देश की आजादी के दैरान देश भर के कई साहित्यकारों और स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों को जेल-यात्रा करनी पड़ी. इस कड़ी में पंडित माखनलाल चतुर्वेदी का नाम भी विशेष उल्लेखनीय है.
बिलासपुर में द्वितीय जिला राजनीति परिषद का अधिवेशन सन्
1921 में हुआ जिसकी अध्यक्षता अब्दुल कादिर सिद्धीकी ने की.
इसमें ठाकुर लक्ष्मणसिंह चौहान,
सुभद्रा कुमारी चौहान और पंडित माखनलाल चतुर्वेदी ने भाग लिया था.
अधिवेशन शनिचरी पड़ाव में आए सर्कस पंडाल में हुआ था.
प्रकाश व्यवस्था तब स्थानीय तरीके से की जाती थी.
जिस समय प.
माखनलाल चतुर्वेदी अधिवेशन को सम्बोधित कर रहे थे,
उसी समय पेट्रोमेक्स बुझ गया.
व्यवस्थापक उसे जलाने का प्रबंध कर ही रहे थे कि उन्होंने कटाक्ष करते हुए कहा
‘जैसे यह बत्ती बुझ गई,
ऐसे ही अंग्रेजों की बत्ती बुझ जाएगी’.
कुछ ही क्षणों में पेट्रोमेक्स जल गया तो उन्होंने कहा
'और जैसे फिर से प्रकाश फैल गया,
वैसे ही स्वतंत्रता का प्रकाश हर दिशा में फैल जाएगा.'
सहज रूप में कही गई उनकी इस बात पर कई मिनट तालियां बजती रहीं.
जनता में उत्साह भर गया.
उनके इस कटाक्ष से अंग्रेज इस कदर नाराज हो कि उन्होंने पंडित जी पर राजद्रोह का मुकदमा ही चला दिया.
जिस दिन पेशी हुई,
उस दिन फैसला सुनने करीब दो हजार लोग राष्ट्रीय झंडा लिए राष्ट्रीय गाने गाते और जयघोष करते सुभद्रा कुमारी चौहान आदि के साथ अदालत पहुंचे.
जिले भर के अनेक सिपाही यहां तैनात थे.
वहां राघवेन्द्र राव पं.
रविशंकर शुक्ल,
दाउ घनश्याम सिंह गुप्त,
पं.
माधव राव सप्रे,
पं.
सुन्दरलाल शर्मा,
मौलाना ताजुदीन,
बैरिस्टर ज्ञानचंद वर्मा आदि भी मौजूद थे.
इंडिपेंडेंट,
दैनिक प्रताप राजस्थान केसरी,
तिलक,
कर्मवीर आदि के पत्रकार और प्रतिनिधि भी वहां पर थे.
मजिस्ट्रेट श्री पारथी ने
5 जुलाई
1921 को पंडित माखनलाल चतुर्वेदी
8 माह के कठोर कारवास की सजा सुनाई.
पंडित माखनलाल चतुर्वेदी ने अदालत में अपना वक्तव्य अंग्रेजी में दिया था.
सजा सुनाए जाने के बाद उन्हें बिलासपुर सेंट्रल जेल में भेज दिया गया.
बिलासपुर जेल से ली गई जानकारी के मुताबिक उन पर धारा
124/अ के तहत राजद्रोह का अभियोग लगाया गया था.
सेंट्रल जेल के दस्तावेजों में उनका नाम माखनलाल चतुर्वेदी पिता नंदलाल,
उम्र
32 वर्ष,
निवास स्थान थाना जबलपुर लिखा हुआ है.
उनका क्रिमिनल केस नंबर
39 था.
1 मार्च
1922 को उन्हें केंद्रीय जेल जबलपुर स्थानांतरित कर दिया गया.
इनका कैदी नं.
1527 था.
हिंदी साहित्य में विशिष्ट स्थान रखने वाले प्रख्यात कवि पं.
माखनलाल चतुर्वेदी ने जेल में लेखन को अपना सहारा बना लिया.
जबलपुर केन्द्रीय कारागार मे लिखी गई उनकी कृतियां कैदी और कोकिला और पुष्प की अभिलाषा खूब चर्चित हुईं.
यह माना जाता है कि
28 फरवरी
1922 को बैरक नंबर
9 में कवि माखनलाल चतुर्वेदी ने अपनी मशहूर कविता पुष्प की अभिलाषा लिखी थी.
इस कविता ने उन दिनों आजादी की लड़ाई में देशप्रेम की भावना को जगाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
यह कविता आज भी देश भऱ की प्राइमरी क्लास के पाठ्यक्रम में शामिल है.
जेल प्रशासन ने आज भी बैरक नंबर
9 में उऩकी यादों को सहेजकर रखा है.
यहां उनकी तस्वीर लगी है और दीवार पर भी जानकारी लिखी है.
अब इस बैरक को पंडित माखनलाल चतुर्वेदी के ही नाम पर कर दिया गया है.
जेल परिसर में उनकी प्रतिमा लगवाने का प्रस्ताव भी चल रहा है.
पुष्प की अभिलाषा कविता की कुछ पंक्तियां:
चाह नहीं मैं सुरबाला के,
गहनों में गूथा जाऊं।
चाह नहीं प्रेमी माला में,
बिंध प्यारी को ललचाऊं॥
चाह नहीं सम्राटों के शव पर हे हरि डाला जाऊं।
चाह नहीं देवों के सिर पर चढूँ भाग्य पर इतराऊं॥
मुझे तोड़ लेना बनमाली उस पथ पर तुम देना फेंक।
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने जिस पथ जाएँ वीर अनेक॥
भोपाल स्थित माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय भी उन्हीं के नाम पर स्थापित किया गया है.