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Jan 13, 2024

दैनिक जागरण: 13 जनवरी, 2024: माइक, जिस पर बन रहा है तिनका तिनका कहानियों का संसार

Public Radio Brodcasting Day 
डॉ. वर्तिका नन्दा

डायल 100 के माध्यम से अपराधी को दबोच कर जेल तक पहुंचाती पुलिस या आपराधिक कोशिश को नाकाम करती या फिर इंसानियत के भाव से किसी की जिंदगी को बचाती, आग से घिरे घर की आग को बुझाती पुलिस- पुलिस के कारनामे ऐसे भी होते हैं। इन अनजाने रक्षकों के कारनामे को सामने लाने का काम किया है- दिल्ली पुलिस के पॉडकास्ट 'किस्सा खाकी का' ने। 2022 में शुरू हुआ किस्सा खाकी का देश के किसी भी पुलिस विभाग का पहला और इकलौता पॉडकास्ट है जो पुलिस स्टाफ के मानवीयता से भरे हुए योगदान को आवाज के जरिए पिरो रहा है।  दिल्ली पुलिस अपने सोशल मीडिया के मंचों पर हर रविवार को दोपहर दो बजे एक नई कहानी रिलीज करती है। अब तक हुए तमाम अंकों में हर बार किसी ऐसे किस्से को चुना गया जो किसी अपराध के सुलझने या मानवीयता से जुड़ा था। आकाशवाणी भी अब इन पॉडकास्ट को अपने मंच पर सुनाने लगा है। दिल्ली पुलिस ने अपने मुख्यालय में किस्सा खाकी का एक सेल्फा पाइंट बना दिया है ताकि स्टाफ यहां पर अपनी तस्वीरें ले सकें।

किस्सों का एक संसार जेल में भी है। 2020 में तिनका तिनका जेल रेडियो  जेलों की नींव रखी गई। यह भारतीय जेलों पर अब तक भारत का इकलौता पॉडकास्ट है। करीब 80 अंकों के साथ हर अंक में अलग-अलग जेलों को आपस में जोड़ा गया। दिसंबर के महीने में हरियाणा की जेल जींद के कैदी जयभगवान का गाना आवाज बहुत लोगों ने भले ही न सुना हो लेकिन जेलों ने उसे सुना। कोरोना के दौरान अंबाला जेल के बंदी शेरु ने अपने गाने से बैरकों में कोरोना के लिए जागरुकता लाई। जिला जेल, देहरादून के नेत्रहीन बंदी डॉ. सुचित नारंग ने तिनका जेल रेडियो की धुन बनाई। जेल के बंदियों को रेडियो के धागे ने पिरोया।



तिनका तिनका जेल रेडियो और किस्सा खाकी का- यह दोनों ही पॉडकास्ट भारत के अनूठे और नवीन पॉडकास्ट हैं। इन दोनों की सफलता की कुंजी इनके नएपनसकारात्मकता और गतिमयता में है। कहानियां लोगों को जोड़ने का काम करती हैं। अपनी बनावट और बुनावट के अनूठे अंदाज से यह पॉडकास्ट पुलिस और जेल जैसे सख्त और क्रूर माने जाने वाले महकमों में नरम अहसास भऱ रहे है। कंटेट खालिस हो तो वो हौले-हौले अपनी जगह बनाने की आश्वस्ति देता ही है लेकिन समाज जिस आसानी से बाजारी प्रचार से मिली खबरों को पलकों पर बिठाता हैवैसा उन कहानियों के साथ नहीं होता जिनमें संवेदना का भाव प्रमुख होता है। दुनिया शायद ऐसे ही चलती है। संचार की बाढ़ और बाजार के मसालेदार सामान को पाने के दबाव के बीच में जमीन से आती आवाजें हौले सुनाई देती हैं। वैसे भी अच्छाई के कदम हमेशा छोटे होते हैं और यात्रा लंबी। बतौर किस्सागो इन दोनों पॉडकास्ट को अवैतनिक तौर पर करते हुए मैं खुद गहरे अनुभवों से समृद्ध हुई हूं।

बहरहालसमय की गुल्लक में ऐसी कहानियों का जमा होना तिनका भर उम्मीद को बड़ा विस्तार तो देता ही है।  इन कहानियों पर अगर शोध हो और परिचर्चाएं तो शायद सच्ची-सुच्ची कहानियों का माहौल भी बनने लगे। लेकिन बाजार को शायद मसाला ज्यादा भाता है। ईमानदार कोशिशें सफलता की लंबी छलांगें भरा नहीं करतीं। वे रेगिस्तान में पानी के उस तालाब की तरह होती हैं जो देर से दिखाई देती हैं।

(डॉ. वर्तिका नन्दा भारत की स्थापित जेल सुधारक  और मीडिया शिक्षक। उनकी स्थापित तिनका तिनका फाउंडेशन ने देश की जेलों पर पहले और इकलौते पॉडकास्ट-तिनका तिनका जेल रेडियो की शुरुआत की। जिला जेल, आगरा, हरियाणा और उत्तराखंड की जेलों में रेडियो लाने का श्रेय उन्हीं को जाता है। उन्होंने भारत की जेलों में पत्रकारिता की नींव रखी है। 2014 में भारत के राष्ट्रपति से स्‍त्री शक्ति पुरस्‍कार से सम्मानित। 2018 में सुप्रीम कोर्ट  की एक बेंच ने जेलों पर उनकी सलाहें शामिल कीं। जेलों का उनका काम दो बार लिम्का बुक ऑफ़ रिकॉर्ड्स में शामिल हुआ। जेलों पर तीन किताबों की लेखिका। email: tinkatinkaorg@gmail.com)

Website: Print Media – Vartika Nanda