Featured book on Jail

LANGUAGE AND PRINCIPLES OF ONLINE NEWS WRITING

Dec 10, 2015

Tinka Tinka India Awards: Media Coverage



http://abpnews.abplive.in/india-news/tinka-tinka-india-award-announced-in-the-field-of-poem-prose-and-painting-293357/

http://www.tribuneindia.com/news/chandigarh/community/burail-inmate-gets-tinka-tinka-india-award/169076.html
shorturl.at/nzBSX
http://www.dailypioneer.com/state-editions/chandigarh/inmate-of-burail-jail-awarded-for-writing.html#
http://manglatimes.com/tinka-tinka-india-awards/

Nov 24, 2015

Tinka Tinka Tihar: Tamil: Indian Languages Festival: 2015

Authors/ Editors: Vartika Nanda and Vimla Mehra

Tinka Tinka Tihar: Hindi and English

Event: Release of Tamil edition

Platform: Indian Languages Festival

Location: India Habitat Centre, New Delhi

Year: 2015






The Tamil translation of Tinka Tinka Tihar, a musical video featuring the inmates of Tihar Jail, has been published as a book by Tinka Tinka Foundation. The book presents the songs in Tamil, Hindi, and English languages, along with the original Hindi version and English translation. It has pictures and stories of the inmates who created them, conveying the message of respect and compassion for the prisoners and motivating them to change their lives through art and culture.


The launch of the Tinka Tinka Tihar Tamil version is a landmark in India's prison reforms and human rights journey. It shows the power of music and creativity to heal and empower the oppressed sections of society.



Tinka Tinka Tihar : Tamil Version: 2015


Jun 8, 2015

Tinka @The Hindu

Life in Tihar and Beyond…

A book of poetry, written by four incarcerated women, has now made it to the Limca Book of Records


Year: 2015

Tinka @The Hindu



May 7, 2015

2015: Lok Sabha Speaker Sumitra Mahajan releasing first ever musical video with inmates as singers & performers: Tinka Tinka Tihar

Location: Parliament House, Delhi 
Year: 2015

“Tinka Tinka Tihar”, – a the musical video song that was born amidst the gray, lifeless imprisonments of inmates who were ignited with creativity and the spark of hope – was produced by Lok Sabha TV, and released in the Parliament House Chamber by Sumitra Mahajan, Hon’ble speaker, Lok Sabha in May 2015. 

The musical video found its way to be shot inside jail number 2 of Tihar, conceptualised, scripted and directed by Vartika Nanda, a prison reformer and journalist. The video song broke records of being first ever of its kind to have been shot in a prison - and that too, in the largest prison in South Asia. A song that resonated with many hearts and souls. A song that was called “Tinka Tinka Tihar”.





Apr 23, 2015

2015: Tinka Tinka Tihar: Limca Book of Records

Location: Tihar, Delhi
Year: 2015

Co-authored by Vartika Nanda and Vimla Mehra (IPS), Director General, Tinka Tinka Tihar, is the first of its kind, featuring a collection of poems written by selected female inmates of the Tihar prison complex. Published in both English & Hindi by Rajkamal Prakashan, this book was released by the then Union Minister of Home Affairs, Shri Sushil Kumar Shinde at the APCCA Conference in Vigyan Bhawan in New Delhi in September, 2013. This book is a unique effort to give platform to women inmates lodged in Tihar jail. This book was hailed by various media channels, including NDTV and Hindi website of the BBC. This book has already been translated into Italian, Tamil, Malayalam and Gujarati.






Mar 22, 2015

अभी जो कहा

कोई थी निर्भया  

                        वर्तिका नन्दा

एक थी भंवरी देवी, एक थी प्रिदर्शिनी मट्टू, एक थी नैना साहनी। इनका नाम हम जानते थे। लेकिन एक थी

वो, एक थी यह। देश में एक मिनट में होने वाले कम से कम तीन अपराध। किसी जघन्य अपराध की बलि

चढ़तीं औरतें जिन पर एक कॉलम की खबर आई या कई बार वो भी नहीं। खबर में उम्र का जिक्र, 5 डबल्यू,1

एच। जांच और अदालती कार्यवाही के बीच जनता की स्मृति से असली और नकली नाम अक्सर कहीं खो जाता

है और उनके मानस से अपराध का दर्द भी।


लेकिन एक थी निर्भया। उसके साथ जो हुआ, उसने देश के अवचेतन को हिलाया, भिगोया, सहमाया और

हिम्मत दी कि वह एकजुट हो जाए। जनता के सब्र का बांध आखिर में टूट गया। सत्ता पर कांच की चूड़ियां

और बेजान सिक्के फेंक कर उसने वह संदेश दिया जो संचार की एक नई परिभाषा है। 16 दिसंबर के बाद इस

देश से अपराध, खास तौर पर महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराध पर एक नई बहस का पौधा उगा था

लेकिन वो फिर कहीं गुम हो गया लगता है।


यहां सवाल का बवाल भी याद आता है। शशि थरूर सबसे पहले कहते हैं कि पीड़ित का नाम क्यों न बताया

जाए। भारत जैसे देश में खास तौर पर पीड़ित और उसका परिवार डर और सदमे में रहता है। वह चुप्पी साध

लेता है।  हमारी परिपाटी ऐसी है कि पीड़िता बरसों यह कहने से बचती है कि वह बलात्कार या घरेलू हिंसा की

शिकार है क्योंकि नाम सार्वजनिक होने के बाद जो नई यात्रा शुरू होती है, वह सिवाए एक पीड़ित के कोई भी

समझ नहीं सकता। यही वजह है कि तमाम चमकदार कानूनों और धमाकेदार बहसों के माहौल के बीच भी

भारत के पीड़ित के साथ अक्सर बनी रहती है – एक भीगी चुप्पी।


लेकिन इस बार चुप्पी टूटी थी। हालांकि इस बार मीडिया ने पूरी सतर्कता बरती कि उसकी वजह से पीड़ित की

पहचान न खुले पर पीड़ित के परिवार ने चुप्पी तोड़ दी। यह हिम्मत थी और समाज के प्रति गूढ़ विश्वास भी।

बलात्कार की रिपोर्टिंग का एक नया चेहरा उभर कर सामने आया। पर बात नाम की है। शेक्सपीयर ने कहा था

– नाम में क्या रखा है। पर  16 दिसंबर के बाद से नाम की जरूरत का आकार इतना बड़ा हो गया कि बाकी

चीजें बेनाम लगने लगीं। देश की शीर्ष नेता खुद उसके घर गईं और अब एक राजनीतिक दल के सौजन्य से

ज्योति के नाम पर रख दिया गया है एक साइंस सेंटर। इसके अपने खतरे हैं।


पीड़ित पहले भी थे, आज भी हैं, कल भी होंगे। तो क्या जिन पीड़ितों का नाम सार्वजनिक न हुआ, वे कम हो

गए। क्या सार्वजनिक होने के बाद पीड़ित के सम्मान का यही एक इकलौता रास्ता है, क्या जनता और मीडिया

सारी ताकत के साथ एकजुट होकर एक आंदोलन न बनाती तो यह मामला इस परिप्रक्ष्य में सामने आता, जैसे

आया है और क्या नाम के इस नए पन्ने के खुलने के बाद आने वाले समय में पीड़ितों के सामने अपने नाम

को बेपरदा करने का मानसिक दबाव बनेगा और जो अपना नाम न बताना चाहेंगें, उनके लिए राजनीति लैंस

किसी और कोण से काम करेगा।


और इससे बड़ा सवाल। क्या पीड़ित के सम्मान के और विकल्प हैं। असल में भारत जैसे देश में नाम की

अपनी एक कहानी है। कुछ नामों पर इतनी सड़कें हैं कि पूरी दुनिया की सड़कें सकुचा जाएं। चौराहे, मूर्तियां,

पुल, डाकटिकट वगैरह किसी विशेष के नाम पर करने की लंबी कवायद चलती है। कुछ नाम हमें वाकई योग्य

दिखते हैं जबकि कई योग्यता के पैमाने पर अ-मान्य। हमारे यहां नामों की कहानी राजनीतिक पहिए से चिपकी

मानी जाती रही है और नामों को लेकर तीखी टिप्पणियों का इतिहास भी रहा है।


इन सारी कवायदों के बीच कोशिश होती है कि नाम जिंदा रहे। काम भी जिंदा रहे और आने वाली पीड़ियां उस

नाम को आगे ले जा सकें। लेकिन जहां तक सवाल पीड़ित का है, तो उसका असल सम्मान शायद कार्यवाई से

होता है। उन कामों से कि वे घटनाएं दोबारा न हों और उन कामों से भी कि पीड़ित को यह विश्वास जगे कि

सत्ता, समाज और पुलिस सच में उसके साथ है।


पर तमाम कोशिशों के बाद भी ऐसा होता लगता नहीं। अब भी यह बात कठोरता और एकमने के साथ सामने

नहीं आई है कि किसी भी दल में ऐसे उम्मीदवार को जगह नहीं मिलेगी जो ऐसी वारदातों के आरोप में घिरा

पाया जाएगा। महिला अधिकारों और उसकी सुरक्षा का जिम्मा लिए संस्थाओं की तरफ से भी कोई ऐसा ठोस

काम नहीं हुआ है कि रौशनी दिखे। निर्भया जिंदगी और मौत से लड़ती रही और बाहर औरत के खिलाफ

जमकर बयानबाजी भी होती रही। जिन्होंने बयान दिया, उनका किसी राजनीतिक दल ने बहिष्कार नहीं किया।

हेल्पलाइन शुरू हुई पर साथ ही लड़खड़ा गई।


पीड़ित के दर्द को सबसे ज्यादा आत्मसात इस देश की जनता और मीडिया ने किया। लगातार कटाक्ष और

अपमान का सामना करता भारत का अपरिपक्व कहलाने वाला मीडिया निर्भया मामले में बेहज संजीदा दिखा।

कई चैनलों ने नए साल के विशेष कार्यक्रम तक रद्द कर दिए। वे निर्भया को भूले नहीं। उन्होंने भूलने दिया भी

नहीं। लेकिन सत्ता शायद फिर भूल गई। 1000 करोड़ के निर्भया फंड का क्या हुआ, कोई नहीं जानता (हां, मार्च

2015 में एक अंग्रेजी अखबार ने यह खुलासा जरूर किया कि कम से कम 800 करोड़ अब तक खर्च नहीं हुए

हैं और जो बाकी खर्च हुए, उनका भगवान मालिक)


जिसका काम उसी को साजे। सम्मान करने का काम जनता पर छोड़ा जा सकता है। वह कीजिए जिसकी जनता

को आपसे दरकार है – और वह है – एक सशक्त सुशासन, सतर्क विपक्ष, सक्रिय आयोग, मानवीय पुलिस,

समय पर न्याय और शालीन व्यवहार।


श्रद्धांजलि यहीं से शुरू होती है और ऐसी श्रद्धांजलियां जीती भी हैं।

(यह लेख 2014 में छपी किताब ख़बर यहां भी – का एक हिस्सा है। इसे सामयिक प्रकाशन ने छापा है)


Mar 14, 2015

मुलायम सिंह यादव के नाम वर्तिका नन्दा का खुला पत्र : An Open Letter to Mulayam (Singh Yadav) from Vartika Nanda

2015: Verses across Bars : The Hindu

Verses across Bars: The Hindu
Year: 2015

On February 19, 2014, Tinka Tinka Tihar and its testament to the power of poetry as a medium of expression, healing, and transformation found its way to the pages of The Hindu. The esteemed newspaper in the article ‘Verses across Bars’ introduces the unique and remarkable book of poems written by women inmates of Tihar, India’s largest prison, titled Tinka Tinka Tihar and edited by Dr Vartika Nanda, a journalist, media educator, and a prison reformer.

The article gives an insight into the process of creating the book, and the challenges and rewards of working with the inmates, highlighting the importance of giving a platform to the marginalized and voiceless sections of society, who are often ignored or stigmatized by the mainstream as the author writes, “ Even though society at large wants to maintain distance from prisoners, there are some who think about their life, aspirations, and future. It is a tribute to the human spirit that can overcome adversity and find hope in the darkest of situations.