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Jun 5, 2008

एक किस्सा यह भी

श्रीलाल शुक्ल को दिए जाने वाला पद्मभूषण रेल से ही गायब हो गया। इस देश में जहां सच रोज़ हवा में गुम-सा जाता है और गुम जाती हैं संवेदनाएं, वहां एक लेखक को दिया जाने वाला पद्मभूषण रास्ते से कहीं खो जाता है तो भला किसी को क्या फर्क पड़ेगा? हमारे - आपके जैसे लोग लेख लिखेंगें या ब्लाग पर दो शब्द लिखेंगे। गाड़ी जैसी चल रही है, वैसी ही चलेगी।

राम जी की जय हो।

8 comments:

डॉ .अनुराग said...

aadhe se jyada le jane vale log to jante bhi nahi honge ki ye "shrelal shukl'kaun mahshya hai.....

Omprakash Das said...

मीडिया स्कूल के लिए ढेर सारी बधाईयां।

36solutions said...

हर कोई मुद्दों को टालता यहॉं किसको फुरसद है ऐसे मुद्दों पे बहस का । आपने बात पटल पे रख्खा, अपने पत्रकारिता के मूल दायित्व को समझा इसके लिये शुक्रिया ।
इस कृत्य के लिये जितनी निंदा की जाए की जानी चाहिए । आदरणीय श्रीलाल शुक्ल जी किसी सरकारी सम्मान के मोहताज नहीं वो तो लोगों के दिलों में राज करते हैं ।

sanjay patel said...

वर्तिका जी
यह प्रकरण यह बताता है कितनी बेरहम है हमारी व्यवस्थाएँ...दुनिया कहाँ जा रही है और हम कहाँ है...मै तो इस अलंकरण का गुम होना भी श्रीलाल जी का अपमान ही मानता हूँ.हमारी विवशताओं की सूची बहुत बड़ी है.

विनीत उत्पल said...

khub likhe, jam kar likhe. aapke lekhn ka kayal to hu hee.

Udan Tashtari said...

अजब समाचार दिया आपने.

surender said...

media school yaani ki ek pehal jo har pal apko yaad dilaye ki aap har waqt ek chatra hi hain kyonki zindgi toe naam hi hai sikhna....surender,lstv

surender said...

ek nazar mere blog par sijiyega mam lalquila.blogspot.com