23 August, 2024: Press Release
Study on the Communication Needs of Women and Children in Prisons released in Lucknow by Chief Secretary, Uttar Pradesh
• Women inmates live in a prison inside the prison- Study has presented suggestions for improving prison life
• 6 jails of UP were chosen for the study
• Prison Radio was started in District Jail, Agra during the study
• Prison radios were later launched in the jails of Haryana and Uttarakhand
• Study was carried out by prison reformer and media educator Vartika Nanda
A detailed research report titled, “Study of the condition of women inmates and their children in Indian Prisons and their communication needs with special reference to Uttar Pradesh” , conducted under the aegis of Indian Council of Social Science Research (ICSSR), was released today in Lucknow by Shri Manoj Kumar Singh (IAS), Chief Secretary, Uttar Pradesh and Shri P. V. Rama Sastry, Director General of Police/Inspector General Prison, Prison Administration and Reform Services, Uttar Pradesh.
The research was carried out by prison reformer and media educator Dr. Vartika Nanda, under the domain of Media, Culture and Society, sanctioned by ICSSR. The study has been evaluated as ‘outstanding’ by ICSSR. The study covered one year period, between March 2019 to 2020. Since the pandemic started in 2020, the study also incorporated the communication needs of inmates during the pandemic. Even after the submission, the research work has continued in the form of continued contribution to jail life.
Centre of Study
District Jail, Agra was selected as the main centre of study for this project. This is one of the oldest jail buildings in India, built in the year 1741 A.D. Apart from this, 5 other jails, namely, Nari Bandi Niketan, Lucknow, District Jails of Ghaziabad, Gautam Buddha Nagar and Banda and Central Jail, Naini, Prayagraj were especially chosen for study.
Uttar Pradesh is the most populous state of India, which recorded the highest number of women inmates and their children in 2018 and also has the highest number of convicts and under trials. Considering these facts, the study had carefully chosen 6 major prisons from all over the state; eastern (Banda and Prayagraj), western (Ghaziabad, Gautam Buddha Nagar and Agra) and central Uttar Pradesh (Lucknow). The study also incorporates several references from other Indian jails, including Delhi Prisons, Tihar.
Officers’ speak
While releasing the report, Shri Manoj Kumar Singh remarked that this is a landmark work and crucial suggestions for the welfare of women inmates and their children should be implemented. These include health care, separate enclosures for the children staying with their mothers in the jail, skill enhancement and courses for women jail staff.
Shri P. V. Rama Sastry, Director General of Police/Inspector General Prison, Prison Administration and Reform Services, Uttar Pradesh- “As spoken about various welfare measures are being taken for women prisoners and children living with them. These includes separate accommodation and construction of barracks for women prisoners, enhancement of healthcare facilities as well as education and skill training initiatives.”
According to Vartika Nanda, Head, Department of Journalism, Lady Shri Ram College, Delhi University," This was an action-oriented research which paved way to several crucial changes in prisons, including introduction of prison radio in the jails of Haryana and District Jail, Dehradun in Uttarakhand. These were executed by Tinka Tinka Foundation. These prison radios are helping inmates immensely in improving their mental health and fulfilling their communication needs."
Background of Vartika Nanda:
Dr. Vartika Nanda is a prison reformer and media educator using the best practices of journalism and academia for prison reforms. She is the founder of Tinka Tinka Foundation, which works for improving prison life, including the introduction of prison radio in District Jail, Agra and the jails of Haryana. She has authored three books on prisons. Her Tinka Tinka Jail Radio Podcasts are exclusive podcasts dedicated to Indian prisons. President of India conferred the Stree Shakti Puraskar on her in 2014. Her name has also been included in the Limca Book of Records twice for her unique work on prison reforms. Her work on prisons was taken cognizance by the Supreme Court of India in 2018. Currently, she heads the Department of Journalism, Lady Shri Ram College, Delhi University.
दिनांक: 23 अगस्त, 2024: पत्र सूचना शाखा/ (मुख्य सचिव मीडिया कैम्प)
सूचना एवं जन सम्पर्क विभाग, उ0प्र0
- मुख्य सचिव ने डॉ0 वर्तिका नंदा की ‘उत्तर प्रदेश के विशेष संदर्भ में भारतीय जेलों में महिला कैदियों और उनके बच्चों की स्थिति और उनकी संचार आवश्यकताओं का अध्ययन’ शीर्षक पर आधारित विस्तृत शोध रिपोर्ट का विमोचन किया
- शोध रिपोर्ट में जेल में निरुद्ध महिलाओं एवं बच्चों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए दिए गए सुझाव
- अध्ययन के लिए यूपी की 6 जेलों को चुना गया
- अध्ययन के दौरान जिला जेल आगरा में जेल रेडियो किया गया शुरू
लखनऊ: मुख्य सचिव श्री मनोज कुमार सिंह ने भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएसएसआर) के तत्वावधान में दिल्ली विश्वविद्यालय के लेडी श्री राम कॉलेज में पत्रकारिता विभाग की प्रमुख व जेल सुधारक डॉ. वर्तिका नंदा की “उत्तर प्रदेश के विशेष संदर्भ में भारतीय जेलों में महिला कैदियों और उनके बच्चों की स्थिति और उनकी संचार आवश्यकताओं का अध्ययन” शीर्षक पर आधारित एक विस्तृत शोध रिपोर्ट का विमोचन किया।
अपने संबोधन में मुख्य सचिव ने कहा कि उत्तर प्रदेश के जेलों में निरुद्ध महिला कैदियों और उनके साथ रह रहे बच्चों के लिये विभिन्न कल्याणकारी उपाय किये जा रहे हैं। इनमें महिला कैदियों के लिए अलग आवास और बैरकों का निर्माण, स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के साथ-साथ शिक्षा और कौशल प्रशिक्षण पहल शामिल है।
उन्होंने डॉ0 वर्तिका नंदा का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि उनके द्वारा एक कठिन विषय को शोध के लिए चुना गया है। सिद्धदोष कैदियों के साथ विचाराधीन कैदियों को भी कारागार में निरुद्ध रहना पड़ता है। आमतौर पर लोग इस विषय पर चर्चा नहीं करना चाहते, क्योंकि उन्हें पॉजिटिव वाइब्स या फीलिंग महसूस नहीं होती।
उन्होंने कहा कि जेलों में इंफ्रास्ट्रक्चर, संचार, सोशल एक्टिविटी को लेकर अच्छा माहौल कैदियों में पॉजिटिविटी को बढ़ायेगा और अपराध की पुनरावृत्ति दर को कम करेगा। शोध रिपोर्ट में जेलों में सुधार के लिए जो सिफारिशें की गई हैं, उन्हें प्रदेश की जेलों में लागू कराने का प्रयास किया जायेगा। उन्होंने डॉ0 वर्तिका नंदा को इस कार्य को आगे भी जारी रखने के लिए शुभकामनायें दी।
उल्लेखनीय है कि यह शोध जेल सुधारक और मीडिया शिक्षिका डॉ. वर्तिका नंदा द्वारा मीडिया, संस्कृति और समाज के डोमेन के तहत किया गया, जिसे आईसीएसएसआर द्वारा अनुमोदित करते हुये ‘उत्कृष्ट’ रूप में मूल्यांकित किया गया है। अध्ययन में मार्च, 2019 से 2020 के बीच एक वर्ष की अवधि को शामिल किया गया। चूंकि महामारी 2020 में शुरू हुई थी, इसलिए अध्ययन में महामारी के दौरान कैदियों की संचार आवश्यकताओं को भी शामिल किया गया।
इस परियोजना के लिए जिला जेल, आगरा को अध्ययन के मुख्य केंद्र के रूप में चुना गया था। यह भारत की सबसे पुरानी जेल इमारतों में से एक है, जिसका निर्माण वर्ष 1741 ई. में हुआ था। इसके अलावा, 5 अन्य जेलों, अर्थात् नारी बंदी निकेतन, लखनऊ, गाजियाबाद, गौतम बुद्ध नगर और बांदा की जिला जेलें और केंद्रीय जेल, नैनी, प्रयागराज को विशेष रूप से अध्ययन के लिए चुना गया था।
उत्तर प्रदेश भारत का सबसे अधिक आबादी वाला राज्य है, जहाँ वर्ष 2018 में महिला कैदियों और उनके बच्चों की संख्या सबसे अधिक दर्ज की गई और यहाँ दोषियों और विचाराधीन कैदियों की संख्या भी सबसे अधिक है। इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए, अध्ययन के लिए पूरे राज्य से 6 प्रमुख जेलों को चुना गया, पूर्वी (बांदा और प्रयागराज), पश्चिमी (गाजियाबाद, गौतम बुद्ध नगर और आगरा) और मध्य उत्तर प्रदेश (लखनऊ)। अध्ययन में दिल्ली जेल, तिहाड़ सहित अन्य भारतीय जेलों से कई संदर्भ भी शामिल किए गए हैं।
डॉ. वर्तिका नंदा जेल सुधारक और मीडिया शिक्षिका हैं, जो जेल सुधारों के लिए पत्रकारिता और शिक्षा के सर्वाेत्तम तरीकों का इस्तेमाल करती हैं। वह तिनका तिनका फाउंडेशन की संस्थापक हैं, जो जेल जीवन को बेहतर बनाने के लिए काम करती है, जिसमें जिला जेल, आगरा और हरियाणा की जेलों में जेल रेडियो की शुरुआत करना शामिल है। उन्होंने जेलों पर तीन किताबें लिखी हैं। उनके तिनका तिनका जेल रेडियो पॉडकास्ट भारतीय जेलों को समर्पित विशेष पॉडकास्ट हैं। भारत के राष्ट्रपति ने 2014 में उन्हें स्त्री शक्ति पुरस्कार से सम्मानित किया। जेल सुधारों पर उनके अनूठे काम के लिए उनका नाम दो बार लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में भी शामिल किया गया है। जेलों पर उनके काम को 2018 में भारत के सर्वाेच्च न्यायालय ने संज्ञान में लिया था। वर्तमान में, वह दिल्ली विश्वविद्यालय के लेडी श्री राम कॉलेज में पत्रकारिता विभाग की प्रमुख हैं।
शोध रिपोर्ट में महिला कैदियों द्वारा अनुभव किए जाने वाले एकाकीपन पर प्रभावी रूप से प्रकाश डाला है, जिनकी ज़रूरतें पुरुषों की तुलना में जेलों में शायद ही कभी पूरी हो पाती हैं। जेलों को आमतौर पर पुरुष आबादी की ज़रूरतों को ध्यान में रखते हुए डिज़ाइन किया जाता है। नतीजतन, जेल प्रणाली में प्रवेश करने वाली महिलाओं, बच्चों और ट्रांसजेंडरों को अपर्याप्त स्वास्थ्य सेवा, संचार सुविधाओं, मनोरंजक कार्यक्रमों, व्यावसायिक प्रशिक्षण और रचनात्मक जुड़ावों के कारण कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। जेलों में उनकी ज़रूरतों को शायद ही कभी ठीक से संबोधित किया जाता है और उन्हें दी जाने वाली सुविधाएँ पुरुषों की तुलना में बहुत कम और अपर्याप्त होती हैं। इस प्रकार, महिला कैदी जेल के अंदर जेल में रहती हैं।
आमतौर पर, जेल कर्मचारियों द्वारा महिला कैदियों को जेल रेडियो में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित नहीं किया जाता है। वे मनोरंजन के लिए टेलीविज़न पर बहुत अधिक निर्भर हैं जो जेल के माहौल की गुणवत्ता को और कम करता है।
इस अवसर पर पुलिस महानिदेशक कारागार श्री पी.वी. रामा शास्त्री, प्रमुख सचिव नमामि गंगे श्री अनुराग श्रीवास्तव, प्रमुख सचिव पर्यटन श्री मुकेश कुमार मेश्राम, प्रबंध निदेशक जल निगम (ग्रामीण) डॉ0 राज शेखर, सूचना निदेशक श्री शिशिर सहित अन्य वरिष्ठ अधिकारीगण आदि उपस्थित थे।
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23 अगस्त, 2024: प्रेस विज्ञप्ति: Tinka Tinka Foundation
उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव ने जेलों में महिलाओं और बच्चों की संचार आवश्यकताओं पर अध्ययन का लखनऊ में विमोचन किया गया.
• महिला कैदी जेल के अंदर एक और जेल में जीती है- अध्ययन ने जेल जीवन को सुधारने के सुझाव दिए हैं.
• अध्ययन के लिए यूपी की 6 जेलों को चुना गया.
• जिला जेल, आगरा में अध्ययन के दौरान जेल रेडियो शुरू किया गया.
• बाद में जेल रेडियो हरियाणा और उत्तराखंड की जेलों में भी शुरू किया गया.
• अध्ययन जेल सुधारक और मीडिया शिक्षिका वर्तिका नन्दा द्वारा किया गया.
"भारतीय जेलों में महिला कैदियों और उनके बच्चों की स्थिति और उनकी संचार आवश्यकताओं का अध्ययन, विशेष रूप से उत्तर प्रदेश के संदर्भ में" नामक एक विस्तृत शोध रिपोर्ट, जो भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICSSR) के तहत की गई थी. उसे 23 अगस्त को लखनऊ में उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव श्री मनोज कुमार सिंह (IAS) और पुलिस महानिदेशक/कारागार महानिरीक्षक, कारागार प्रशासन और सुधार सेवाएं, उत्तर प्रदेश के श्री पीवी रमा ससत्री द्वारा जारी किया गया.
ICSSR द्वारा स्वीकृत यह शोध जेल सुधारक और मीडिया शिक्षिका डॉ. वर्तिका नन्दा द्वारा मीडिया, संस्कृति और समाज के क्षेत्र में किया गया था. इस अध्ययन को ICSSR द्वारा 'उत्कृष्ट' के रूप में मूल्यांकित किया गया है. यह अध्ययन मार्च 2019 से 2020 के बीच एक वर्ष की अवधि पर केंद्रित था. चूंकि 2020 में महामारी शुरू हुई, इसलिए अध्ययन में महामारी के दौरान कैदियों की संचार आवश्यकताओं को भी शामिल किया गया. रिपोर्ट जमा करने के बाद भी, शोध कार्य जेल जीवन में निरंतर योगदान के रूप में जारी रहा.
अध्ययन का केंद्र
इस परियोजना के लिए जिला जेल, आगरा को मुख्य केंद्र के रूप में चुना गया था. यह भारत की सबसे पुरानी जेल इमारतों में से एक है, जो 1741 ईस्वी में बनाई गई थी. इसके अलावा 5 अन्य जेलों- नारी बंदी निकेतन (लखनऊ), जिला जेल गाजियाबाद, गौतम बुद्ध नगर, बांदा और केंद्रीय जेल, नैनी, प्रयागराज को भी अध्ययन के लिए विशेष रूप से चुना गया था.
उत्तर प्रदेश भारत का सबसे अधिक जनसंख्या वाला राज्य है, जिसने 2018 में महिला कैदियों और उनके बच्चों की सबसे अधिक संख्या दर्ज की थी. इसमें सबसे अधिक सजायाफ्ता और विचाराधीन कैदी भी थे. इस दृष्टि से, पूर्वी (बांदा और प्रयागराज), पश्चिमी (गाजियाबाद, गौतम बुद्ध नगर और आगरा) और मध्य उत्तर प्रदेश (लखनऊ) की 6 प्रमुख जेलों को सावधानीपूर्वक चुना गया. इस अध्ययन ने अन्य भारतीय जेलों, जैसे दिल्ली के तिहाड़ जेल से भी कई संदर्भ उठाए.
अधिकारी की बात
इस महत्वपूर्ण रिपोर्ट को जारी करते हुए अपने संबोधन में मुख्य सचिव ने कहा कि उत्तर प्रदेश के जेलों में निरुद्ध महिला कैदियों और उनके साथ रह रहे बच्चों के लिये विभिन्न कल्याणकारी उपाय किये जा रहे हैं। इनमें महिला कैदियों के लिए अलग आवास और बैरकों का निर्माण, स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के साथ-साथ शिक्षा और कौशल प्रशिक्षण पहल शामिल है।
उन्होंने डॉ0 वर्तिका नंदा का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि उनके द्वारा एक कठिन विषय को शोध के लिए चुना गया है। सिद्धदोष कैदियों के साथ विचाराधीन कैदियों को भी कारागार में निरुद्ध रहना पड़ता है। आमतौर पर लोग इस विषय पर चर्चा नहीं करना चाहते, क्योंकि उन्हें पॉजिटिव वाइब्स या फीलिंग महसूस नहीं होती।
उन्होंने कहा कि जेलों में इंफ्रास्ट्रक्चर, संचार, सोशल एक्टिविटी को लेकर अच्छा माहौल कैदियों में पॉजिटिविटी को बढ़ायेगा और अपराध की पुनरावृत्ति दर को कम करेगा। शोध रिपोर्ट में जेलों में सुधार के लिए जो सिफारिशें की गई हैं, उन्हें प्रदेश की जेलों में लागू कराने का प्रयास किया जायेगा। उन्होंने डॉ0 वर्तिका नंदा को इस कार्य को आगे भी जारी रखने के लिए शुभकामनायें दी।
श्री पीवी रामा सास्त्री, पुलिस महानिदेशक/कारागार महानिरीक्षक, कारागार प्रशासन और सुधार सेवाएं, उत्तर प्रदेश ने तिनका तिनका फाउंडेशन के किए जा रहे कामों को सराहा और सलाहों पर गौर करने और उन्हें यथासंभव लागू करने की आश्वस्ति दी।
अध्ययन के निष्कर्ष
"महिला कैदी जेल के अंदर एक और जेल में जीती हैं..."
शोध ने उन कठिनाइयों पर प्रकाश डाला है, जिनका सामना महिला कैदियों को करना पड़ता है. उनके संचार और स्वास्थ्य से संबंधित आवश्यकताएं अक्सर उपेक्षित रह जाती हैं. जेल के डिजाइन आमतौर पर पुरुष कैदियों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर बनाए जाते हैं, जिसके कारण महिलाएं, बच्चे और ट्रांसजेंडर जेल में कई चुनौतियों का सामना करते हैं. उनके लिए न तो स्वास्थ्य सेवाएं पर्याप्त हैं, न ही संचार सुविधाएं, न ही मनोरंजन कार्यक्रम, न ही व्यावसायिक प्रशिक्षण. इन समस्याओं के चलते महिलाओं को ऐसा महसूस होता है जैसे वे एक जेल के अंदर दूसरी जेल में रह रही हों.
आमतौर पर महिला कैदियों को जेल रेडियो में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित नहीं किया जाता. वे मनोरंजन के लिए मुख्य रूप से टेलीविजन पर निर्भर रहती हैं, जिससे जेल का माहौल और खराब हो जाता है. जेलों में बच्चों को पर्याप्त अवसर नहीं मिलते कि वे कुछ नया सीख सकें या खुद को विकसित कर सकें. जेल रेडियो का राज्य जेल नियमावली में संस्थागत रूप से कोई उल्लेख नहीं है, जबकि मॉडल जेल नियमावली में इसका लंबे समय से समावेश किया गया है. जिन जेलों में यह शुरू किया गया है, वहां भी इसे निरंतरता नहीं मिली है, क्योंकि इसमें रुचि की कमी होती है. इसके अलावा, बुनियादी ढांचे की कमी है, जैसे स्टूडियो और उचित साउंड सिस्टम की अनुपस्थिति. जेल रेडियो के विकास और प्रभाव का अवलोकन और रिकॉर्ड करने के लिए कोई व्यवस्थित निगरानी प्रणाली भी नहीं है.
उत्तर प्रदेश की किसी भी जेल में कैदियों को संचार या शिक्षा के लिए इंटरनेट का उपयोग करने की अनुमति नहीं है. कंप्यूटर से संबंधित प्रशिक्षण भी नियमित रूप से नहीं होता है. हर महिला कैदी, जो अपने बच्चे के साथ रह रही थी उसने यह इच्छा व्यक्त की कि उनके बच्चों को इंटरनेट का उपयोग करने की अनुमति दी जाए ताकि वे दुनिया के बारे में अधिक जान सकें, बच्चों के अनुकूल सामग्री का पता लगा सकें और शब्दावली सुधारने वाले कार्यक्रमों में भाग ले सकें.
जेल रेडियो का संस्थानीकरण न होना, मौजूदा जेल रेडियो को जारी रखने और बनाए रखने में रुचि की कमी, बुनियादी ढांचे की कमी, निगरानी प्रणाली की अनुपस्थिति, और इंटरनेट व डिजिटल साक्षरता जैसी सुविधाओं का न होना, इन सबने उत्तर प्रदेश की जेलों में संचार की खाई को और गहरा कर दिया है.
प्रभाव
अध्ययन ने प्रस्तावित शोध कार्य से परे जाकर जेल के माहौल में सकारात्मक बदलाव लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. इसने कौशल की कमी की पहचान की और कैदियों के कौशल को निखारने में मदद की, जिससे उनके विकास में और योगदान मिला.
जिला जेल आगरा में शोध के दौरान, एक ऑन-कैंपस रेडियो स्टेशन शुरू किया गया, जिसे पूरी तरह से कैदियों द्वारा संचालित किया जाता है. यह स्टेशन कैदियों की तत्काल और उभरती हुई संचार आवश्यकताओं को पूरा करता था. इसका प्रसारण तीन कैदियों द्वारा शुरू किया गया था, जिनमें से तुहिना यूपी की सभी जेलों में एकमात्र महिला रेडियो जॉकी (आरजे) थी. बाद में, शोधकर्ता ने हरियाणा की 20 जेलों में से 10 में जेल रेडियो की शुरुआत की.
इस रेडियो की सफलता ने उत्तर प्रदेश जेल विभाग को राज्य की सभी 5 केंद्रीय जेलों और 18 जिला जेलों में जेल रेडियो शुरू करने के लिए प्रेरित किया. यह पहल मार्च 2020 में कोविड-19 महामारी के दौरान, जब कैदियों से मुलाकात पर रोक लगा दी गई थी, और भी महत्वपूर्ण हो गई.
इस शोध का महिला कैदियों के लिए जेलों में टेलीफोन की उपलब्धता पर भी महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा. शोधकर्ता ने पहले उत्तर प्रदेश जेल विभाग से राज्य की जेलों में महिला कैदियों के लिए टेलीफोन सुविधा प्रदान करने का अनुरोध किया था, जिसे कोविड-19 के दौरान स्वीकार किया गया और लागू किया गया. शोधकर्ता द्वारा चयनित पांच जेलों में किए गए सर्वेक्षण ने बाहरी दुनिया से जुड़े रहने में टेलीफोन की उपयोगिता को फिर से साबित किया.
शोध का उद्देश्य
यह क्षेत्र-आधारित और कार्य-उन्मुख अध्ययन भारत की जेलों में महिलाओं और बच्चों की जीवन स्थितियों और संचार आवश्यकताओं से संबंधित शोध में मौजूद खाइयों को भरने का प्रयास करता है. अकादमिक साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान के अलावा, इसने इन खाइयों को दूर करने के संभावित तरीकों की खोज की और विशेष रूप से उत्तर प्रदेश की जेलों के संदर्भ में सुझाव दिए हैं.
महिला कैदी और उनके बच्चे जेलों में हाशिए पर रहने वाले वर्गों में शामिल हैं. हालांकि उनकी सामान्य जीवन स्थितियों पर कुछ अध्ययन किए गए हैं, लेकिन उनके संचार पहलुओं पर शायद ही ध्यान दिया गया है. सीधा और अप्रत्यक्ष संचार महिलाओं के समग्र कल्याण और बच्चों के व्यक्तित्व विकास के लिए महत्वपूर्ण है, इसलिए उनकी संचार जरूरतों का अध्ययन अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है. यह अध्ययन अंततः नीतिनिर्माताओं, जेल प्रशासकों और मीडिया को कुछ ठोस सुझाव और इनपुट प्रदान करता है. इन सुझावों/इनपुट्स को जमीनी स्तर पर लागू करने से जेलों में पर्याप्त सुधार हो सकता है.
शोधकर्ता के बारे में
डॉ. वर्तिका नन्दा भारत की स्थापित जेल सुधारक औस मीडिया शिक्षक हैं उनकी स्थापित तिनका तिनका फाउंडेशन ने देश की जेलों पर इकलौते पॉडकास्ट-तिनका तिनका जेल रेडियो की शुरुआत की. जिला जेल, आगरा, जिला जेल, देहरादून और हरियाणा की जेलों में रेडियो लाने का श्रेय उन्हीं को जाता है. उन्होंने भारत की जेलों में तिनका जेल पत्रकारिता की नींव रखी है. 2014 में भारत के राष्ट्रपति से स्त्री शक्ति पुरस्कार से सम्मानित. 2018 में सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच ने जेलों पर उनकी सलाहें शामिल कीं. जेलों का उनका काम दो बार लिम्का बुक ऑफ़ रिकॉर्ड्स में शामिल हुआ. जेलों पर लिखीं उनकी तीन किताबें भारतीय जेलों पर जीवंत और प्रामाणिक दस्तावेज हैं.
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