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LANGUAGE AND PRINCIPLES OF ONLINE NEWS WRITING

Jan 8, 2009

बलात्कार

लड़की का बलात्कार हुआ था
मीडिया पूछ रही थी
कैसा लग रहा है उसे
जिस युवक ने किया था
शादी का वादा
वो उसके घर का रास्ता
अब खोज नहीं पाता
अब है फिर पास वही मां

सहारा देने की ताकत पुरूष में कहां
इस ताकत के कैप्सूल अभी बने नहीं

14 comments:

Anonymous said...

माँ के सामने बाकी सब तुच्छ है. उसके आगोश में जो सुरक्षा है वह अन्यत्र नहीं मिल सकता. सुंदर लिखा है. आभार.

महेंद्र मिश्र.... said...

बेहद भावपूर्ण रचना है . यह सत्य है कि कभी कभी मीडिया द्वारा मर्यादा का उल्लंघन कर दिया है जिसका विरोध किया जाना चाहिए . महिलाओं कि भी अपनी गरिमा होती है यह मै मानता हूँ.

Unknown said...

bahut kam shabdo me aapne bhaut acchi baat kahi hai...

bahut khub

सुशील छौक्कर said...

दर्दनाक भी और सच भी।

इरशाद अली said...

प्रिय नन्दा जी, आज आपका आपका ब्लॉग देखा। मीडिया स्कूल....मीडिया की लय को समझने सीखने का एक मंच। ये बहूत ही शानदार प्रयास है आपका। मुझे ब्लॉग देखते ही लगा था कि यहां कुछ अलग होगा। और बातें मीडिया के अन्दर से होगी। आपका ब्लॉग आपके लिए एक शानदार मौका है, अगर आप खबर या जानकारी जूटा पाती हैं। आप अपने ब्लॉग को और लोगों की भातीं ही परोस रही है, मैं समझता हूं इसको भीड़ में खो देने के लिए आपने नहीं बनाया होगा। मीडिया के अन्दरूनी चेहरों के बारे में बात करों, लोगों को बताओं जो वो जानना चाहतें है, जिसमें उनकी जिज्ञासा बढ़ेगी। पुरानी घीसी-पीटी बातों में एक और पोस्ट जोड़ देना कोई नयापन नहीं लाएगा। मीडिया के चेहरो पर अपनी राय और शोध को सामने लाओं। बरखा दत्त, प्रणव राय, अविनाश, राजदीप, दींबागं, रजत जी, अजीज बर्नी, प्रीतिश जी ना जाने कितने ऐसे नाम है। जिनकी हकिकत लोगो को नही पता। ये किस तरह के व्यक्ति है। क्या करते है। कैसे आगे आए है। क्या इनका स्टाइल है। कितने लोग जानते है कि बरखा दत्त किसी चीज को पाने के लिए किस तरह से एक अक्रामक रूप धारण कर लेती है या फिर कैसे दीपक चौरासया पैसे के बदले खबरें बेचना जानता है, न जाने कितनी बातें है। मुझे आपका ब्लॉग देखकर लगा कि आपको ये कहना चाहिए तो कह दिया। बहुत बहुत शुभकामनाओं के साथ
इरशाद

Annu Anand अन्नू आनंद said...

Main tumahre lekh to parti rahti hoon lekin aaj pehli baar tumahri kavitayen padi.
mujhe lagta hai ki tumahri kavitaon mein lekhon se adhik vyangy aur sahi evan steek ktaksh hai. kum shabdon mein sahi Ktaaksh. Isliye kavita likhna band nahin hona chahiye. badaai... annu anand

निर्मला कपिला said...

bilkul sahi kaha aapne

Ajay K. Garg said...

वर्तिका, चंद पंक्तिंयों में बहुत गहरा फलसफा बयां कर दिया है आपने। अभी तक मैं आपको एक पत्रकार के अलावा एक कहानी लेखक के रूप में ही जानता था, तब से जब आपने दैनिक ट्रिब्यून की कहानी प्रतियोगिता में पहला पुरस्कार जीता था। उन दिनों दैनिक ट्रिब्यून से जुड़ाव शीर्षक बताओ प्रतियोगिता के प्रतिभागी के रूप में था। आज अनायास आपके ब्लॉग पर जाने का मौका मिला तो पता चला कि कविताएं भी शुरू से लिखती रही हैं। कुछ पंक्तियों में दर्द बुनकर कविता की शक्ल देने के लिए बधाई। आगे भी लिखती रहिए।

प्रशांत मलिक said...

truth of life

Anonymous said...

सच का सशक्ती से भावपूर्ण प्रस्तुतीकरण.
आभार.
रजनीश के झा

Anonymous said...

sab kuchh sach bhi nahi...ek chashmey se sab kuchh na dekhey...

अविनाश वाचस्पति said...

कविता और विचारों की
ताकत के आगे

सारी ताकत बौनी हैं



मां सी ताकत
किसी में भी मिलना

बिल्‍कुल अनहोनी है।

Dipti said...

बेहतरीन प्रस्तुति

Sanjeet Tripathi said...

बहुत सही!