Dec 10, 2011

ठगिनी माया

सफर ठगे जाने के बाद शुरू होता है
अपने से
पराये से
किसी पराये अपने से

बीचों बीच रौशनी के बुझने
सुरंग के लंबे खिंच जाने
मायूसी की लंबी लकीर के बीच

ठगे जाने के मुहावरे हमेशा पुराने होते हैं
लेकिन ठगा गया इंसान नया
और उससे निकला सबक भी

Dec 6, 2011

औरत

सड़क किनारे खड़ी औरत कभी अकेले नहीं होती उसका साया होती है मजबूरी आंचल के दुख मन में छिपे बहुत से रहस्य औरत अकेली होकर भी कहीं अकेली नहीं होती सींचे हुए परिवार की यादें सूखे बहुत से पत्ते छीने गए सुख छीली गई आत्मा सब कुछ होता है ठगी गई औरत के साथ औरत के पास अपने बहुत से सच होते हैं उसके नमक होते शुरीर में घुले हुए किसी से संवाद नहीं होता समय के आगे थकी इस औरत का सहारे की तलाश में मरूस्थल में मटकी लिए चलती यह औरत सांस भी डर कर लेती है फिर भी जरूरत के तमाम पलों में अपनी होती है