पंजाब का एक छोटा-सा शहर – फिरोजपुर। 22 साल पहले यहीं से मेरा पहला कविता संग्रह आया था- मामूली सा। तब स्कूल में थी।
फिर यात्रा टीवी चैनलों से गुजरती हुई अब अध्यापन पर आ गई है। अभी लंबा सफर बाकी है। इस सफर की समूची गाथा अंदर जमतीं रहीं कविताओं ने देखी-सुनी। इन कविताओं ने असंख्य चेहरों को गौर से देखा, फिर खुद से संवाद करती रहीं, उनकी कहानी का अंदर वाचन करती रहीं।
मरजानी इसी गाथा का सार है। जो आस-पास देखा, अपनों-परायों को उधड़तो तारों में कसाव लाने के असफल प्रयासों में जो देखा, वो मरजानीहो गया। यही मरजानी आज छप कर आई है राजकमल प्रकाशन से।
इस संग्रह के लिए मरजानी से बेहतर कुछ सूझा नहीं क्योंकि मरजानियां मरने या मारे जाने का जबाव आने पर ज़्यादा जीवंत हो उठती हैं कई बार। सरकारी आंकड़े मरजानियों की कहानियां नहीं समझ सकते। मरजानी को समझने के लिए जरूरी है किसी के दिल में, किसी के आस-पास कोई मरजानी हो और उसका अहसास कहीं छूता हो।
इसलिए हो सके तो मरजानी के सफर में शरीक हो जाइए।
3 comments:
वर्तिका जी
नमस्कार !
मरजानी के लिए आप को बहुत बहुत बधाई . हमे बेताबी है कि इसे पढ़ें .! आप कि यात्रा अनवर यूही ही सुहाने पड़ावों को पार करती करती एक अलग नए मुकाम कि और ले जाए ये कामना है .
सादर
हाँ हम ज़रूर शामिल होंगे। मगर जैसा कि आप ने लिखा है -
"मरजानी को समझने के लिए जरूरी है किसी के दिल में, किसी के आस-पास कोई मरजानी हो और उसका अहसास कहीं छूता हो।"
- तो अब हम कोई मरजानी या उसका एहसास कहाँ से लाएँ....
keep it up
u have always been outstanding
and u continue to shine.......
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