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VN ki Paathshaala: A Digital Learning Hub: Research Paper: 2025

Aug 3, 2011

सुर

कोई सुर अंदर ही बजता है कई बार
दीवार से टकराता है
बेसुरा नहीं होता फिर भी

कितनी ही बार छलकता है जमीन पर
पर फैलता नहीं

नदी में फेंक डालने की साजिश भी तो हुई इस सुर के साथ बार-बार
सुर बदला नहीं

सुर में सुख है
सुख में आशा
आशा में सांस का एक अंश
इतना अंश काफी है

मेरे लिए, मेरे अपनों के लिए, तुम्हारे लिए, पूरे के पूरे जमाने के लिए
पर इस सुर को
कभी सहलाया भी है ?
सुर में भी जान है
क्यों भूलते हो बार-बार

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