यही न्यूज चल रही थी। मोबाइल ऑन करते ही ऑफिस से फोन आने शुरू हो गए। ऑफिस में मैंने बताया कि अब सुरक्षित हूं। तब जाकर ऑफिस वालों को थोड़ी राहत मिली।

इस पूरी घटना में मुझे ऑफिस की ओर से बड़ा सहयोग मिला, मैं इस अहसान को कभी नहीं भूल पाऊंगा। इसके बाद मेरी सूर्या गंगाधर से बात हुई, उन्होंने मुझे बोला कि तुम्हारा अब वहां से टैक्सी से आना मुश्किल है तुम वहां पर कमरा लेकर रात को वहीं पर रुक जाना। लेकिन यहां पर कोई कमरा खाली नहीं था। इसके बाद भारतीय राजदूत का फोन आया उन्होंने कहा कि वहां पर कई भारतीय पत्रकार रुके हुए हैं उनके साथ कमरा शेयर कर लेना। मैं अभिसार शर्मा के साथ रात को कमरे में रुक गया। सुबह मेरी सूर्या गंगाधर के साथ बात हुई। उन्होंने कहा कि तुम टैक्सी लेकर आ जाओ, फिर दूतावास आ जाना।

मैं सुबह अपने होटल में गया, रिसेप्शन से अपने कमरे की चाबी ली और अपने कमरे में चला गया। मैं कमरे में चला गया तो सूर्या का फोन आया कि तुम कमरे से बाहर मत निकलना होटल के बाहर पुलिसवाले घूम रहे हैं। मैं सूर्या से बात कर ही रहा था कि कमरे के बाहर से किसी ने दरवाजा नॉक किया। मैंने जैसे ही दरवाजा खोला एक पुलिसमैन ने मेरे सिर के पास रिवॉल्वर लगा दी। रिवॉल्वर लगाकर उसने मुझसे पूछा, 'यू हैव एनी वैपन्स' मैंने बोला 'नो आइ हैव नो वैपन्स, आइ एम नॉट ए टैररिस्ट, आइ एम जर्नलिस्ट'। उसके बाद उसने पूछा 'यू हैव एनी कैमरा एंड लैपटॉप' मैंने बोला 'नो आइ हैव नो कैमरा नो लैपटॉप'। उसके बाद उस पुलिसमैन ने दूसरे की तरफ इशारा करके मुझे हथकड़ी पहना दी और मुझे साथ चलने के लिए बोलने लगा।

मैं उनके साथ रिसेप्शन पर आ गया। उन्होंने मुझे वहीं बैठने के लिए कहा फिर होटल के कर्मचारी से बात करने लगे। 10-15 मिनट के बाद सूर्या होटल के अंदर आ गया। सूर्या को देखकर होटल की कर्मचारी ने इशारा किया कि ये भी इनके साथ ही हैं। उसके बाद सूर्या को भी रिसेप्शन पर बैठा लिया। कुछ देर बाद मेरे हाथों की हथकड़ी को खोलकर हम दोनों को पुलिस स्टेशन ले गए। वहां पर हमें दो घंटे तक बैठाए रखा, हम वहां इस इंतजार में बैठे रहे, हमें बताया गया कि हमारा कोई ऑफिसर आएगा वह आपसे बात करेगा। हमारे पासपोर्ट और मोबाइल उन्हीं के पास थे। दो घंटे के बाद एक अफिसर आया, उसने पासपोर्ट चेक किए और हमें वापस छोड़ दिया। उसके बाद वही पुलिसवाले हमें वापस होटल लेकर आए और दोबारा इनवेस्टिगेशन के लिए लेकर जाने लगे।

हम पुलिस की गाड़ी में बैठे, सूर्या ऑफिस में फोन लाइन पर थे। मैं भारतीय राजदूत से फोन पर बात कर रहा था। राजदूत ने कहा कि मेरी पुलिसवालों से बात करवा दीजिए, पुलिसवाले ने बात करने से मना कर दिया। मैंने पुलिसवाले से पूछा कहां लेकर जा रहे हो राजदूत पूछ रहे हैं, पुलिसवाले ने जगह बताने से मना कर दिया। फिर वह हमें किसी कॉलोनी में लेकर गया। मेन रोड पर डेढ़ घंटे खड़ा करके बोला हमारे ऑफिसर आएगा वह आपसे बात करेगा। पुलिसवाले ने कहा कि महीने बाद अगर आप आते तो हमारे गेस्ट होते लेकिन इस वक्त बहुत बुरे इंसान हो। डेढ़ घंटे बाद एक अफसर आया और वह पासपोर्ट लेकर अंदर चला गया। आधे घंटे बाद वह ऑफिसर वापस आया और उसने हमारे पासपोर्ट लौटा दिए। उसके बाद हम होटल में आए तो हमें कहा गया कि आप लोग एक बार चेक आउट कर लीजिए। हमने रूम चेक आउट किया उसके बाद पुलिसवाले हमें भारतीय दूतावास छोड़कर आए। इसके बाद भारतीय दूतावास ने दूसरे होटल में कमरा दिलवा दिया।

बाद में हम दूतावास के पास से ही शूट करके दूतावास से ही फीड भेजते रहे। अगले दिन मैं दूतावास से वहीं के रहने वाले नवीन को लेकर सेना के उसी ऑफिस में पहुंचा जहां पर मेरा कैमरा जमा था। सेना के ऑफिस में एम शोधे मौजूद था। उसने हमें इंतजार करने के लिए कहा और बोला कि हमारा ऑफिसर आएगा उसके बाद कैमरा मिलेगा। कुछ देर में वहां फायरिंग शुरू हो गई तो शोधे ने हमें बोला कि आप लोग अभी यहां से निकल जाइए, शाम को आकर कैमरा ले जाना। शाम को भारतीय दूतावास में काम करने वाला अहमद मेरे साथ गया। एक दूसरे ऑफिसर ने अहमद से कहा कि कैमरा सेना के हैडक्वॉर्टर में जमा है कल आकर ले जाना। अगले दिन मैं और विनय सेना के मुख्यालय पहुंचे। वहां हमें मना कर दिया गया, बोला गया कि वहां कोई कैमरा जमा नहीं है। उसके बाद हम उसी जगह सेना के ऑफिस में गए तो वहां पर एम शोधे ने हमें बताया जो आदमी कल आपके साथ आया था कैमरा वही लेकर गया है।

मैंने नवीन को फोन किया तो उसने मना कर दिया। इसके बाद दूतावास जाकर नवीन और अहमद को लेकर उसी ऑफिस में आया तो शोधे ने मना कर दिया। फिर उसने बोला कि किसी लोकल आदमी ने अपना आई कार्ड दिखाया और कहा कि मैं दूतावास से आया हूं तो मैंने कैमरा उसी को दे दिया। मैंने पूछा आपने कोई रिसीविंग लिया था उसका नाम नोट किया तो उसने मना कर दिया। उसके साथ उसका एक और ऑफिसर बैठा हुआ था उसने कहा कि तुम दूतावास जाओ, वहां जितने कर्मचारी हैं सबसे चेक करो। एम शोधे हमारे साथ दूतावास में आया। उसके बाद उसने मना कर दिया कि इनमें से कोई भी नहीं है।

इसके बाद हमने एक कंपलेंट लिखी लेकिन मुझे पहले से लग रहा था कि इस अफसर की नीयत कैमरे को लेकर खराब हो गई थी। इसीलिए वह शुरू से ही कैमरा नहीं देना चाहता था और झूठ पर झूठ बोल रहा ता। इस तरह की परिस्थिति में हम कुछ ज्यादा नहीं कर सकते थे। इसलिए हमने अंग्रेजी और अरबी भाषा में रिटिन में कंपलेंट लिख ली। अगले दिन हमें भारत वापस आना था। हम हवाई अड्डे आए, वहा पर हम कस्टम अधिकारियों से मिले। उन्होंने हमसे कहा कि पहले कैमरा दिखाओ उसके बाद 650 डॉलर मिलेंगे। हमने कहा कि हमारा कैमरा सेना के अफसरों ने नहीं दिया इसलिए दूतावास के लैटरपैड पर यह कंपलेंट लिखी है। लेकिन इसके बाद भी उन्होंने एक नहीं सुनी औऱ 650 डॉलर रख लिए।

इस घटना में अपने पूरे ऑफिस का, दोस्तों का, रिश्तेदारों का और खासतौर से अभिसार शर्मा, सांतिष नाइल, बरखा दत्त का साथ कभी नहीं भूल पाऊंगा जो कि प्रार्थना कर रहे थे कि मैं जल्दी से भारत वापस आ जाऊं। इन सभी की दुआओं से मैं वापस अपने देश सही-सलामत पहुंच सका।

राजेश भारद्वाज
(राजेश भारद्वाज सीएनएन-आईबीएन न्यूज चैनल में बीते 5 साल से सीनियर वीडियो जर्नलिस्ट के पद पर कार्यरत हैं। तकरीबन 20 सालों से मीडिया में सक्रिय राजेश इराक युद्ध, 2004 के अमेरिकी चुनाव, 2010 में अफगानिस्तान में भारतीयों पर आतंकी हमले को कवर कर चुके हैं।)


यह लेख आईबीएन खबर वेबसाइट से उठाया गया है. लेख को आईबीएन खबर की साइट पर पढ़ने के लिए http://khabar.ibnlive.in.com/blogs/102/587.html लिंक पर क्लिक करें.

1 comment:

Darshan Lal Baweja said...

उम्दा रिपोर्टिंग ....
www.sciencedarshan.in/