इस बार गांधी जयंती का खास तौर से इंतजार रहेगा.
इसकी वजह है-
महात्मा गांधी की
150वीं जयंती के मौके पर देशभर की जेलों में बंद कैदियों को विशेष माफी देने के प्रस्ताव को मिली मंजूरी.
यह फैसला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कैबिनेट बैठक में लिया गया.
इस फैसले के तहत भारतीय जेलों में बंद
60 साल से ऊपर की उम्र के सभी कैदियों को रिहा करने का फैसला किया है.
लेकिन इनमें दहेज हत्या,
बलात्कार,
मानव तस्करी और पोटा,
यूएपीए,
टाडा,
पॉक्सो एक्ट समेत कई मामलों के कैदियों को रिहा नहीं किया जाएगा.
रविशंकर प्रसाद के मुताबिक कुछ खास श्रेणी के कैदियों को ही विशेष माफी दी जाएगी.
इन सभी कैदियों को तीन चरणों में रिहा करने की योजना बनाई गई है. पहले चरण में कैदियों को दो अक्टूबर 2018 को रिहा किया जाएगा. उसके बाद दूसरे चरण में कैदियों को 10 अप्रैल 2019 (चम्पारण सत्याग्रह की वर्षगांठ) को रिहा किया जाएगा और तीसरे चरण में कैदियों को दो अक्टूबर 2019 में फिर से गांधी जयंती के मौके पर ही रिहा किया जाएगा.
इस समय देश की ज्यादातर जेलों में अपनी निर्धारित क्षमता से कहीं ज्यादा कैदी हैं.
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो की
2015 की रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय जेलों में क्षमता के मुकाबले
114.4 फीसदी ज्यादा कैदी बंद हैं और कुछ मामलों में तो यह तादाद छह सौ फीसदी तक है.
यहां यह जोड़ा जा सकता है कि हाल ही में न्यायमूर्ति एम.बी.लोकुर और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की खंडपीठ ने तमाम राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के पुलिस महानिदेशकों
(जेल)
को चेतावनी दी थी कि जेलों में क्षमता से ज्यादा भीड़ के मुद्दे से निपटने के लिए अदालत के पहले के आदेश के मुताबिक एक कार्य योजना जमा करने में नाकाम रहने की वजह से उनके खिलाफ अदालत की अवमानना का मामला चलाया जा सकता है.
दरअसल जेलों के बारे में चिंता और चिंतन को तीन हिस्सों में बांटा जा सकता है.
पहला हिस्सा वह जब किसी इंसान को जेल की सजा होती है.
तब अदालत की गति क्या है,
अपराध के मुताबिक मिलने वाली सजा,
उसकी मियाद और मियाद पूरी होने पर उसकी रिहाई.
दूसरा हिस्सा है-
जेल के अंदर रहते हुए बंदी के साथ होने वाला व्यवहार और बाहर की दुनिया के साथ उसका संबंध,
जेल में सुधार के कार्यक्रम,
जेल का माहौल,
उनके रहने और खाने का इंतजाम,
उनके विकास और पुनर्वास की योजनाएं और जेल से लौटने पर समाज से स्वीकार्यता को लेकर किए जाने वाले प्रयास.
तीसरा वह हिस्सा जब वह अंतत:
समाज में लौट आ जाते हैं.
एक तरफ जेलें भीड़ से उलझ रही हैं और दूसरी तरफ इनमें जेल कर्मचारियों की भारी कमी भी बनी हुई है.
नेशनल लीगल सर्विस अथारिटी
(नालसा)
की ओर से पेश रिपोर्ट के मुताबिक देश भर की जेलों में कर्मचारियों की अनुमोदित क्षमता
77,230 है,
लेकिन इनमें से
31 दिसंबर,
2017 तक
24,588 यानी
30 फीसदी से भी ज्यादा पद खाली थे.
इसी तरह भारत की अदालतों का भी हाल खस्ता है.
कई निचली अदालतों में जजों के करीब
60 प्रतिशत पद खाली पड़े हैं.
हाई कोर्ट में भी इस साल फऱवरी तक करीब
400 पद खाली पड़े हैं.
ऐसे में न तो कोर्ट के अंदर कुछ भी सुचारू और आसान तरीके से हो पाता है और न ही जेल में.
इसका खामियाजा अंतत:
बंदी और उसके परिवार को चुकाना पड़ता है.
इनमें भी खूंखार और प्रभावशाली अपराधी अपने लिए राहें खोज लेते हैं.
स्थिति उनका खराब होती है जो आम अपराधी होते हैं या फिर किसी परिस्थिति में जेल में आ जाते हैं.
ऐसे में सरकार का यह कदम स्वागत योग्य है लेकिन अगर इस फैसले को बिना किसी तैयारी और समझ के लागू किया जाता है तो इसके फायदे कम और नुकसान ज्यादा होंगे.
साथ ही चूंकि जेलें राज्य का विषय हैं,
इनमें राज्यों की उत्साहवर्धक और ईमानदारी भागीदारी के बिना मनमाफिक नतीजे नहीं मिल सकेंगे.
Courtesy – Zee News
http://zeenews.india.com/hindi/special/vartika-nanda-blog-when-gandhinagar-will-be-in-prisons/421297