“इस किताब में जयसिंह ने बड़ी ईमानदारी और निश्छलता के साथ अपने जीवन के पन्नों को खोला है। उनके अपने प्रसंग एक व्यक्ति और शहर के संबंधों की बारीकी को खोलते हैं। इसलिए यह किताब महज एक शहर का वृत्तांत भर नहीं रह गई है। यह एक मध्यवर्गीय व्यक्ति के जीवन संघर्ष की भी कहानी है, जिसका साक्षी है वह शहर, जिससे उस व्यक्ति का सुख-दुख जुड़ा हुआ है।”
– संजय कुंदन, संपादक, वाम प्रकाशन
अलीगढ़ तालों का शहर है। अलीगढ़ तालीम और तहज़ीब का शहर है। यह सैयद अहमद खान, प्रो.इरफान हबीब, गोपालदास नीरज, इस्मत चुग़ताई, कुर्रतुल-ऐन-हैदर, शहरयार, मैत्रेयी पुष्पा, भारत भूषण और रवीन्द्र जैन का शहर है। चर्चित लेखक-पत्रकार जयसिंह की आंखों से देखिए पुराने और नये शहर को। पता चलेगा एक शहर का बदलना दरअसल हमारे रहन-सहन और सोच का बदलना है, कई मूल्यों का बदल जाना है। इसमें लेखक ने अपने जीवन के कई अध्याय खोले हैं, जिनके हरेक पृष्ठ से अलीगढ़ झांकता है। यह किताब आपको अलीगढ़ की यात्रा पर ले जाती है। इससे गुज़रते हुए मोहल्ले, सड़कें, बाज़ार, स्कूल-कॉलेज, धर्मस्थल, सिनेमा हॉल, खानपान के अड्डे हमारे सामने एक-एक कर आते हैं। हम ताला उद्योग में दाख़िल होते हैं और हमें उसका भीतरी संसार दिखाई देता है। किताब हमें अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के कैंपस में लेकर जाती है और हम उसे एक नई रोशनी में देखते हैं। फिर वह हमारी मुलाक़ात कला-साहित्य, इतिहास और पत्रकारिता की नामचीन शख़्सियतों से कराती है। किताब में केवल शहर की चमक-दमक नहीं है, दंगों के इतिहास की पड़ताल करते हुए लोगों के मन के अंधेरे कोनों की भी टोह लेने की कोशिश की गई है। यह न तो शहर का इतिहास है, न संस्मरण, न ही समाजशास्त्रीय विवेचन, लेकिन इसमें इन तीनों की ताक़त और रोचकता समाहित है।
जयसिंह फिल्म-समीक्षक और स्तंभकार हैं। उनकी दो किताबें प्रकाशित हैंः भारतीय सिनेमा का सफरनामा और सिनेमा बीच बाजार। यह तीसरी किताब है। उन्होंने विभिन्न विषयों की सौ से अधिक पुस्तकों का संपादन किया है और एक लघु फिल्म का निर्माण और निर्देशन भी। वह भारतीय सूचना सेवा से संबद्ध हैं और ‘रोज़गार समाचार’ में बतौर संपादक कार्यरत हैं।
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2 comments:
This is a fabulous book. I heartily congratulate to you.
Very beautiful book. 👌
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