Featured book on Jail

Vartika Nanda Travelogue: Bhopal to Bhimbetka: 20 April, 2024

Feb 24, 2022

2022: Tinka Tinka Dasna: Roaring Inspiration Behind the Bars: तिनका तिनका डासना... नायाब काम का संवेदनशील दस्तावेज

Location: Dasna Jail, Uttar Pradesh
Year: 2022

A personal reflection on Tinka Tinka Dasna that has been written sensitivity and empathy and mkes one appreciate the struggles and hopes of the prisoners.

न तो यह समीक्षा है और न ही किताब पर कोई टिप्पणी। हां, मेरे इस लेख में अब जो भी मेरे अल्फाज आगे निकलेंगे वह किताब की प्रतिध्वनि ही होगी। किताब है ‘तिनका तिनका डासना।’ जेल में जिंदगी को महसूस करने का जतन। डॉ वर्तिका नंदा की वह कोशिश, जो जारी है। उस कोशिश ने जिंदगी को सलाम किया है। ऐसी जिंदगी, जो सलाखों के पीछे है। उनकी किताब तो करीब महीनेभर पहले मिल गयी थी, लेकिन पढ़नी मैंने शुरू की मिलने के हफ्तेभर बाद। असल में मेरे ऑफिस से मुझे दो किताबें समीक्षार्थ मिली थीं और लगभग पूरी होने को थीं। 


खैर... वर्तिका जी की इस किताब को पढ़ते-पढ़ते पत्रकारिता जीवन के अपने पुराने दौर में चला गया। एक बार याद है गाजियाबाद से हमारे रिपोर्टर (उस वक्त में हिंदुस्तान अखबार में था) ने खबर लिखी थी जेल की रोटियां खाने की जुगत में कई लोग। स्टोरी पढ़ी, अच्छी लगी और उसका डिस्प्ले अच्छा किया। उसकी कहानी थी कि डासना जेल प्रशासन से रोटी की विनती कई लोग इसलिए करते हैं कि उन्हें बताया गया कि एक बार जेल की रोटी खा लो तो कभी भी जेल जाने की नौबत नहीं आएगी। उस वक्त वह स्टोरी किसी और एंगल से पठनीय लगी और आज उस स्टोरी का वह खौफ समझ में आ रहा है कि सलाखों के पीछे जाने की कल्पनाभर से कोई इंसान कैसे सिहर उठता है। फिर सलाम है उन लोगों को जो वहां भी अपनी जिंदगी को एक नया मोड़ देते हैं। वह मोड़ यूं ही नहीं आता, उसके लिए तिनका तिनका जैसा प्रयास करना पड़ता है। फिर मुझे आरुषि केस की याद आई। मैंने एक बार मीटिंग में कहा था कि आरुषि को लेकर जिस तरह की रिपोर्टिंग हो रही है, वह दुखद है। सचमुच उस समय मीडिया का एक वर्ग खासतौर पर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने सारे मानक ताक पर रख दिए थे। आरुषि और उसके माता-पिता का चरित्र हनन जिस तरह से किया गया, वह शर्मनाक था। डॉ वर्तिका नंदा ने किताब में आरुषि के माता-पिता राजेश और नूपुर के बारे में बहुत संवेदनशील तरीके से लिखा है। सलाखों के पीछे जीवन गुजार रहे लोगों को समझा है डॉ वर्तिका ने। तभी तो ऐसी अनूठी पहल की है। उन्होंने ठीक ही लिखा है-‘वे अगरबत्ती और पेंटिंग तो बनाते हैं लेकिन उनकी अपनी जिंदगी में न महक है, न रंग।’ निपट अनपढ़ सुरेंद्र कोली के कानून का जानकार बनने की बात हो या फिर विजय बाबा की योग जीवनशैली, सभी को डॉ वर्तिका ने प्रवाहमयी शैली में सहज और सरल भाषा में बयां किया है। सरल सिर्फ समझने-पढ़ने में ही नहीं, सरल ऐसी भाषा कि जो भीषण कठिन सफर को तुरंत समझ सके.. हां इसे समझने के लिए संवेदनाएं जिंदा होनी चाहिए। और पाठन संजीदगी के साथ। जेल के अंदर रह रहे अपराधी या अपराध के आरोप में घुटते लोग ही नहीं, वर्तिका जी ने उन पुलिसकर्मियों की जीवनचर्या को भी उकेरा है जिनके लिए काम के कोई घंटे नहीं होते। जिम्मेदारियों के जबरदस्त अहसास के साथ ही जो कैदियों को अनुशासन में भी रखते हैं। मसलन, तत्कालीन डिप्टी जेलर शिवाजी यादव।

पूरी किताब में कविताएं हैं, तस्वीरें हैं। हर तस्वीर में दिल की गहराई में उतर जाने वाला कैप्शन। कैप्शनों की एक बानगी देखिए-फाटक के उस पार रात नहीं ढलती... इधर बेचैनी, उधर उदासी...जहां लोहा पिघलना चाहता है... इस बचपन का पता है जेल... खाना पकता है पर भूख नहीं लगती, वगैरह-वगैरह। अब तो जेल से जुड़े हर सरकारी, गैर सरकारी से इतर के लोग भी डॉ वर्तिका जी को जानने लगे हैं। जाहिर है अनेक लोगों ने उन्हें खत लिखे। मीडिया के हर प्रारूप में उनका जिक्र हुआ। इन सभी बातों का भी इस किताब में जिक्र है। यहां यह बताना मौजूं होगा कि वर्तिका जी राष्ट्रपति से पुरस्कृत हो चुकी हैं, उनके प्रयास को लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में दो बार जगह मिली है और भी कई उपलब्धियां हैं उनके खाते में...। मैं ज्यादा बयां क्या करूं...।

संवेदनाओं की बात हो और कविताएं न हों, ऐसा कैसे हो सकता है। वर्तिका जी अपने काम के कारण या सहजभाव की वजह से या फिर रचनाधर्मिता.... कारण जो भी हो, कवयित्री भी हैं। उन्होंने अनेक जेल गीत लिखे हैं। उन्होंने हर लम्हे को कविताओं में भी समेटने की कोशिश की है। तुम नहीं मिले... हथेली में चिपके उस आंसू में भी नहीं जो सिर्फ तुम्हारी वजह से ढलके थे...। न कागज की कश्ती थी... न रूठने की मस्ती...। ऐसे ही कई अल्फाज जो निश्चित रूप से संवेदनशील दिल से निकले होंगे और जो जेल का परिचय गान भी बन गए होंगे जैसे-... होंगी अपनी कुछ मीनारें... टूटे फिर भी आस ना... ये अपना डा-सना। वर्तिका जी आप चले चलिये... आपके पहाड़ सरीखे बुलंद हौसलों के इस पथ पर शुभकामनाओं के कुछ तिनके हमारी ओर से भी। सादर।

~केवल तिवारी

No comments: