May 6, 2020

तिनका तिनका यात्रा- साहित्य आज तक

लेखन मेरे लिए उत्सव है और कविता मेरे मौन की सहयात्री...जैसे भावों से भरी वर्तिका नन्दा कभी टीवी की जानीमानी शख्सियत थीं. पर पत्रकार और एंकर की यह यात्रा आज प्रतिष्ठित जेल सुधारक और शिक्षाविद के रूप में बदल चुकी है. फिलहाल दिल्ली विश्वविद्यालय के लेडी श्री राम कॉलेज के पत्रकारिता विभाग की प्राध्यापक हैं, पर इससे सेवा और लेखन को लेकर उनका जुनून कम नहीं हुआ है. यह कम लोगों को पता होगा कि कभी कविताओं को लेकर उनकी दीवानगी का आलम यह था कि जब वह स्कूल में पढ़ती थीं, तभी 'मधुर दस्तक' नाम से उनकी पहली पुस्तक छपी, जो एक कविता संकलन था. बाद में तो किताबों का जैसे तांता लग गया. पत्रकारिता में उनकी 'टेलीविजन और अपराध पत्रकारिता', 'ख़बर यहां भी', 'टेलीविजन और क्राइम रिपोर्टिंग' और 'मीडिया और बाजार' जैसी पुस्तकें आईं. 'टेलीविजन और क्राइम रिपोर्टिंग' के लिए उन्हें 'भारतेन्दु हरिश्चंद्र अवॉर्ड' भी मिला.


कविता संकलनों में 'रानियां सब जानती हैं', 'थी. हूं..रहूंगी...' और 'मरजानी' शामिल है. 'थी. हूं..रहूंगी...' के लिए उन्हें ऋतुराज परंपरा सम्मान भी मिला. पर उनका असली सम्मान स्‍त्री-शक्ति पुरस्‍कार है, जिसे महिला सशक्तिकरण पर देश के सबसे बड़े नागरिक सम्मान का दर्जा हासिल है. उन्हें यह पुरस्कार तत्‍कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के हाथों मिला था. जेलों पर अपने काम की वजह से उन्हें दो बार लिम्का बुक ऑफ़ रिकॉर्ड्स में शामिल किया गया. उनके इस काम के महत्त्व का अनुमान इससे भी लगाया जा सकता है कि देश की 1382 जेलों में महिलाओं और बच्चों की अमानवीय स्थिति के बारे में सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका की सुनवाई के दौरान जस्टिस एमबी लोकूर और जस्टिस दीपक गुप्ता की बेंच ने नंदा को भी अपनी आकलन प्रक्रिया में शामिल किया. वर्तिका नन्दा ने देश की तीन जेलों के लिए परिचय गान भी लिखे हैं, जिन्हें जेल के ही बंदियों ने गाया. इसके अलावा वह जेलों पर किताबों की एक श्रृंखला तैयार कर चुकी हैं, जिनमें 'तिनका तिनका तिहाड़', 'तिनका तिनका डासना' और 'तिनका तिनका मध्य प्रदेश' उल्लेखनीय है. उनके अपने शब्दों में 'तिनका तिनका डासना' एक पत्रकार और सुधारक-दोनों के मिश्रण से जेल की जिंदगी का खाका खींचती है.

ऐसे दौर में जब कोरोना ने हमें घरों में कैद कर दिया है, तब साहित्य तक के साथ वर्तिका नन्दा अपनी पुस्तक 'तिनका तिनका डासना' के साथ जेलों की उस यात्रा पर ले जा रही हैं, जहां उनके शब्द इस बात का अहसास कराते हैं कि कैदियों, उनके परिवार और उनके रिश्तेदारों, दोस्तों, मुलाकातियों के भी अपने बुनियादी मानवीय हक हैं...तो बने रहिए साहित्य तक के साथ, किस्सा-कहानियों, सच्चाइयों और किताबों की उस अनूठी दुनिया में, जहां ज्ञान भी है, मनोरंजन भी, सीख है, तो साथ भी, संवेदना भी...क्योंकि शब्दों से, किताबों से बेहतर कोई और साथी नहीं.



मई 6, 2020

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2 comments:

Unknown said...

Vartika Nanda ma'am in this recitation takes us to the journey of prison, prison inmates, their families and makes us realise that even they have human rights. That I think is important because most people aren't aware of this very fact and thus end up questioning prison reforms.#vartikananda #tinkatinka #prison #jail

narendra thakur said...

“Being human is given. But keeping our humanity is a choice.” and vrtika man you are the live example of it and the work done by you on improving inmates condition is remarkeble..