Oct 26, 2011

इस बार की दीवाली

आंसू बहुत से थे 
कुछ आंखों से बाहर 
कुछ पलकों के छोर पर चिपके 
और कुछ दिल में ही 

सालों से अंदर मन को नम कर रहे थे 
आज सभी को बाहर बुला ही लिया 

आंसू सहमे 
उनके अपने डर थे 
अपनी सीमाएं 
पर आज आदेश मेरा था 
गुलामी उनकी 

हां, आमंत्रण था मेरा ही 
जानती हूं अटपटा सा 
पर आंसुओं ने मन रखा 
तोड़ा न मुझे तुम्हारी तरह 
वे समझते थे मुझे 
और मैं उन्हें एक साथी की तरह 

आज इन्हें हथेली पर रखा 
बहुत देर तक देखा 
लगा 
एक पूरी नदी उछल कर मुझे डुबो देगी 

पर मुझे डर न था 
मारे जाने की सदियों का धमकियों के बीच 
मन ठहरा था आज 

तो देखे आंसू बहुत देर तक मैनें 
फिर पी लिया 
मटमैला, कसैला, उदास, चुप, हैरान स्वाद था 

मेरे अपने ही आंसुओं का 
आज की तारीख 
इनकी मौत है 
पर इनकी बरसी नहीं मनेगी 
कृपया न भेजें मुझे कोई शोक संदेश।