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Writing for TV News: Class Assignment: Batch of 2027-28

Aug 13, 2008

सच यही है

बेटा पैदा होता है
ताउम्र रहता है बेटा ही।

बेटी पैदा होती है
और कुछ ही दिनों में
बन जाती है बेटा।

फिर ताउम्र वह रहती है
बेटी भी-बेटा भी।

3 comments:

Anonymous said...

स्त्रीत्व को समाज वहीं तक स्वीकार करता है जहाँ तक उसे इसकी ज़रूरत है. लड़की मर्दाना निकल जाए तो तारीफ, पर लड़के में थोड़े भी स्त्रियोचित गुण दिखे तो ताने उलाहने शुरू. हर माँ बाप बड़े गर्व से बताते हैं की हमने अपनी बेटी को बेटे की तरह पाला. पर क्या कोई ऐसा भी है जिसने अपने बेटे को बेटी की तरह पाला?

अगर ऐसा होने लग जाए तो फ़िर बेटियों के हक़ में कोई लडाई लड़ने की ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी.

Udan Tashtari said...

सही है.

सुशील छौक्कर said...

कहा तो सच ही है। वो भी सोलह आने सच।