परम्परा गत ढाँचे निश्चय ही टूट रहें हैं एक पूरी नर्सरी महिला एंकरों की भारत भर में पल्लवित हुई है लेकिन यहाँ भी ऐसा बहुत कुछ है जो मंचित नहीं होता है पार्श्व में रहता है .कैमरे की आँख से कुछ नहीं बचता ,एनाटोमी भी कुरेदती है कैमरे की आँख अच्छा सवाल पूछा गया है भारतीय महिला एंकरों के लिए पश्चिमी पैरहन ही क्यों ? ....कृपया यहाँ भी पधारें - ram ram bhai बुधवार, 22 अगस्त 2012 रीढ़ वाला आदमी कहलाइए बिना रीढ़ का नेशनल रोबोट नहीं . What Puts The Ache In Headache?
न्यू जर्नलिज्म के क्षेत्र मे महिलाओं के काम पूरा बदल रहा है,पञकारिता घट रही है कैमरे के सामने मेकअप मे सराबोर फीमेल एंकर से इस बात की उम्मीद कम ही है कि विषय की गम्भीरता के साथ न्याय होगा,फीमेल एंकर पञकार न हो कर शोपीस बन गया है,ये ठीक उसी तरह है कि अगर किसी गम्भीर मुद्दे पर लिखे आलेख में किसी मॉडल का फोटो लगा दिया जायें तो वह भले ही पाठक को आलेख की ओर आकर्षित करेगा लेकिन वह उस आलेख की गंम्भीरता,और उद्देश्य को पूरी तरह नष्ट कर देगा।
न्यू जर्नलिज्म के दौर में महिलाओं का कार्यक्षेत्र को बदल दिया है,पत्रकारिता दुर जा रही है,गम्भीर विषय को प्रस्तुत करने करने वाली फीमेल एंकर अगर कंटेंट से परिपुर्ण होने के बजाय मेकअप में सराबोर हो तो इस बात की उम्मीद कम है कि विषय की गम्भीरता के साथ न्याय होगा। ये ठीक उसी तरह है कि कुलदीप नैयर जी के आलेख में कैटरीना का फोटो
4 comments:
GREAT POST .I HAVE GIVAN YOUR POST'S LINK HERE -BHARTIY NARI-JOIN THIS NOW .THANKS
परम्परा गत ढाँचे निश्चय ही टूट रहें हैं एक पूरी नर्सरी महिला एंकरों की भारत भर में पल्लवित हुई है लेकिन यहाँ भी ऐसा बहुत कुछ है जो मंचित नहीं होता है पार्श्व में रहता है .कैमरे की आँख से कुछ नहीं बचता ,एनाटोमी भी कुरेदती है कैमरे की आँख अच्छा सवाल पूछा गया है भारतीय महिला एंकरों के लिए पश्चिमी पैरहन ही क्यों ? ....कृपया यहाँ भी पधारें -
ram ram bhai
बुधवार, 22 अगस्त 2012
रीढ़ वाला आदमी कहलाइए बिना रीढ़ का नेशनल रोबोट नहीं .
What Puts The Ache In Headache?
न्यू जर्नलिज्म के क्षेत्र मे महिलाओं के काम पूरा बदल रहा है,पञकारिता घट रही है कैमरे के सामने मेकअप मे सराबोर फीमेल एंकर से इस बात की उम्मीद कम ही है कि विषय की गम्भीरता के साथ न्याय होगा,फीमेल एंकर पञकार न हो कर शोपीस बन गया है,ये ठीक उसी तरह है कि अगर किसी गम्भीर मुद्दे पर लिखे आलेख में किसी मॉडल का फोटो लगा दिया जायें तो वह भले ही पाठक को आलेख की ओर आकर्षित करेगा लेकिन वह उस आलेख की गंम्भीरता,और उद्देश्य को पूरी तरह नष्ट कर देगा।
न्यू जर्नलिज्म के दौर में महिलाओं का कार्यक्षेत्र को बदल दिया है,पत्रकारिता दुर जा रही है,गम्भीर विषय को प्रस्तुत करने करने वाली फीमेल एंकर अगर कंटेंट से परिपुर्ण होने के बजाय मेकअप में सराबोर हो तो इस बात की उम्मीद कम है कि विषय की गम्भीरता के साथ न्याय होगा। ये ठीक उसी तरह है कि कुलदीप नैयर जी के आलेख में कैटरीना का फोटो
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