कोरोना, जेल, रिहाई और रेडियो
डॉ. वर्तिका नन्दा
देश में कोरोना के बढ़ रहे मामलों को संज्ञान में लेते हुए हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने जेलों में भीड़ कम करने के निर्देश दिए और कहा कि जिन कैदियों को पिछले साल महामारी के मद्देनजर जमानत या पैरोल दी गई थी, उन्हें फिर से यह सुविधा दी जाए। एक फैसले का हवाला देते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि उन मामलों में यांत्रिक रूप से गिरफ्तारी से बचें, जिनमें अधिकतम सजा सात वर्ष की सजा का प्रावधान है। पीठ ने उच्चाधिकार प्राप्त समितियों को निर्देश दिया कि वे राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण के दिशानिर्देशों को अपनाते हुए नए कैदियों की रिहाई पर विचार करें। सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर कहा गया है, ”इसके अलावा हम निर्देश देते हैं कि जिन कैदियों को हमारे पूर्व के आदेशों पर पैरोल दी गई थी, उन्हें भी महामारी पर लगाम लगाने की कोशिश के तहत फिर से 90 दिनों की अवधि के लिए पैरोल दी जाए.” इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने कोरोना महामारी को देखते हुए आदेश दिया है कि सभी कैदियों को पर्याप्त मात्रा में मेडिकल सुविधाएं मिलें।
चीफ जस्टिस एन वी रमन्ना, न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की पीठ ने कहा कि उच्चतम न्यायालय के आदेश पर राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में उच्चाधिकार प्राप्त समितियां बनाई गई थीं। इन समितियों ने मार्च 2020 में जिन कैदियों को जमानत की मंजूरी दी थी, उन सभी को समितियों द्वारा दोबारा राहत दी जाए। इससे कोरोना फैलने से रोका जा सकेगा।
2019 के एनसीआरबी के आंकड़े के मुताबिक देश के 35 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में कुल 1412 जेल हैं जिनमें 4,78,600 क़ैदी हैं। ज्यादातर जेलों में क्षमता से ज्यादा कैदी रखे गए हैं। 2016 में जेल ऑक्युपेंसी रेट 114% थी जो 2019 में बढ़कर 119 फीसदी हो गई। इसके अलावा देश में जेलें घटीं हैं लेकिन बंदियों की संख्या बढ़ी है। इस समय हर 10 में से 7 बंदी अंडरट्रायल है यानी कुल जेल आबादी का 69 फीसदी कैदी।
2019 के आंकड़ों के मुताबिक दिल्ली की जेलों में सबसे ज्यादा भीड़ है। यहां क्षमता से 175 फीसदी अधिक बंदी है। इसका मतलब यह है कि जिन जेलों में 100 कैदियों के रहने की क्षमता है, वहां 175 adhik कैदी हैं। उत्तर प्रदेश में यह दर 168 प्रतिशत है। देश में सबसे ज्यादा बंदी sankhya उत्तर प्रदेश की जेलों में है।
हालांकि कोरोना के समय में जेलों की भीड़ को कम करने का सुप्रीम कोर्ट का यह निर्देश तर्कसंगत है और जेलों में तात्कालिक दबाव कम करने में योगदान भी देगा लेकिन यह भी कहना होगा कि कोरोना की विकराल स्थिति से एक साल तक जूझने के बावजूद जेलों से जुड़ी संस्थाओं ने पर्याप्त सबक नहीं लिया। अब भी जेलों के पास कोरोना जैसी महामारी से निपटने की कोई कार्ययोजना तैयार नहीं हो सकी है। आलम यह है कि कुछ जेलों में पहले से मौजूद जिन बंदियों को कोरोना पॉज़िटिव पाया गया, उन्हें हड़बड़ी में दूसरी जेलों में भेज दिया गया ताकि वहां उनका इलाज हो सके। इससे उनकी मानसिक स्थिति पर बेहद बुरा असर पड़ा क्योंकि इसमें न उनकी राय ली गई न कोई रज़ामंदी।
कुछ अन्य राज्यों में तो महिला बंदियों को दूसरी जेलों में सिर्फ इसलिए स्थानांतरित कर दिया गया ताकि महिला बैरकों को कोरोना पीड़ित बंदियों या फिर जेल आ रहे नए बंदियों को क्वारंटीन करने के लिए इस्तेमाल किया जा सके। इसका मतलब यह हुआ कि कोरोना जैसी विकरालता से निपटने के लिए जेलों ने महिला बंदियों को एक बार फिर परेशानी में डाला है। इनमें उन बच्चों की भी कल्पना कीजिए जो इन महिलाओं के साथ विस्थापित हुए हैं।
ध्यान देने की बात यह भी है कि जेलो को खाली करने के तात्कालिक फायदे जरूर हैं लेकिन यह समस्या का स्थायी हल नहीं है क्योंकि जेलों की बेतहाशा भीड़ के लिए जेलें जिम्मेदार नहीं हैं। विचाराधीन कैदियों की बड़ी संख्या की तरफ अदालतों का ध्यान देना जरूरी है क्योंकि जेलों की अवधारणा मुख्य रूप से सजायाफ्ता बंदियों के लिए है जबकि हुआ यह है कि जेलें भर गईं हैं विचाराधीन बंदियों से। वैसे भी हर परिस्थिति में जेलों में नए बंदियों की आवाजाही लगी ही रहती है। नई जेलों के बनने की अनदेखी का खामियाजा जेल स्टाफ और बंदियों-दोनों को भुगतना पड़ता है।
होना यह चाहिए था कि कोरोना की महामारी आने के बाद अदालतें औऱ जेलें- दोनों ही अपने लिए कोई एक ब्लूप्रिंट तैयार करतीं और आपदा से मिले सबक के अनुरूप काम को आगे बढ़ातीं लेकिन हुआ इसके विपरीत। जो थोड़ी बहुत सुविधाएं बंदियों के पास मौजूद थीं, उन्हें भी रोक दिया गया है और कोरोना को एक मनमाफिक बहाने के तौर पर इस्तेमाल कर लिया है। जैसे कि लाइब्रेरी सुविधा। कुछ जेलों में बंदियों के बैरक से बाहर आने के समय में भी कटौती कर दी गई है। ऐसे में उन्हें कोरोना भले ही न हो लेकिन मानसिक परेशानियां होने लगी हैं और उनकी सजा की पीड़ा दुगुनी दगुना हो गई है।
लेकिन जेलों ने बंदियों की तनाव-मुक्ति के कुछ ठोस कदम भी उठाए। टेलीफोन की सुविधा को बढ़ाया गया और तकरीबन सभी राज्यों में महिला बंदियों को टेलीफोन की सुविधा मिलने लगी है। इससे पहले कई राज्यों में महिला बंदियों को टेलीफोन की सुविधा नहीं मिलती थी और वे केवल मुलाकात के समय ही अपने परिजनों से मिल पाती थीं। इस दौर में जेलों ने तकनीक का भी फायदा उठाया। कई जेलें बंदियों को अब वीडियो कांफ्रेंसिंग के ज़रिए भी उनके परिजनों से संवाद करवा रही हैं। इस दिशा में तिनका तिनका ने उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की जेलों में एक शोध किया था जिससे यह पता चला था कि संचार के तमाम माध्यमों के बीच में कोरोना के समय में टेलीफोन उनका सबसे बड़ा सहारा बना था। जेलों ने इस जिम्मेदारी को मुस्तैदी से निभाया।
कुछ राज्यों ने कोरोना के दौरान बंदियों की मानसिक सेहत पर भी काम किया है। हरियाणा के जेल इतिहास में पहली बार 16 जनवरी को जेल रेडियो की शुरुआत हुई। यह तिनका तिनका फाउंडेशन की संकल्पना पर आधारित हैं और लेखिका ने ही कुछ ही महीनों में करीब 50 बंदी प्रशिक्षित किए। इस समय पानपीत, फऱीदाबाद और अंबाला तीन जेलों में रेडियो का संचालन हो रहा है। 12 जेलों में ट्रेनिंग पूरी हो चुकी है। यह बंदियों के लिए बहुत बड़ी मदद साबित हुआ है। मुलाकातविहीन जेलों में उनका अपना रेडियो, माइक, आवाज और पसंद का संगीत, बंदियों और स्टाफ के मनोबल को बढ़ाने में पूरी तरह से सफल रहा है।
अच्छा हो कि जो बंदी इस कठिन दौर में जेल में हैं, उनके समय और ऊर्जा के इस्तेमाल के बेहतर विकल्पों पर काम हो। भीड़ से इतर कुछ बंदियों की शारीरिक और मानसिक सेहत के मुद्दे भी ध्यान में आने चाहिए। कोराना से मिले मौके और खाली हुई जेलों से बची जगहों के सही इस्तेमाल में ही समझदारी है।
(डॉ. वर्तिका नन्दा जेल सुधारक हैं। तिनका तिनका भारतीय जेलों पर वर्तिका का एक अभियान है। 2019 में देश की सबसे पुरानी जेल इमारत आगरा की जिला जेल में रेडियो स्थापित किया। 2021 में हरियाणा की जेलों में रेडियो लाने का श्रेय उन्हीं को जाता है। 2018 में जस्टिस एम बी लोकूर और जस्टिस दीपक गुप्ता की बेंच ने जेलों में महिलाओं और बच्चों की स्थिति की आकलन प्रक्रिया में शामिल किया।)
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1 comment:
Heart touching article on corona and lives in jails during corona. It has highlighted the probems faced by inmates in jails due to overcrowding . Although jail authorities are taking measures to follow corona protocol but are creating lots of displacement in the jails and inmates have tosuffer. Dr. Vartika Nanda, prison reformer and founder of Tinka Tinka Foundation has launched jail radio in the jails of haryana. This initiative has boosted the morale of inmates. Due to panademic imates cannot meet visitors, ony telephone is the source of communication. Tinka Tinka Foundation has provided a platform to inmates to connect with society and other inmates in various jails. #vartikananda #prisonradio #tinkatinka #tinkatinkaprisonreforms #prison #jail
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