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Oct 10, 2018

जेलों और सत्ता के बीच संवाद का डर

जून 2018 में भारत के महिला और बाल विकास मंत्रालय नेजेलों में महिलाएंविषय पर एक रिपोर्ट जारी की जिसका मकसद महिला बंदियों में उनके अधिकारों के बारे में समझदारी कायम करना, उनकी समस्याओं पर विचार करना और उनका संभव समाधान करना है. इस रिपोर्ट में 134 सिफारिशें की गई हैं, ताकि जेल में बंद महिलाओं के जीवन में सुधार लाया जा सके. गर्भधारण तथा जेल में बच्चे का जन्, मानसिक स्वास्थ्, कानूनी सहायता, समाज के साथ एकीकरण और उनकी सेवाभाव जिम्मेदारियों पर विचार के लिए ये सिफारिशें की गई हैं. रिपेार्ट में राष्ट्रीय आदर्श जेल मैन्युअल 2016 में विभिन् परिवर्तन का सुझाव दिया गया है ताकि इसे अंतर्राष्टीय मानकों के अनुरूप बनाया जा सके.

इस रिपोर्ट को देखते-पढ़ते हुए मुझे एक बार फिर एक ऐसी महिला का ख्याल आया जिसने खुद जेल में बंद रहते हुए जेल में उसी परिवेश में रह रही महिलाओं की परिस्थिति का बेहद सटीक आकलन किया था. इस महिला का नाम था- मेरी टेलर.

बिहार की हजारीबाग जेल में अपने अनुभवों पर आधारित किताबमाई ईयर्स इन एन इंडियन प्रिजनके जरिए मेरी टेलर ने भारतीय जेलों के हर कोने को पूरी सच्चाई से अपने शब्दों में पिरो दिया है. बेशक इस किताब को भारतीय जेलों पर अब तक की सबसे खास किताबों में से एक माना जाता है. इस ब्रितानी महिला को 70 के दशक नक्सली होने के संदेह में भारत में गिरफ्तार किया गया था. 5 साल के जेल प्रवास पर लिखी उनकी यह किताब उस समय की भारतीय जेलों की जीवंत कहानी कहती है. इसमें उन्होंने जेलों में महिलाओं की स्थिति, मानसिक और शारीरिक आघात, अमानवीय रवैये और बेहद मुश्किल हालात को अपनी नजर से काफी महीनता से पिरोया है. जाने क्यों मुझे ऐसा लगता है कि रिपोर्ट को बनाते समय मंत्रालय ने शायद जेलों पर लिखे गए और लिखे जा रहे साहित्य की पड़ताल करने की जहमत नहीं उठाई होगी क्योंकि हम यह मानते हैं कि सरकारी रिपोर्ट को लिखते समय अपने मौलिक शोध या अनुभव के आधार पर लिखे साहित्य की भला क्या अहमियत. लेकिन असल में ऐसा है नहीं.

बहरहाल, मेरी टेलर ने अपनी किताबमाई ईयर्स इन एन इंडियन प्रिजनके जरिए जेल की जिंदगी को जैसे पूरी तरह से उधेड़ दिया है. हालांकि वे तो खुद को इतिहासकार मानती हैं और ही कोई राजनीतिक टिप्पणीकार लेकिन इससे जेलों की जिंदगी के सच्चे दस्तावेज को अपने में समेटे इस किताब की अहमियत कम नहीं होती. यह किताब आज भी रंग भाषा, देश- इन सब से परे आज भी जेलों के बंद दरवाजे उन सब के लिए खोलती है जिन्हें मानवाधिकारों की परवाह है.

जेल के हर चप्पे को गौर से देखती हुई मेरी टेलर बड़ी सहजता और तल्लीनता से इस बात का आकलन करती हैं कि वो कौन सी महिलाएं हैं जो जेल में आती है, वे कौन-सा अपराध करती हैं और क्यों करती हैं. उऩ्होंने कई महिला कैदियों के अपराध की वजह और फिर मिली सजा पर एक करुण दस्तावेज बुना है. बुलकर्णी, गुलाबी, पन्नो- जाने ऐसी कितनी महिलाएं हैं जिनको करीब से देख कर मेरी टेलर ने अपनी और उनकी स्थिति की मजबूरियों को बार-बार समझा. इन महिलाओं के नाम इतिहास में कहीं नहीं है क्योंकि वे शायद कहीं कोई मायने नहीं रखतीं. यही जेलों का सच भी है लेकिन इस बात को कौन नकार सकता है कि इन सभी महिलाओं के पास ऐसा कुछ था जो जेल सुधार और मानव सुधार से जुड़े लोगों के लिए जानना जरूरी था.

यह किताब अदालत से सजा पाने के बाद जेल में आई महिलाओं की जिंदगी का एक दूसरा ही चेहरा दिखाती है जिन्हें परिवार और समाज तुरंत अपनी नजरों से काट देता है. एक महिला ने किसी की हत्या इसलिए कर दी क्योंकि उसकी बेटी के अनचाहे गर्भ पर कोई बार-बार कटाक्ष दे रहा था. कुछ महिलाएं जेल में इसलिए थीं क्योंकि उन्होंने एक बेहद मामूली अपराध किया था और फिर जमानत उन्हें नसीब नहीं हो पा रही थी. कुछ महिलाएं इसलिए जेल में थीं क्योंकि जब उनके साथ बलात्कार होने वाला था, तब उन्होंने अपनी इज्जत और अपने अपराधी को मारने के बीच में किसी एक को चुना और चाहते हुए भी जो हुआ, वह हत्या थी.

जेल कें अंदर ऐसी अंतहीन कहानियां और त्रासदियां भरी हुईं हैं. मेरी टेलर इऩ्हें हर रोज देख रही थीं. जेल के अंदर आधा पके चावल, खराब सब्जियां, जली हुई रोटियां- ऐसा बहुत कुछ था जो किसी के लिए पचा पाना बहुत मुश्किल था. वो ये भी बताती हैं कि जेलों के अंदर भ्रष्टाचार अपने चरम पर था. हर मामूली जरूरत और सुविधा की कीमत यहां पर ली जाती थी. दवाई से लेकर बच्चों के लिए दूध तक हर चीज पर जेल के अधिकारी अपना हुक् चलाते थे और उसमें अपना हिस्सा लेते थे. जेल का सुप्रीटेंडेंट अपने आप को राजा मानता था और सभी बंदियों को अपना एक निजी सेवक. जेल के इन बंदियों की अपनी आवाज नहीं थी. उनके अपने कोई अधिकार नहीं थे. जेल के अंदर असल में एक और भी जेल हो सकती है इसको मेरी टेलर ने बखूबी समझा और समाज को समझाया.

जेल में जब किसी बड़े अधिकारी का दौरा होता था तो सुप्रीटेंडेंट और बाकी अधिकारी पूरी कोशिश करते थे कि वे बंदियों से कोई बात कर पाए और अगर कोई बंदी अपनी आवाज को उठा लेता था तो उस बंदी को इसका खामियाजा उठाना पड़ता था.

उन्होंने जेलों में संवादहीनता पर भी खुलकर लिखा है. वे बताती हैं कि बंदियों को टीवी देखना तो बहुत दूर, अपने लिए अखबार तक नसीब नहीं होता था. उन्हें घर से आने वाले खत या तो नहीं मिलते थे या फिर देरी से दिए जाते थे. खतों को लिखने के लिए उन्हें कलम और कागज मुहैया नहीं करवाया जाता था. उन्हें यह भी पता नहीं होता था कि उनके अपने गांव या शहर की क्या स्थिति है. वे तो राजनीतिक बदलाव से वाकिफ होती थीं, ही अपने परिवार या समाज में रही हलचल से. संवाद की सभी खिड़कियां जैसे उनके लिए बंद कर दी जाती थीं. शायद जेलें यही चाहती थीं और आज भी काफी हद तक यही चाहती हैं.

आज भी हिंदुस्तान की कई जेलें ऐसी हैं जो संवादहीनता में ही जीती हैं. कई बार ऐसे बंदी भी मिलते हैं जिन्हें यह तक ठीक से मालूम नहीं होता कि उनके अपने राज् में किसकी सरकार है. जेलों में सब कुछ सेंसर होकर पहुंचता है गोया जेल के बंदी अगर समर्थ, सक्षम, साक्षर, सबल या संवाद से लैस हो गए तो वे सत्ता को ही पलट देगें. कई बार यह समझना मुश्किल होता है जेलों से सत्ता डरती है या सत्ता से जेलें.

Courtesy – Zee News 

http://zeenews.india.com/hindi/special/vartika-nanda-blog-on-fear-of-dialogue-between-prisons-and-power/442602

4 comments:

Vedant P said...

To be able to communicate is every citizen's right. Dr Vartika Nanda and her team, over the years, have managed to liberate the minds of the inmates and tried to find their inner voices through various art competitions, poems and songs. Their work, especially the various books and YouTube videos are a must to check out for all the people, to know the different unheard perspectives.
#tinkatinka #vartikananda #humanrights #prisonreforms

Unknown said...

Even though we have books like 'My Years in an Indian Prison' most people of our country are not aware of the condition of prisoners in jails, and most people are not bothered to learn about it. It is great news that the government is working for the betterment of prisoners, but whatever measures we take I think we also need to take into consideration the mentality of the public towards prisoners. Even if we introduce different measures to reform prison inmates, I feel that we must do something to change the attitude of the public towards prisons because how the inmates are treated after they are released is also a part of their reformation. #tinkatinka #vartikananda #prisonreforms #humanrights

Unknown said...

Inmates have their human rights intact this is something which has been reiterated by the apex court but the very implementation of these orders, the guidelines by HRD are often not found in most jails of the country. #vartikananda #tinkatinka #jail #prison

Ananya said...

Through Tinka Tinka Jail Reforms, Vartika Nanda has pioneered a movement in India focusing on prison reforms and reformation of the inmates by encouraging them through art, culture, literature, and media. She has written three books Tinka Tinka Tihar, Tinka Tinka Madhya Pradesh, Tinka Dasna, and gives a true representation of life inside prisons. Instead of sensationalizing, she has written about the true and lived experiences of inmates and even their children who unfortunately are also lodged inside prisons. She brings a softer side to inmates who are troubled because they can’t meet their families, but even the smallest of things gives them joy like music, dancing, painting, etc. Her newest initiative is opening a prison radio in Haryana, she has earlier done so in Agra. Workshops were held to train inmates and to develop their talents and creativity. The work of Dr. Vartika Nanda, the founder of the movement of prison reforms in India, is a testament to the idea that rehabilitation and not punishment is the answer. The radio will also keep the inmates informed about their rights and will give them respite in these challenging times of the pandemic when the inmates cannot have any visitors.#tinkatinka #tinkamodelofprisonreforms #awards #vartikananda #prisonreforms