अप्रैल 15, 2020
आज से कोरना डायरी के दूसरे हिस्से को लिखना शुरु किया है। सोच रहीं हूं कि इंसान जो कभी नहीं सोचता, वो भी कई बार हो जाता है। कितना बड़ा सबक है यह जिंदगी का। इतने साल में जब भी किसी ने कहा कि यह काम कल हो जाएगा, मेरा यकीन डगमगाया। अब इस बात पर यकीन हो गया कि -कल- कुछ नहीं होता। जो है, बस अभी है।
तिनका तिनका के तहत पिछले एक साल से सर पर बड़ा जिम्मा है। एक शायर ने फोन कर जब अपनी तारीफ के पुल बांधे तो मैं सोचने लगी कि इंसान कम बोलना और इतराना कब सीखेगा लेकिन यह भी है कि ऐसे संवाद खुद के अंदर झांकने के सुंदर अवसर दे देते हैं।
मेरे कई साथी पिछले कई दिनों से स्व- प्रचार में जुटे हैं। काश, कहीं कोई यह कह देता कि कोरोना काल में झूठ बोलना भी जानलेवा हो सकता है तो दुनिया का कितना भला होता।
वर्तिका नन्दा
अप्रैल 16, 2020
किताबों और कागजों के ढेर में कितना कुछ ऐसा मिला जिसे पलटने तक का वक्त कभी नहीं मिला था। करने को कितना कुछ।
अप्रैल 23, 2020 अमर उजाला
कोरोना से जंग: महाराष्ट्र की जेल में शुरू हुआ नया प्रयोग
https://www.amarujala.com/columns/blog/coronavirus-covid-19-india-jails-prisons-fighting-with-proper-precautions?pageId=1
लॉक डाउन के बीच जेलें अनजानी और अछूती हैं लेकिन कोरोना के संकट को लेकर उनके काम में कहीं कोई कमी नहीं आई है। एक खबर महाराष्ट्र से आई है। महाराष्ट्र के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक सुनील रामानंद ने एक नई पहल की है। उन्होंने महाराष्ट्र की पांच जेलों को पूरी तरह से लॉकडाउन कर दिया है । यह जेलें हैं- मुंबई आर्थर और बायकुला, केंद्रीय जेल, ठाणे, कैंद्रीय जेल, कल्याण और कैंद्रीय जेल, पुणे ।लॉकडाउन के दौरान इन सभी जेलों में अब कोई नया बंदी नहीं आ सकेगा। नए बंदियों को या तो किसी उप-जेल में भेजा जाएगा या फिर पास के किसी ग्रामीण क्षेत्र की जेल में। इस दिशा में एक बड़ा कदम यह भी कि जेल सुपरिटेंडेंट और सभी जरूरी स्टाफ को निर्देशों के साथ 13 अप्रैल को ही उन्हीं की जेलों में लॉकडाउन कर दिया गया। अब वे इस जेल में बाकी बंदियों के साथ एक अलग परिसर में रह रहे हैं।लॉकडाउन की अवधि पूरी होने तक वे जेल से बाहर नहीं आएंगे। जेल के लिए आने वाले सामान जैसे कि दूध और सब्जी- इनके प्रवेश की अनुमति है लेकिन इसके लिए भी एक पूरी ड्रिल की जा रही है ताकि किसी भी तरह से कोई संक्रमण जेल में ना आ सके। यह फैसला खास तौर पर इसलिए लिया गया है क्योंकि इन पांचों जेलों में अपनी क्षमता से कहीं ज्यादा भीड़ है और संक्रमण के आने का मतलब होगा- स्थिति का पूरी तरह से नियंत्रण से बाहर चले जाना। मज़े की बात यह है कि महाराष्ट्र के इस प्रयोग को अब देश की कुछ ओर जेलें भी अपनाने का मन बना रही हैं। इनमें हरियाणा की जेल भी शामिल है।
महाराष्ट्र की जेलों से करीब 5000 लोगों को पैरोल पर रिहाई देने की कोशिश चल रही है। करीब तीन हफ्ते पहले महाराष्ट्र सरकार ने कोरोना वायरस के प्रकोप के मद्देनजर राज्य की जेलों में सात साल अथवा उससे कम की कैद की सजा काट रहे 11000 कैदियों को पैरोल पर रिहा करने का आदेश दिया था। इसके तहत विचाराधीन कैदियों को जमानत देने तथा निर्धारित सजा से अधिक काट चुके लोगों को पूर्णत: रिहा करने पर विचार किया जा रहा है। गृह मंत्रालय ने पहले ही महाराष्ट्र के नौ केंद्रीय कारागारों (मुंबई, ठाणे, खारघर, नासिक, पुणे, औरंगाबाद, कलंबा, अमरावती और नागपुर) को भारी भीड़ के कारण कैदियों को स्थानांतरित करने के लिये कह दिया था। यह निर्धारित करने के लिए कि किस श्रेणी के कैदियों को पैरोल या अंतरिम जमानत पर रिहा किया जा सकता है, राज्य के गृह मंत्रालय ने एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति नियुक्त की है जिसमें राज्य विधिक सेवा समिति, प्रमुख सचिव (गृह) और महानिदेशक (कारागार) शामिल हैं।
भारत की जेलों में करीब 114 प्रतिशत की ओवरक्राउडिंग है और साथ ही कम से कम 33 प्रतिशत स्टाफ की कमी भी। ऐसे में जेलों के लिए सतर्कता बरतना बेहद जरूरी है क्योंकि भीड़ भरी जेल में वायरस का आने का मतलब यह है कि पूरी जेल तुरंत उससे प्रभावित हो सकती है। ऐसा होना बेहद खतरनाक होगा।
सुनील रामानंद की इस कोशिश से चार बातें सामने आती हैं। एक, कोरोना से निपटने को लेकर जेलों की तत्परता और तैयारी, दूसरे, समय के अनुरूप सूझबूझ। तीसरे, भीड़ से ठसाठस भरी जेलों को लेकर ढीली कानूनी प्रक्रिया और चौथे, जेल अधिकारियों और स्टाफ की खुद को ही जेल में बंद कर लेने की मजबूती। कोरोना को लेकर पूरी दुनिया की चिंताओं के बीच जेलें पहले की ही तरह अपने कर्म मे जुटी हैं। जरा उस भाव को सोचिए जिससे जेल के यह अधिकारी और स्टाफ खुद ही जेल के अंदर बंद होने के लिए राजी हो गए होंगे तकि रोज की आवाजाही से बंदियों में वायरस आने का कोई खतरा न पनपे। कई जेलों ने इस दौर में शानदार मिसालें कायम की हैं। वे अनकही न रह जाएं, इसलिए देश की जेलों को समर्पित तिनका तिनका अभियान इन कोशिशों को आपस में बांधने के प्रयास में जुट गया
ऐसा लगता है कि कोरोना को हराने में सिर्फ बाहर की दुनिया नहीं बल्कि जेल की दुनिया भी पूरी तैयारी कर चुकी है।
आज से कोरना डायरी के दूसरे हिस्से को लिखना शुरु किया है। सोच रहीं हूं कि इंसान जो कभी नहीं सोचता, वो भी कई बार हो जाता है। कितना बड़ा सबक है यह जिंदगी का। इतने साल में जब भी किसी ने कहा कि यह काम कल हो जाएगा, मेरा यकीन डगमगाया। अब इस बात पर यकीन हो गया कि -कल- कुछ नहीं होता। जो है, बस अभी है।
तिनका तिनका के तहत पिछले एक साल से सर पर बड़ा जिम्मा है। एक शायर ने फोन कर जब अपनी तारीफ के पुल बांधे तो मैं सोचने लगी कि इंसान कम बोलना और इतराना कब सीखेगा लेकिन यह भी है कि ऐसे संवाद खुद के अंदर झांकने के सुंदर अवसर दे देते हैं।
मेरे कई साथी पिछले कई दिनों से स्व- प्रचार में जुटे हैं। काश, कहीं कोई यह कह देता कि कोरोना काल में झूठ बोलना भी जानलेवा हो सकता है तो दुनिया का कितना भला होता।
वर्तिका नन्दा
अप्रैल 16, 2020
किताबों और कागजों के ढेर में कितना कुछ ऐसा मिला जिसे पलटने तक का वक्त कभी नहीं मिला था। करने को कितना कुछ।
अप्रैल 23, 2020 अमर उजाला
कोरोना से जंग: महाराष्ट्र की जेल में शुरू हुआ नया प्रयोग
https://www.amarujala.com/columns/blog/coronavirus-covid-19-india-jails-prisons-fighting-with-proper-precautions?pageId=1
लॉक डाउन के बीच जेलें अनजानी और अछूती हैं लेकिन कोरोना के संकट को लेकर उनके काम में कहीं कोई कमी नहीं आई है। एक खबर महाराष्ट्र से आई है। महाराष्ट्र के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक सुनील रामानंद ने एक नई पहल की है। उन्होंने महाराष्ट्र की पांच जेलों को पूरी तरह से लॉकडाउन कर दिया है । यह जेलें हैं- मुंबई आर्थर और बायकुला, केंद्रीय जेल, ठाणे, कैंद्रीय जेल, कल्याण और कैंद्रीय जेल, पुणे ।लॉकडाउन के दौरान इन सभी जेलों में अब कोई नया बंदी नहीं आ सकेगा। नए बंदियों को या तो किसी उप-जेल में भेजा जाएगा या फिर पास के किसी ग्रामीण क्षेत्र की जेल में। इस दिशा में एक बड़ा कदम यह भी कि जेल सुपरिटेंडेंट और सभी जरूरी स्टाफ को निर्देशों के साथ 13 अप्रैल को ही उन्हीं की जेलों में लॉकडाउन कर दिया गया। अब वे इस जेल में बाकी बंदियों के साथ एक अलग परिसर में रह रहे हैं।लॉकडाउन की अवधि पूरी होने तक वे जेल से बाहर नहीं आएंगे। जेल के लिए आने वाले सामान जैसे कि दूध और सब्जी- इनके प्रवेश की अनुमति है लेकिन इसके लिए भी एक पूरी ड्रिल की जा रही है ताकि किसी भी तरह से कोई संक्रमण जेल में ना आ सके। यह फैसला खास तौर पर इसलिए लिया गया है क्योंकि इन पांचों जेलों में अपनी क्षमता से कहीं ज्यादा भीड़ है और संक्रमण के आने का मतलब होगा- स्थिति का पूरी तरह से नियंत्रण से बाहर चले जाना। मज़े की बात यह है कि महाराष्ट्र के इस प्रयोग को अब देश की कुछ ओर जेलें भी अपनाने का मन बना रही हैं। इनमें हरियाणा की जेल भी शामिल है।
महाराष्ट्र की जेलों से करीब 5000 लोगों को पैरोल पर रिहाई देने की कोशिश चल रही है। करीब तीन हफ्ते पहले महाराष्ट्र सरकार ने कोरोना वायरस के प्रकोप के मद्देनजर राज्य की जेलों में सात साल अथवा उससे कम की कैद की सजा काट रहे 11000 कैदियों को पैरोल पर रिहा करने का आदेश दिया था। इसके तहत विचाराधीन कैदियों को जमानत देने तथा निर्धारित सजा से अधिक काट चुके लोगों को पूर्णत: रिहा करने पर विचार किया जा रहा है। गृह मंत्रालय ने पहले ही महाराष्ट्र के नौ केंद्रीय कारागारों (मुंबई, ठाणे, खारघर, नासिक, पुणे, औरंगाबाद, कलंबा, अमरावती और नागपुर) को भारी भीड़ के कारण कैदियों को स्थानांतरित करने के लिये कह दिया था। यह निर्धारित करने के लिए कि किस श्रेणी के कैदियों को पैरोल या अंतरिम जमानत पर रिहा किया जा सकता है, राज्य के गृह मंत्रालय ने एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति नियुक्त की है जिसमें राज्य विधिक सेवा समिति, प्रमुख सचिव (गृह) और महानिदेशक (कारागार) शामिल हैं।
भारत की जेलों में करीब 114 प्रतिशत की ओवरक्राउडिंग है और साथ ही कम से कम 33 प्रतिशत स्टाफ की कमी भी। ऐसे में जेलों के लिए सतर्कता बरतना बेहद जरूरी है क्योंकि भीड़ भरी जेल में वायरस का आने का मतलब यह है कि पूरी जेल तुरंत उससे प्रभावित हो सकती है। ऐसा होना बेहद खतरनाक होगा।
सुनील रामानंद की इस कोशिश से चार बातें सामने आती हैं। एक, कोरोना से निपटने को लेकर जेलों की तत्परता और तैयारी, दूसरे, समय के अनुरूप सूझबूझ। तीसरे, भीड़ से ठसाठस भरी जेलों को लेकर ढीली कानूनी प्रक्रिया और चौथे, जेल अधिकारियों और स्टाफ की खुद को ही जेल में बंद कर लेने की मजबूती। कोरोना को लेकर पूरी दुनिया की चिंताओं के बीच जेलें पहले की ही तरह अपने कर्म मे जुटी हैं। जरा उस भाव को सोचिए जिससे जेल के यह अधिकारी और स्टाफ खुद ही जेल के अंदर बंद होने के लिए राजी हो गए होंगे तकि रोज की आवाजाही से बंदियों में वायरस आने का कोई खतरा न पनपे। कई जेलों ने इस दौर में शानदार मिसालें कायम की हैं। वे अनकही न रह जाएं, इसलिए देश की जेलों को समर्पित तिनका तिनका अभियान इन कोशिशों को आपस में बांधने के प्रयास में जुट गया
ऐसा लगता है कि कोरोना को हराने में सिर्फ बाहर की दुनिया नहीं बल्कि जेल की दुनिया भी पूरी तैयारी कर चुकी है।
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