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May 31, 2023

2023: 31 May: Tinka Foundation Day: Voices from Jail: Main Hoon Tinka: Dehradun jail inmates created a special signature tune

 31 May, 2023

Dr. Suchit Narang, Rohit Verma and Arun are the artists incarcerated in Dehradun’s Suddhowala Jail. They have joined hands to create a new identity for themselves through their musical prowess. Tinka Tinka Foundation (TTF) and District Jail, Dehradun have released the signature tune of the Foundation that is dedicated to jails.. The tune titled “Main Hoon Tinka (I am Tinka)”, was released on the YouTube channel of Tinka Tinka Jail Radio on the occasion of the 7th anniversary of Tinka Tinka Foundation (TTF). TTF is a public charitable trust dedicated to prisons. Tinka Jail Radio podcast is India’s only podcast series that exclusively caters to prison reforms.


The background:

These 3 inmates are part of a team of 14 inmates who were trained as radio jockeys for prison radio in 2021. Dr. Suchit Narang was a distinguished musician before he came to jail and was awarded by the President of India. 46 year old Narang has been in jail since 2018. 29 year old Arun graduated in Political Science while 36 year old Rohit Verma used to sing religious songs before coming to the jail. Both Rohit and Arun are convicts and have been incarcerated since 2016.


Dr Suchit Narang, Rohit Verma and Arun - the three inmates together run the in-house Dehradun Jail Radio. The signature tune “Tinka Hoon Mein” (I am Tinka) has been sung by Suchit Narang and edited by the trio together. Despite being visually impaired, Suchit is proficient in music and leads the team.


Unique initiative in Indian Prisons

Released in collaboration with Doon Jail and Tinka Tinka Foundation, this tune is a major milestone in the arena of prison reforms. Its purpose is to provide a platform for the untapped talent of inmates, to inspire the inmate population to devote their time and energy in a positive direction and to make them skillful.
This signature tune will now be widely used in all the events of TTF. Work on this creation has been going on since October 2022. Interestingly, the editing of this tune was finalised in Doon Jail. Under this collaboration, several creative endeavours will be undertaken. A special podcast, featuring the voices of concerned officials, has been released on the occasion, along with the voices of this trio. This is the 65th episode of Tinka Jail Radio.


Co-operation of officers


Inspector General of Prisons Bimla Gunjyal, Deputy Inspector General of Prisons/ Senior Superintendent of Dehradun Jail Dadhi Ram and Jailor Pavan Kothari have made special contributions in making this effort a success. 


History of prison and the capacity


Built in 2008, the prison has an authorised capacity of 580 (540 male, 40 female prisoners) The total number of prisoners is 1455 (1326 male, 73 female prisoners, including 23 female convicts and 44 juveniles).


About Tinka Tinka Foundation & Vartika Nanda: 

Founded by Dr. Vartika Nanda, India’s leading prison reformer, Tinka Tinka Foundation is engaged in improving living conditions in prisons through academic, literary and creative initiatives, including the introduction of prison radio in District Jail, Agra and the jails of Haryana. Foundation has also curated Tinka Tinka India and Tinka Tinka Bandini Awards, which are the only such awards in the country for jail inmates. Three books written by Vartika Nanda, on prisons, are authentic versions of prison life.  Her Tinka Jail Radio Podcasts are the only podcasts in India, providing an outlet to voices from prisons. She is also the official storyteller for Delhi Police for their podcasts- Kissa Khaki Ka.  Her research on inmates' communication needs was adjudged as Outstanding, by ICSSR.




President of India conferred the Stree Shakti Puraskar on her in 2014. Her work on prisons was taken cognizance by the Supreme Court of India in 2018. Her name has also been included in the Limca Book of Records twice for her unique work on prison reforms. She launched Tinka Tinka Prison Radio in 2020, the only podcast series in India that brings out voices from jails.

Currently, she heads the Department of Journalism at Lady Shri Ram College, Delhi University.  

References:  

1.Tinka Jail Radio: Episode 65: Main Hoon Tiinka: Signature Tune & Vibes of Change


2.Tinka Jail Radio: Episode 30: Uttarakhand Day Dehradun Jail


3.Tinka Jail Radio: Episode 28: Uttarakhand Radio Training:


4. Uttarakhand Day and the Tinka Jail Radio: November 2021।। तिनका जेल रेडियो।।
Channel: Tinka Tinka Prison Reforms YouTube Channel

5.Jail Radio in Dehradun: Tinka Tinka Foundation:


31 May, 2023: Amar Ujala: Dehradun: मैं हूं तिनका...जेल के

बंदियों का सिग्नेचर ट्यून रिलीज, मिलिए इन कलाकारों से जिन्हें मिली नई पहचान: Dehradun Suddowala Jail Inmates Release Signature Tune

Main Hoon Tinka New Identity Through Prison Radio



Complete story on the website:

Jail Radio : Uttarakhand: Dehradun: Tinka Hoon Main:

http://tinkatinka.org/jail-radio-uttarakhand/





Our Presence:

Tinka Tinka Organisation Website: Link: http://tinkatinka.org/ 
Vartika Nanda Blogspot: Link: https://vartikananda.blogspot.com/ 
Vartika Nanda Website Link:  https://vartikananda.com/

2022: Media Column: जिस वैकल्पिक मीडिया की बात सबसे कम होती है, मुझे उसी में एक तिनका उम्मीद दिखाई दे रही है




मेरी नजर में मीडिया के लिए साल 2022 डर, अपराध, जेल, भ्रष्टाचार व शोर और उससे मिल सकने वाले मुनाफे का साल रहा। मीडिया ने साल की शुरुआत से लेकर अंत तक इन्हें भरपूर प्राथमिकता दी। अपराधों की नई किस्मों को परोसा। अपराध करने के नुस्खे-तरीके बताए और साथ में चलते-चलते अपराध की खबर भी बताई। पूरे साल कई बड़े नामों को जेल में जाते और जेल से बाहर आते हुए देखा गया। जेल में मालिश से लेकर जेल से रिहा हुए चार्ल्स शोभराज तक, टुकड़ों में गर्लफ्रेंड को काट देने वाले से लेकर काली कमाई के मामले में गिरफ्त में आए नामचीन लोगों तक मीडिया ऐसी तमाम खबरें ढूंढता रहा, जो उसे टीआरपी बटोरने में मदद करतीं। लेकिन, इनमें सामाजिक सरोकार नहीं था। विशुद्ध मुनाफा था। मीडिया कारोबार और मुनाफे से चिपका रहा। पूंजी में जान अटकी रही।


2022 गलतफहमियों में गुजर गया। ढेर सारे चैनलों के बीच में किसी एक पत्रकार की मजबूत छवि बनने का दौर कभी का चला गया। अब न ही जनता को बहुत सारे पत्रकारों के चैनल याद रहते हैं और न ही खुद उनके नाम। जो पत्रकार कुछ दिन तक टीवी पर नहीं दिखता, जनता उसका नाम भूलने लगती है। मतलब यह कि अब नाम गुमने लगे हैं। इसके बावजूद आत्ममुग्धता और गुमान के नकली संसार में जी रहे मीडिया को अपना अक्स देखने की फुर्सत अब तक नहीं मिली है। फिर पत्रकारों का वर्गीकरण भी हुआ है। स्टार एंकर-रिपोर्टरों को छोड़ दें तो बाकी की स्थिति में कोई बड़ा फेरबदल नहीं हुआ है। वे आज भी उतने ही लाचार हैं, जितने पहले थे। चैनलों को किसी के होने या न होने से लेशमात्र भी फर्क नहीं पड़ता। यह तबका संवेदना के लायक है, लेकिन उससे हमदर्दी करने वाले भी नदारद हैं।


वैसे नामों का गुम जाना इस बात को साबित करता है कि भीड़ में  जगह बनाना मुश्किल काम है। दूसरा संकट मीडिया की उस गिरती विश्वसनीयता का है, जिसे वो मानने को राजी नहीं है। इसलिए मैं मिसाल जेल की ही देना चाहूंगी। भारतभर की जितनी जेलों में मैं गई, उसमें बंदियों ने इस बात को बड़ा जोर देकर कहा कि उनका विश्वास न तो कानून पर है और न ही मीडिया पर। कानून पर विश्वास न होने की वजह समझ में आ सकती है, लेकिन जेल की कोठरी में बैठा कोई बंदी मीडिया पर भरोसा न रखता हो, यह बात सोचने की जरूर है। कड़वी बात शायद बंदी ही कह सकता है। लेकिन, उसकी भी सुनता कोई नहीं।


ठीक 10 साल पहले तक नया साल आने पर ज्यादा चर्चा इस बात पर होती थी कि क्या प्रिंट मीडिया अपने अस्तित्व को बचा पाएगा और क्या निजी चैनलों के बीच में उसको खुद को संभाल पाना मुश्किल होगा? आज 2022 में चिंता इस बात की नहीं है कि प्रिंट का क्या होगा, चिंता इस बात की जरूर है कि टीवी न्यूज के शोर के बीच अब खबर का क्या होगा? खबरों के खालिसपन पर अब खुद खबरनवीसों का यकीन नहीं रहा। दर्शक भी खबर परोसने वाले को देखकर हौले-से मुस्कुरा देता है। देखते ही देखते न्यूज मनोरंजन में बदल गई और मनोरंजन न्यूज में। भाषा और व्याकरण दयनीय बना दिए गए हैं। सही भाषा लिखने वाले ढूंढने की कोशिशें भी अब नहीं होतीं। बाजार में सब स्वीकार्य है बशर्ते पैसा आता हो। तिजोरी ने भाषा को शर्म से भर दिया है। इस सारे गड़बड़झाले के बीच खबर की स्थिति सर्कस के जोकर की तरह होने लगी है। हां, एक फर्क यह जरूर है कि सर्कस में एक ही जोकर होता है और वही सर्कस का नायक भी बना रहता है।


एक और चिंता मीडिया की पढ़ाई को लेकर है। अब क्या पढ़ाया जाए, क्या बताया जाए और क्या सिखाया जाए। छात्र जो सीखता है वो न्यूजरूम में मिलता नहीं और न्यूजरूम में है, उसे पढ़ाया नहीं जा सकता। मीडिया शिक्षण एक ऐसे चौराहे पर आ खड़ा हो गया है, जहां बैलेंस और वैरिफिकेशन की बात को छात्र हजम नहीं कर पाता। क्लासरूम की पढ़ाई जिस शालीन खबर की बात करती है, वो टीवी के पर्दे पर दिखती नहीं। 

दंगल में बदल चुके टीवी न्यूज चैनलों की भीड़ में यह लेखा-जोखा करना मुश्किल लगता है कि मीडिया आने वाले सालों में अपनी छवि को कैसे सुधारेगा।


दर्शक को वैसा ही मीडिया मिल रहा है, जिसके वह योग्य है। मीडिया का स्तर दर्शक के स्तर को भी रेखांकित कर रहा है। इसलिए अब मीडिया से शिकायत न कीजिए। गौर कीजिए कि आप दिनभर क्या सुनना, देखना, बोलना और पढ़ना पसंद करते हैं। पढ़ने की घटती परंपरा ने तेजी से परोसे जा रहे समाचारों की जमीन तैयार की है। आपके जायके का स्वाद ही मौजूदा मीडिया है और जायके में सुधार है-वैकल्पिक मीडिया। इसलिए जिस मीडिया की बात सबसे कम होती है, मुझे उसी में उम्मीद दिखाई दे रही है।

पब्लिक सर्विस ब्रॉडकास्टर की अपनी सीमाएं और प्राथमिकताएं हैं। प्राइवेट मीडिया अपनी साख के संकट से जूझ रहा है। तीनों तरह के मीडिया में यह बात साफ तरह से उभरने लगी कि आने वाला साल वैकल्पिक मीडिया के लिए एक नई जगह खड़ी कर सकता है। दिल्ली पुलिस ने 2022 की जनवरी को अपने पॉडकास्ट ‘किस्सा खाकी का’ की शुरुआत की। हर रविवार को प्रसारित होने वाली इस कड़ी में हर बार एक नया किस्सा होता है। पुलिस जैसा बड़ा और दमदार महकमा भी अब अपने लिए वैकल्पिक प्लेफार्म तैयार कर चुका है। यह एक शुरुआत है। नागरिक पत्रकारिता बड़ा आकार ले रही है। सोशल मीडिया ने जैसे पत्रकारों की फौज ही खड़ी कर दी है। हर किसी के पास कहने-पोस्ट करने के लिए कुछ है। वे अब किसी पर आश्रित नहीं। ऐसे में एक तिनका उम्मीद बाकी है, क्योंकि उम्मीद और हौसले के लिए तिनका भी बहुत होता है।


link-https://www.samachar4media.com/vicharmanch-news/senior-journalist-dr-vartika-nanda-expressed-her-views-about-the-media-58983.html


May 30, 2023

Main Hoon Tinka. Magical Voice from a Jail: Kaun hai ye Tinka: Part 2

Meet Dr. Suchit Narang, Arun, and Rohit Verma. Incarcerated in a jail, they have created a magic. Listen to 7 voices, 7 notes of music in this promoWelcome to the world of Tinka Tinka. We proudly create rainbows in prisons. Today, we express are deep gratitude to three offices in particular: Inspector General of Uttarakhand Prisons Vimla Gunjyal, Deputy Inspector General of Prisons and Senior Superintendent of Dehradun Jail, Dadhiram and Jailor Pawan Kothari.


This is just a promo. Watch this space to listen to the signature tune of Tinka Tinka Foundation, created by this amazing team of 3 inmates. Suchit is visually challenged but is gifted with extraordinary musical talent. Please convey your wishes to all of them.




Youtube promo 1 link: https://youtube.com/shorts/26ZbEGgftrc?feature=share




Youtube Promo 2 link: https://youtu.be/GiqnssQGx-Q

YouTube: Vartika Nanda/ Tinka Tinka Prison Reforms

May 28, 2023

Tinka Hoon Main: An extraordinary musical journey: Part 1

 

A jail, three inmates, creativity and freedom of expression.  Watch this space to experience an unmatched magic.

Founded by Dr Vartika Nanda, a journalist, media educator and prison reformer, TTF has created several milestones over the years. Tinka Tinka Tihar, created in 2013, led the journey to the birth of Tinka Tinka Dasna and Tinka Tinka Madhya Pradesh. These are also the titles of the books that are considered to be the authentic versions of prison life. Tinka Tinka is also credited to train inmates and execute prison radios in the jails of Haryana. 

Dr Vartika Nanda has also authored three books on prisons including Tinka Tinka Tihar, Tinka Tinka Dasna, and Tinka Tinka Madhya Pradesh that present authentic documentation of life in prisons. Through her books, Dr Nanda strives to connect the two realities - the reality of the prisoners and of perception. These books are a tribute to the human spirit that shines in each of these inmates, regardless of their circumstances. 




Website: Jail Radio: Uttarakhand – Tinka Tinka Prison Reforms

Join: Tinka Tinka Prison Reforms | Facebook

YouTube: Vartika Nanda

May 23, 2023

2023: Students of Urdu Journalism, IIMC, visit DD News

The students of Urdu journalism from IIMC (Indian Institute of Mass Communication) had the opportunity to visit DD News in New Delhi on May 10 2023. DD News, also known as Doordarshan News, is a renowned news channel in India and is the flagship channel of Doordarshan, under Prasar Bharti the national public broadcaster.


Visiting a prominent news organization like DD News provides students with valuable insights into the field of journalism, specifically focusing on Urdu journalism. The students were taken around by the very experienced Deputy Director (News) Shri Sanjay Pratap Singh and  popular Assistant Director (News) Shri Manoj Roorkiwal. DD News has a dedicated special Desk for Urdu News and Programmes. The students had the opportunity to observe the news production process, interact with journalists and news anchors, and gain a better understanding of how news is disseminated in the Urdu language. In the process, they visited Newsroom, Production Control Room, and the two majestic studios where they met the Bulletin Editors, technicians, cameramen, lighting assistants, and other important functionaries involved tirelessly in the production of news.

The visit was organized to expose students to real-world media environments and to give them a glimpse of the professional practices followed in the industry. It allowed them to see the application of theoretical knowledge in a practical setting and provided them with networking opportunities.

Through the visit at DD News, the students learned about the role of Urdu journalism in the media landscape of India and gained exposure to the challenges and opportunities specific to the field. They also learned about the importance of language and cultural sensitivity in reporting news to a diverse audience.

Overall, visiting DD News was a valuable experience for the students of Urdu journalism from IIMC, helping them broaden their understanding of the industry and potentially inspiring them in their future careers as journalists. The visit ended on a happy note with a customary group photograph with the gigantic Doordarshan logo at the headquarters.

DD Twitter Link:

https://twitter.com/DDNewslive/status/1656268343366524930?s=20

 IIMC Facebook Link :

https://www.facebook.com/548755901969649/posts/pfbid029gAwso5pDXBEiav4iGbSvxHp74QnxK2TxRh8CeqbSnwCUyMv46oNc7YG2TDihxbul/?mibextid=Nif5oz

Delhi Police: Podcasts: Kissa Khaki Ka: Episode 70


Promo of episode 70:




Seventieth Episode of Kissa Khaki Ka: Released on 14 May 2023:

May 19, 2023

2023: May 18: All India Radio: Discussion on the changing face of newspapers and the internet

May 18, 2023: A panel discussion was held on the topic '20th century Newspapers vs 21st century Internet' with special reference to literature.This was recorded at All India Radio with Leela Dhar Mandloi (former Director General, All India Radio) and Naveen Chand Lohani(Dean, Meerut University). The discussion was moderated by Dr Vartika Nanda. Telecast: 21st May: AIR: Program: Sahityiki: Indraprastha Channel: 366.3 Metres, 819 KH & Air Live News 24x7: Morning 8.45 am

May 16, 2023

2023: 16 May: Tinka Tinka Tihar: Ten Years: देशभर की जेलों के क्या हैं हालात ?: ABP News: Podcast

तिनका तिनका तिहाड़ के 10 साल: देशभर की जेलों के क्या हैं हालात ? | Samwaad
Updated : 16 May 2023 03:01 PM (IST)
  
एबीपी लाइव पॉडकास्ट के कार्यक्रम 'संवाद' पर आज हमारे साथ जेल सुधारक और तिनका-तिनका की संस्थापक वर्तिका नंदा जी हैं. तिनका-तिनका तिहाड़ के 10 साल पूरे हो गए हैं. तिनका-तिनका ने देश की जेलों बंद कैदियों के अंदर एक उम्मीद की अलख जगाई. उनके जीवन में बदलाव आया. बीते 10 सालों में जेल में क्या कुछ सुधार हुआ और मौजूद जेलों कि क्या हालत है, इस पर आइये वर्तिका नंदा जी से पूरी चर्चा सुनते हैं.




Additional Links: 


 

May 13, 2023

2023: 13 मई :जेल में एक तिनका उम्मीद अब भी बाकी : वर्तिका नन्दा

 ( 13 मई, 2023 के राष्ट्रीय सहारा के हस्तक्षेप में पूरे पन्ने पर एक जरूरी आलेख)



जेल फिर से खबर में है। इस बार भी जेल तब तक खबर में रहेगी ,जब तक कोई अगली बुरी खबर ना आ जाए। जेल जैसे बाजार हो। कोई नुक्कड़ नाटक। रोमांच से भऱती मारधाड़ वाली कोई फिल्म। टीआरपी देता कोई मसाला। कुल मिलाकर कोई बेवजह की जगह, जहां बेकार लोगों का बसेरा है। यही पहचान जेल का नसीब है। तिहाड़ की घटना और इससे पहले भी हुई कई घटनाओं का पहला नतीजा यह होता है कि जिनका जेल से कोई सरोकार नहीं है, वो भी जेलों पर बोलने, लिखने और टिप्पणी करने लगते है। जेल सबका सार्वजनिक सामान बन जाती है। जेल पर सबका हक बन जाता है। लेकिन जेल इससे सहम जाती है। जेल का वजूद हिलता है और सबसे हाशिए पर सरक आता है- एक आम बंदी और ईमानदार जेल अधिकारी। इन दोनों की परवाह किसी को नहीं होती क्योंकि इनसे खबर की रोटियां सिक नहीं पातीं। 

इस समय जब तिहाड़ को लेकर खबर का बाजार गर्म है, यह याद दिलाना मुझे जरूरी लगता है कि इसी तिहाड़ ने ठीक 10 साल पहले, 2013 में, कई कीर्तिमान स्थापित किए थे। इसका नाम था- तिनका तिनका तिहाड़। पर मेरी यह यात्रा 1993 में शुरु हुई थी। तब मेंने तिहाड़ को पहली बार देखा था। इसके बाद के सालों में टेलीविजन रिपोर्टिंग, इलेक्ट्रानिक मीडिया की पहली महिला पत्रकार कै तौर पर क्राइम बीट की प्रमुखता, बलात्कार की रिपोर्टिंग पर पीएचडी- ऐसे बहुत-से कारकों के बीच तिनका तिनका का जन्म हुआ और जेल का काम हमेशा के लिए मेरी जिंदगी बन गया। मैं जेलों को करीब से देखती गई। जिंदगी बेहतर तरीके से समझ में आने लगी। तिनका तिनका की वजह से जेल से नाता जुड़ा। समाज से छूटा। जेल पर काम करने की कीमत चुकानी थी। जेल का काम चुप्पी और एकांतवास मांगता है। अपनाने में हर्ज न था।

2013 में देश के गृहमंत्री ने विज्ञान भवन में भारत की तरफ से पहली बार आयोजित की जा रही एशिया प्रशांत क्षेत्रों की अंतर्राष्ट्रीय कांफ्रेस में सम्मालन की शुरुआत तिनका तिनका तिहाड़ शीर्षक की किताब और उसी पर लिखे गाने की सीडी के विमोचन से की। इस किताब का संपादन मैंने और विमला मेहरा (तब दिल्ली जेल की महानिदेशक) ने किया था। किताब के केंद्र में जेल नंबर 6 में बंद 4 महिला बंदिनियां थीं। उस सुबह उस विस्तृत मंच पर किताब और सीडी थामे सोचा भी नहीं था कि ठीक 10 साल बाद 2023 में जब इसकी कहानी को लिखने बैठूंगी, तब तक देश भर के कई तिनके इससे जुड़ चुके होंगे। हिंदी और अंग्रेजी के अलावा इस किताब का अनुवाद चार भारतीय भाषाओं में हुआ और इतालियन में भी। 2018 में इस किताब के मराठी संस्करण का विमोचन महाराष्ट्र की यरावदा जेल मे किया गया। किताब 2015 में लिम्का बुक आफ रिकार्ड्स में शामिल हुई। जेल की चारदीवारी पर एक लंबी म्यूरल पेंटिंग बनी जो देश की सबसे लंबी म्यूरल पेंटिंग थी। इसका उद्घाटन दिल्ली के उपराज्यपाल ने किया। रंगों से भरी दीवार पर किताब से ली गई सीमा की कविता- चारदीवारी की यह पंक्तियां उकेरी गईं-  सुबह लिखती हूं, शाम लिखती हूं, इस चारदीवारी में बैठी बस, तेरा नाम लिखती हूं। दीवार आज भी उसी अंदाज से सजी है। 

इसके बाद मेरा लिखा गाना- तिनका तिनका तिहाड़- इसी जेल में शूट हुआ। गाना यूट्यूब पर है। इसे बंदियों ने गाया था। इसे गाने वाला प्रमुख बंदी जेल से रिहा होने के बाद लंबा जी न सका लेकिन यह गाना आज उसके काम को जिंदा रखे है।

तिनका तिनका तिहाड़ है/तिनके का इतिहास है/तिनके का अहसास है/तिनके में भी आस है

लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने संसद भवन के अपने कक्ष में इस गाने का विमोचन किया। आज भी, तिनका तिनका तिहाड़ किसी ने किसी रूप में जिंदा है। 

इस पृष्ठभूमि में तिहाड़ में हुई हालिया घटनाओं को लेकर अपनी टिप्पणी देते हुए कई बार सोचना पड़ा। यह लिखना लाजिमी लगा कि किसी एक घटना या घटनाओं की वजह से पूरी जेल व्यवस्था को दोषी ठहरा देना ठीक न होगा। जेल राज्य का विषय है। दुरुह है। बाकी अन्य विभागों की तरह जेल की भी अपनी चुनौतियां हैं। बेशक जेल में किसी बंदी को इस तरह से मार दिया जाना अक्षम्य और अमानवीय है लेकिन इसकी वजह से सभी को एक ही चश्मे से देखना और सभी पर एक ही नीति को लागू कर देना भी उतना ही अमानवीय होगा।  

जेलों का नुकसान तीन तरह के लोगो ने किया है। मीडिया, बाहर के  टिप्पणीकार और तीसरा खुद जेल का स्टाफ। एक टापू की तरह संचालित होनी वाली जेलें मीडिया और जनता के लिए हमेशा रोमांच और कौतुहल का विषय रही हैंं लेकिन मीडिया और फिल्मों के लिए जेल तिजोरी भरने का साधन भर ही है। उनके लिए जेल सरोकार नहीं है। मनोरंजन है। अपनी जगह भरने का सुंदर टिकाना। बाहर के टिप्पणीकार और कई बार शिक्षाविद भी जेल को जाने बिना ही जेल को लेकर बड़ी टिप्पणियां करते हैं, हिदायतें और धमकियां भी देती हैं। यह जाने बिना कि जेल को जाने बिना सारी जेल को सुविधापरक वीआईपी धरातल कह देना अनुचित है। अनुभव के बिना लिखने और चिल्लाने से जेल का कोई भला नहीं होता। इसी तरह जेल का स्टाफ अगर वाचाल है या यह नहीं जानता कि उसकी क्या सीमाएं हैं तो वह जेल का सबसे बड़ा दुश्मन हो सकता है। तिहाड़ की घटना पर जेल के कई अधिकारियों ने तिहाड़ के पूरे स्टाफ पर टिप्पणी करनी शुरू कर दी, यह सोचे बिना कि इस तरह की घटना उनकी जेल में भी हो सकती है। इस वाचाल कबड्डी में कई रिटायर्ड अधिकारी भी कहीं पीछे नहीं हैं। कुछ को ऐसी घटनाओं में अपने लिए सुअवसर दिखने लगता है। इसमें यह बात भी गौर करने लायक है कि तिहाड़ की इतनी बड़ी घटना खुद तिहाड़ के ही स्टाफ की मिलीभगत के बिना होनी असंभव थी। जेल के अंदर की कमजोर कड़ियों के बिना इतनी बड़ी घटना हो ही नहीं सकती। चार्लस शोभराज से लेकर टिल्लू तेजपुरिया तक जेल स्टाफ का एक हिस्सा ऐसे अपराधों का साझीदार होता ही है। दायरे में रहते हुए यह भी लिखा जाना जरूरी है कि भारत में न्याय व्यवआपराधिक मामलों को जल्दी निपटाने में असफल रही है। इसमें जजों की संख्या में कमी ने भी जेलों को भीड़ से भर दिया है। 

जेल में हुई घटनाओं का खामियाजा एक आम बंदी को ही उठाना पड़ता है। मध्य प्रदेश की सेंट्रल जेल भोपाल में 2016 में दीवाली की रात सिमी के आठ बंदी फरार हो गए थे लेकिन इस घटना का नतीजा आम बंदी को उठाना पड़ा। बाद में इंदौर की जेल में मैं जब महिला बंदियों से मिली तो उन्होंने बताया कि भीषण सर्दी में भी उन्हें अपने घर से तेल मंगवाने की इज़ाजत नहीं थी। पथरीली जमीन पर महिलाएं शुष्क शरीर के साथ सोने के लिए मजबूर थीं। वो कहीं भागने वाली नहीं थीं। वो सिमी की आतंकवादी भी नहीं थी लेकिन चूंकि अपराधी उनके राज्य की एक जेल से भागे थे, इसका परिणाम इन महिलाओं को उठाना पड़ा और साथ ही उनके बच्चों को भी।

जेलों में हत्या, मार-पीट और अनुशासनहीनता जैसी तमाम घटनाओं के बाद बंदियों की मुलाकातों पर असर पड़ता हैं। उनके लिए आने वाले सामान पर भी बंदिशें लगने लगती है। मीडिया को इसकी  कोई परवाह नहीं। कई जेलों में मुलाकातियों द्वारा लाई जाने वाली भोजन सामग्री में कटौती कर दी जाती है। इन मुलाकातों का टकटकी लगाकर इंतजार करते बंदी पर जब किसी और की वजह से बंदिशों का दवाब बढ़ता है तो वो अंदर से हार जाता है। तिहाड़ की घटना शर्मनाक है लेकिन उससे कम शर्मनाक मीडिया का रवैया भी नहीं है। मानवाधिकार के बेतहाशा दबाव और मीडिया की नकारात्मकता की वजह से कई जेलें डर से भर गईं हैं। 

जेलों का एक मानवीय चेहरा भी है। कोरोना के समय जब पूरी दुनिया अपने घरों में सिमटे रहना चाहती थी, तब इन बंदियों ने बाहर के लोगों की परवाह किए बिना मास्क और सैनिटाइजर बनाए। कुछ जेलों ने बाहर की दुनिया के लिए रोटियां तक बनवाकर भेजीं। बाहर की दुनिया ने पलटकर इनकी तरफ देखा तक नहीं। इसी तरह  जेल का एक बड़ा स्टाफ बंदियों की हिफ़ाज़त में जुटा रहा। महाराष्ट्र में तो कुछ जेल अधिकारी जेल में ही रहने लगे ताकि उनकी बार-बार आवाजाही से जेल में कोरोना न हो। 

भारत की राष्ट्रपति ने कुछ महीने पहले कहा था कि क्या जेलें बंद नहीं की जा सकतीं। उनकी चिंता थी कि जेलों में बड़ी तादाद में ऐसे लोग हैं जो छोटे अपराधों की वजह से जेल में बंद हैं। विचाराधीन हैं। बेल के पैसे नहीं दे सकते। तब रातोंरात जेल पर खबरें चलीं। फिर मामला ठप्प।

जेलें बंद नहीं हो सकतीं। जब तक समाज रहेगा, जेलें भी रहेंगी। हां, उन्हें मानवीय और सुधारात्मक जरूर बनाया जा सकता है लेकिन जिन जेलों में भ्रष्टाचार की निगरानी का मजबूत तंत्र न हो, समयसीमा के भीतर कड़ी कार्रवाई न हो, काडर व्यवस्था दुरुस्त न हो, आइपीएस और जेल काडर के अधिकारियों में अनवरत तनातनी हो, प्रमोशन समय पर न होते हों, स्टाफ के रहने और छुट्टी की नियत सुविधाएं न हों, बदहाल घर हों, बेहतरीन काम पर भी कोई प्रोत्साहन न हो और काम न जानने वाले बाहर से आकर साम्राज्य चलाने के लिए लाए गए नौसिखिए अधिकारी हों, वहां जेल को सुधारने की बात सोचना किसी मजाक से कम नहीं। भारत के गृह मंत्रालय को सबसे पहले इस काडर सिस्टम पर गौर करते हुए जरूरी बदलाव करने चाहिए, जेलों की सुरक्षा पर होने वाले खर्च की जांच करनी चाहिए, जेल अधिकारियों की नियमित ट्रेनिंग और उनके मानसिक स्वास्थ्य का आकलन होना चाहिए, अयोग्य, अक्षम या बाहर से लाए गए जेल के काम से अनभिज्ञ अधिकारियों को जेल का जिम्मा देने की बजाय व्यावसायिक रूप से कुशल लोगों को जेल की बागडोर दी जाए और हां, जब यह प्रक्रिया चल रही हो तो बाहरी तत्वों को टिप्पणी करने की बजाय मंत्रालय और जेल को अपना काम करते रहने की आजादी देनी चाहिए। मीडिया को भी इतनी कृपा करनी चाहिए कि वह

जेलों के उजले पक्षों पर भी कभी-कभार बात करे और जेल को कुछ हद तक जेल की तरह रहने दे। हाल के दिनों में एक जेल में मैंने एक पत्रकार को जेल के एक स्टाफ से इस बात पर बहस करते देखा कि जब पूरी जेल के हर बंदी के पास मोबाइल है तो वह अपना मोबाइल क्यों जेल के अंदर नहीं ले जा सकता। जेल के किसी एक बंदी के पास अवैध रूप से मोबाइल होने का मतलब यह नहीं कि जेल के हर बंदी के पास फोन है। जेल अधिकारी पलट कर जवाब न दे पाए तो इसका मतलब यह नहीं कि पूरी जेल को अनुसासनविहीन मानकर उस पर मनमाना लेबल चिपका दिया जाए। इसी तरह जेल अधिकारियों को भी मीडिया के साथ अपना संवाद सधा और सटीक रखना होगा। दोनों अपनी सीमाओं और मर्यादाओं को समझें। यह ध्यान रहे कि आम बंदी और ईमानदार स्टाफ का मनोबल न टूटे। 

हरियाणा की जेलों में रेडियो लाने का काम तिनका तिनका फाउंडेशन ने ही किया था। 2021 में जिला जेल, पानीपत में राज्य का पहला जेल रेडियो आया था। 28 साल के बंदी कशिश ने तिनका जेल रेडियो के लिए जो गाना गाया था, उसका मुखड़ा जेल की मौजूदा स्थिति पर सही उतरता है-

दे दे तू मौका जिंदगी

इस बार जीने का

भारत भर की जेलों को एक मौका दिया जाना चाहिए, इस हिदायत के साथ कि अगर इस मौके का सही दिशा में और यथाशीघ्र इस्तेमाल नहीं हुआ तो जेलों के अंदर बचे भरोसे के खंडहर भी ढह जाएंगे।

(डॉ. वर्तिका नन्दा जेल सुधारक और मीडिया विशेलेषक हैं। उनकी स्थापित तिनका तिनका फाउंडेशन ने 2019 में जिला जेल, आगरा औऱ हरियाणा की जेलों में रेडियो स्थापित किया। भारत के राष्ट्रपति से सम्मानित। तिनका तिनका तिहाड़ दो बार लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में शामिल। वर्तमान में दिल्ली विश्वविद्यालय के लेडी श्रीराम कॉलेज में पत्रकारिता विभाग की प्रमुख )

Email: tinkatinkaorg@gmail.com 

 








May 11, 2023

Delhi Police: Podcasts: Kissa Khaki Ka: Episode 69

Promo of Episode 69:



Sixty-Ninth Episode of Kissa Khaki Ka: Released on 7 May 2023:


Watch on YouTube: https://youtu.be/sqmm0tBwvts

Delhi Police: Podcasts: Kissa Khaki Ka: Episode 68

Promo of Episode 68:



Sixty-eighth Episode of Kissa Khaki Ka: Released on 30 April 2023:


May 9, 2023

Delhi Police: Podcast: Kissa Khaki Ka: Episode 67

Promo of Episode 67:



Sixty-seventh Episode of Kissa Khaki Ka: Released on 23 April 2023:





May 5, 2023

2023: Gang War in Tihar Jail: Tinka Tinka Tihar

 2023: May 6: On Nav Bharat.

TIHAR GANG WAR ARTICLE.







May 4, 2023

2023: Gang war in Tihar Jail

2023: May 4: On ABP News and Navbharart Gold. Thanks to journalists from both these organisations.
This happens to be the 10th year of the creation of the unique Tinka Tinka Tihar.
जेल को समझने के लिए एक जीवन कम है। सुधार की राह लंबी है।