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Pornography and Its Negative Affect on Women

Jun 6, 2009

खबर यहां भी है

खबरों के घेरे में अब चर्च भी आने लगे हैं। हाल ही में इनके खबर में आने की दो वजहें रही हैं। पहली वजह वह ताजा सर्वेक्षण है जिसमें बेबाकी के साथ यह बात सामने आई है कि केरल की एक चौथाई से ज्यादा नन अपनी मौजूदा स्थिति से नाखुश हैं और दूसरी वजह है- केरल की एक नन की लिखी हुई आत्मकथा। सबसे पहले सर्वेक्षण की बात। फादर जॉय कालियथ ने सर्वेक्षण करते हुए केरल के विभिन्न हिस्सों में रह रही ननों से बात की। वे इस कारण की तह में जाना चाहते थे कि क्या वजह है कि पिछले 9 साल में अकेले केरल में ही 14 ननों ने आत्महत्या कर ली और कई चर्च को छोड़ कर भाग रही हैं। अभी हाल ही में केरल में 16 साल पहले हुई एक हत्या की गुत्थी खुली तो उसमें भी सनसनीखेज सच सामने आए। इस हत्या के सिलसिले में एक नन की गिरफ्तारी भी हुई। पता चला कि यह हत्या इसलिए हुई थी कि चर्च में रहने वाली एक नन को दूसरी नन और एक पादरी के शारीरिक संबंधों की जानकारी हो गई थी। इसलिए प्रत्यक्षदर्शी नन की हत्या कर दी गई लेकिन चूंकि यह सोचा जाना आसान नहीं था कि एक नन भी हत्या कर सकती है, इस मामले को सुलझाने में इतना लंबा समय लग गया। इस तरह की कई घटनाओं के परिप्रेक्ष्य में फादर जॉय कालियथ ने जब सर्वेक्षण किया तो यह पाया कि वास्तव में ही ऐसी ननों की कमी नहीं जो चर्चों में न तो खुशी महसूस करती हैं और न ही खुद को सुरक्षित। चर्चों के खबरों में आने की दूसरी वजह है- अमेन ओरू कन्यास्थ्रीयुदे आत्मकथा। यह केरल की ही एक नन सिस्टर जेस्मी की आत्मकथा है। किताब के रिलीज होने के कुछ हफ्तों के भीतर ही इसके दो प्रिंट हाथोंहाथ बिक चुके हैं और तीसरे की 2000 से ज्यादा कापियों की मांग बाजार में बुक की जा चुकी है। यह किताब चर्चों के अंदर की अंधेरी दुनिया की कहानी कहती है। एक कैथोलिक चर्च से जुड़ी सिस्टर जेसिम ने कांवेंट की मानसिक और शारीरिक तौर से परेशान करने वाली गतिविधियों की वजह से कांवेंट को छोड़ दिया था। यह आत्मकथा शुरू से आखिर तक ऐसी कहानियों से ही भरी हुई है। इसमें सिस्टर जेसिम बड़ी बेबाकी से शारीरिक शोषण की उन तमाम घटनाओं का जिक्र करती हैं जिनका उन्हें अपने 33 साल के कांवेंट प्रवास के दौरान सामना करना पड़ा था। सिस्टर जेसिम ने अपनी किताब में बार-बार यह कहा है कि उनके साथ जब भी शोषण किया गया, वह ज्यादा कुछ नहीं कर सकीं। हर प्रसंग पर पूरी तरह से विश्वास कर पाना भी आसान नहीं लगता लेकिन यह भी है कि कम से कम इस किताब के बहाने समाज के सम्मानित और पूजनीय माने जाने वाले पक्षों पर खुलेपन के साथ लिखने की जोरदार शुरूआत तो हो ही गई है। बेशक सदियों से चर्चों से लेकर मंदिरों-मस्जिदों तक तमाम धर्मों के साथ लोगों की अटूट आस्थाएं जुड़ी रही हैं। इसलिए इनसे जुड़े या इनमें पनपने वाले अपराधों और इनके आवरणों की तह में होने वाले शोषण की दास्तान खुलकर कहने की हिम्मत करने वाले कम ही हुए। जिन्होंने ऐसा करने की कोशिश की, उनकी आवाज को या तो दबा दिया गया या फिर कट्टरपंथियों ने उन्हें अधार्मिक और ईश्वर के सिद्धांतों के विपरीत साबित कर दिया। लेकिन इसके बावजूद आवाजें सुनाई देती रहीं। कभी दबे स्वर में तो कभी कुछ आक्रोश के साथ लेकिन अब नए दौर में इन आवाजों ने जोर पकड़ लिया है। दरअसल यह कहानी तकरीबन हर धर्म के साथ रही। पर्दे के पीछे छिपे इस संसार पर बहुत से आरोप लगे और सवाल उछले। मिसाल के तौर पर हाल में डेरा सच्चा सौदा में विवाद खडे़ हुए। संत गुरमीत राम रहीम सिंह पर एक साध्वी ने यौन शोषण का आरोप लगाया। 2005 में कांची कामकोटि पीठ के जगदगुरू शंकराचार्य जयेन्द्र सरस्वती को पीठ के मैनेजर शंकररामन की हत्या का षड्यंत्र रचने का आरोपी बनाया गया। इस सिलसिले में उनको गिरफ्तार भी किया गया। ओशो रजनीश और उनका आश्रम 80 के दशक में सेक्स पर अल्ट्रा लिबरल विचारों और ड्रग्स के इस्तेमाल को लकेर आलोचनाओं के केंद्र में रहे। इसी तरह कुछ इस्लामिक केंद्रों में आतंक की ट्रेनिंग के खतरनाक आरोप लगे और यहां कट्टरवादिता की राष्ट्रविरोधी पाठशाला के मौजूद होने के सुबूत भी पाए गए। फिलहाल सिस्टर जेसिम के इस परेशान करने वाले खुलासे के बाद कैथोलिक चर्च में गुस्सा व्याप्त है और उन्हें मानसिक तौर से बीमार घोषित कर दिया गया है लेकिन दूसरी तरफ राज्य के महिला आयोग ने सिस्टर जेसिम को यह आश्वासन दिया है कि उनके लगाए आरोपों पर पूरी गंभीरता के साथ विचार किया जाएगा। इन आश्वासनों का नतीजा क्या निकलेगा या फिर कुछ निकलेगा भी या नहीं, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा लेकिन इतना साफ है कि बात निकली है तो दूर तक तो जाएगी ही और इस बार इस बात को दूर तक ले जाने में मीडिया को अपनी सक्रिय भूमिका निभानी ही होगी। 180 पेज की यह दास्तान एक आत्मकथा भर ही नहीं है। यह दास्तान समाज के उन हिस्सों की मार्मिक कहानी है जहां सूरज भी झांकने से पहले सोचता है। भारत में धर्म हमेशा ही परदे में छिपा रहा है और धार्मिक परिवेश भी। बेहद संवेदशील होने की वजह से इन इलाकों में झांकने और उनमें दबी कटु सच्चाइयों को उधेड़ सामने लाने की हिम्मत खुद मीडिया भी बटोर नहीं सका है। इस बार एक आम महिला ने इस हिम्मत को दिखाया है और इस दस्तावेज को अपने आप में काफी हद तक विश्वसनीय माना भी जा सकता है क्योंकि इसे कागज पर उतारने वाले ने वहां रह कर वहां की जिंदगी भोगी है। बेशक लिखे गए विवरणों को सच के कथित तराजू में विभिन्न कोणों से तौला जा सकता है लेकिन इस बात को भी भूला नहीं जाना चाहिए कि जहां आग होती है, धुआं भी वहीं उठता है। इस बार जो धुआं उठा है, उस के बहाने ही सही, दीमक लगती दीवारों की मरम्मत का काम जरूर कर लिया जाना चाहिए। (यह लेख 4 मई को दैनिक भास्कर में प्रकाशित हुआ)

3 comments:

RAJNISH PARIHAR said...

videshi charch to pahle hi kaafi badnaam rahe hai...ab india me bhi....very shameful..

Anil Pusadkar said...

सही कह रह है आप्।जिस काले हिस्से पर एक महिला ने हिम्मत कर प्रकाश डाला है मीडिया को कम से कम ग्राफ़िक्स के ज़रिये ही सही देश के सामने रखना चाहिये था। चाहे डेरा सच्चा सौदा का मामला हो य मुरारी बापू का मीडिया पुरी ताक़त से सामने आया था मगर इस माम्ले मे उसकी खामोशी थोड़ी खलती है।इसमे कोई शक़ नही धर्म के नाम पर हो रहे आडम्बर या अधर्म को सामने लाना ही चाहिये। आप भी इस पुन्य कार्य का हिस्सा बनी है आभार आपका।

देवेश वशिष्ठ ' खबरी ' said...

जो नंगा सच कहने की हिम्मत करता है, उसे हमेशा से पागल करार दिया जाता रहा है... अमेन ओरू कन्यास्थ्रीयुदे में सिस्टर जेस्मी की कहानी नई नहीं है... और ऐसा भी नहीं है कि ये कहानी अचानक प्रकट हुई हो... सब जानते हैं, रेत में सिर गाढ़ कर बैठे हैं... बलात्कार के आरोप में गिरफ्तार शायनी आहूजा ने ही एक फिल्म की थी- सिन्स-द पाप... चर्च में धर्म और श्रृद्घा की आढ़ में होने वाला पाप कहानी का केन्द्र था... (फिल्म का अंत बुरा था, पर शायनी ने उससे सबक नहीं लिया... खैर ये दूसरी बात है...)

ये मसला सिर्फ चर्च का नहीं है, तहलका में था तो रिपोर्टिंग के दौरान कुछ और धर्मध्वजों की आढ़ में होता पाप देखा था- सब सार्वजनिक है- बस देखने की फुर्सत नहीं है---

खबरी
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