श्रीलाल शुक्ल को दिए जाने वाला पद्मभूषण रेल से ही गायब हो गया। इस देश में जहां सच रोज़ हवा में गुम-सा जाता है और गुम जाती हैं संवेदनाएं, वहां एक लेखक को दिया जाने वाला पद्मभूषण रास्ते से कहीं खो जाता है तो भला किसी को क्या फर्क पड़ेगा? हमारे - आपके जैसे लोग लेख लिखेंगें या ब्लाग पर दो शब्द लिखेंगे। गाड़ी जैसी चल रही है, वैसी ही चलेगी।
राम जी की जय हो।
राम जी की जय हो।
8 comments:
aadhe se jyada le jane vale log to jante bhi nahi honge ki ye "shrelal shukl'kaun mahshya hai.....
मीडिया स्कूल के लिए ढेर सारी बधाईयां।
हर कोई मुद्दों को टालता यहॉं किसको फुरसद है ऐसे मुद्दों पे बहस का । आपने बात पटल पे रख्खा, अपने पत्रकारिता के मूल दायित्व को समझा इसके लिये शुक्रिया ।
इस कृत्य के लिये जितनी निंदा की जाए की जानी चाहिए । आदरणीय श्रीलाल शुक्ल जी किसी सरकारी सम्मान के मोहताज नहीं वो तो लोगों के दिलों में राज करते हैं ।
वर्तिका जी
यह प्रकरण यह बताता है कितनी बेरहम है हमारी व्यवस्थाएँ...दुनिया कहाँ जा रही है और हम कहाँ है...मै तो इस अलंकरण का गुम होना भी श्रीलाल जी का अपमान ही मानता हूँ.हमारी विवशताओं की सूची बहुत बड़ी है.
khub likhe, jam kar likhe. aapke lekhn ka kayal to hu hee.
अजब समाचार दिया आपने.
media school yaani ki ek pehal jo har pal apko yaad dilaye ki aap har waqt ek chatra hi hain kyonki zindgi toe naam hi hai sikhna....surender,lstv
ek nazar mere blog par sijiyega mam lalquila.blogspot.com
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