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Apr 28, 2019

राजनेताओं की जमात और जेलों की स्थिति

कई बार सुपरिंटेंडेंट का सख्त होना या फिर कानून में फेरबदल करने से मना करना भी उनके लिए परेशानी का सबब बन जाता है. यह तस्वीर का एक पक्ष है.


उस दिन एक घंटे के टीवी कार्यक्रम को जेल सुधार पर चर्चा के लिए रखा गया था, लेकिन कुल 60 मिनटों में बमुश्किल 5 मिनट जेल सुधार पर बात हो सकी. बाकी पूरे समय चर्चा में सियासत हावी रही. आलम यह रहा कि फिर जेल सुधार की बात कार्यक्रम के अंत में ही हो पाई. उस समय एक बार फिर यह महसूस हुआ कि सियासत के ऐसे ही घालमेल की वजह से आज भी भारत की जेलें वैसी ही हैं, जैसा उन्हें नहीं होना चाहिए था.

बहस के केंद्र में 12 अप्रैल को सामने आई एक खबर थी, जिसमें तिहाड़ के एक विचारधीन बंदी ने जेल के एक सुपरिंटेंडेंट पर आरोप लगाया था कि एक मामूली शिकायत करने पर उसके साथ जेल के अंदर बदसलूकी की गई और उसे सजा देने और कथित तौर पर सबक सिखाने के लिए उसकी पीठ पर सिगरेट को जलाकर एक अक्षर गोद दिया.

अगर आरोप की प्रकृति पर जाएं तो यह एक बेहद संगीन मामला है. खासतौर पर इसलिए क्योंकि इसमें जेल सुपरिंटेंडेंट का नाम भी शामिल है. लेकिन जैसा कि तिहाड़ जेल के पूर्व पीआरओ और कानूनी सलाहकार सुनील गुप्ता का कहना है कि जेलों के अंदर इस तरह के आरोप कई बार इसलिए भी लगाए जाते हैं क्योंकि बन्दियों की कुछ रंजिशें भी रहती हैं. कई बार सुपरिंटेंडेंट का सख्त होना या फिर कानून में फेरबदल करने से मना करना भी उनके लिए परेशानी का सबब बन जाता है. यह तस्वीर का एक पक्ष है. लेकिन दूसरा पक्ष यह भी है कि कई बार जेलों के अंदर मानवाधिकार का उल्लंघन होता है और अक्सर बंदी उनकी शिकायत तक नहीं कर पाते.

असल में इस पूरी खबर में बहस का मुद्दा यह होना चाहिए था कि जेलों में मानवाधिकार और जेल सुधार को कितनी अहमियत दी जाती है. वैसे तो नियमों के मुताबिक जो भी जेल के अंदर जाता है, उसे उसके मानवाधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता. इन अधिकारों में यह बात भी शामिल है कि बंदी अपने धर्म या अपने संप्रदाय के पालन के लिए स्वतंत्र हो. उसे मजबूरी में किसी भी विचारधारा से बांधा नहीं जा सकता.

लेकिन तिहाड़ को लेकर जो खबर आई है, उसमें इस बंदी ने आरोप लगाया है कि उसकी पीठ पर जबरन जला कर एक धार्मिक शब्द लिख दिया गया. मीडिया के पास जब यह खबर पहुंची तो जेल-जीवन की सच्चाइयों पर चर्चा की बजाय सारी बहस राजनीतिक दलों की खींचतान और धर्म पर सिमट कर रह गई. जबकि बहस इस बात पर होनी चाहिए थी कि किसी भी बन्दी पर किसी भी तरह से मानवाधिकारों का उल्लंघन करते हुए उसकी पीठ पर कोई भी शब्द क्यों उकेरा गया. उसका शोषण या उसकी प्रताड़ना क्यों हुई. इस पूरी बहस में नेताओं की कहीं कोई जरूरत ही नहीं है.

सुप्रीम कोर्ट पिछले कुछ सालों से भारत की जेलों की बदहाली पर अपनी आवाज उठाता रहा है और यही एक वजह है कि बीते कुछ सालों में जेलें फिर से आकर्षण और खबर का केंद्र बन गईं हैं. लेकिन यह भी सच है कि जेलें खबरों में तब आती हैं जब जेल से कोई बुरी खबर आती है. जेल से आने वाली अच्छी खबर आमतौर पर खबर के दायरे में नहीं पाती.

असल में जेलों को राजनीति से जोड़ना आम बात बन गई है क्योंकि हमें लगता है कि अगर जेल के साथ राजनीति नहीं जोड़ी गई तो खबर बिकाऊ नहीं बन सकेगी जबकि जेल कोई बिकने वाली वस्तु नहीं है. जेल समाज की एक ऐसी हकीकत है जो समाज में होते हुए भी समाज से पूरी तरह से कटी हुई है.

देश के 67 प्रतिशत बंदी इस समय भीड़ भी जेलों में रह रहे हैं. अकेले 2014 में करीब 1700 बंदियों ने भारत की अलग-अलग जेलों में आत्महत्या कर ली थी. यानी जेलों की सेहत आज भी बिगड़ी हुई है. इनमें दिल्ली की तिहाड़ जेल को एक मॉडल जेल माना जाता है. यह दक्षिण एशिया की सबसे बड़ी जेल है. आज भी भारत में जब भी कभी जेलों की बात होती है तो तिहाड़ जेल को देखने और समझने की बात ज़रूर की जाती है.

विदेशों से आने वाले जेल अधिकारी भी एक बार तिहाड़ का दौरा जरूर करते हैं ताकि वे तिहाड़ के इंतजामों को देखते हुए अपने यहां भी यहां के बेहतरीन मिसालों को उतार सकें. बीते कुछ सालों में तिहाड़ ने कई काबिल जेल अधिकारी देखे हैं. कई अधिकारियों ने जेल के प्रशासनिक पक्ष को दुरुस्त करने में मेहनत भी की है. लेकिन जेलों के अंदर और बाहर एक बड़ी जेल राजनेताओं ने खड़ी की है और वे अपने दांव-पेंच से जेलों को मुक्त होने नहीं देते.

ऐसे कई राज्य हैं जहां जेल मंत्री ने अपने राज्य की प्रमुख जेलों तक का कभी दौरा नहीं किया. कई बार जेलों में नियुक्त होने वाले जेल अधिकारी भी जेल के तबादले को सजा के तौर पर देखने लगते हैं और इसका खामियाजा भी बंदी ही उठाते हैं.

बहरहाल इस मामले की जांच हो रही है लेकिन जेल की इस घटना को लेकर जिस भाषा और जिस अंदाज में कई राजनेताओं ने आपस में शाब्दिक कुश्ती करनी शुरू कर दी है, उससे यह बात भी पुख्ता हुई है कि जितने अपराधी जेलों के अंदर हैं, उससे कहीं ज्यादा आज भी जेलों के बाहर हैं और हम उन्हें सार्वजिनक जीवन में 'माननीय' कहने के लिए मजबूर हैं.

Courtesy- Zee News https://zeenews.india.com/hindi/india/delhi-haryana/dr-vartika-nanda-blog-on-prisoners-tinka-tinka-campaign/519020

4 comments:

Unknown said...

It feels so good to see Tinka Tinka team and Vartika Ma'am working so hard to improve the lives of prisoners. This totally new initiative has brought a lots of changes in jails. With writing books like Tinka Tinka Tihar and Tinka tinka dasna this movement has achieved s many milestones. Congratulations #Vartikananda #prisoners #human_rights#humanity #prisoners

Unknown said...

It is sad that this is the condition of many prisoners inside jails. If this is how they are treated inside prisons, then how can they ever be reformed? There are laws for prisoners and they have right against torture and inhuman treatment. But most of them may not be aware of their rights. It is great news that we have Movements like Tinka Tinka working for the reformation of prisons and prisoners. Thanks to Tinka Tinka for bringing these stories into limelight. #tinkatinka #prisonreforms #humanrights

Unknown said...

In India, these days every step the authorities take is to suit their own political agendas and to influence voting behavior, needless to say if prisoners did have voting rights the situation would have been different. What is worse is amongst all this human rights of prisoners have lost importance. The media which is quick to scandalise the prisons, restricts itself to the not so suitable characteristics so as to link it to politics and make it advantageous for their TRPs. Prisons even though are part of the very society, yet remains a desolated blind spot. We seldom talk about the developments in prisons, and we can't solely make the government, the political parties or media responsible for the conditions of the prison, because all of them are centred around our interests, the media shows the news that would grab our attention, the political agendas are made keeping in mind what concerns the general public. So, eventually it's the society that needs to change, maybe if we start focusing on each other as humans and are less bothered about religion, things shall change. #vartikananda #tinkatinka #prison #jail

Ananya said...

Dr. Vartika Nanda is working tremendously hard to spread the movement for prison reforms in India. Through her activism, she has produced three books, Tinka Tinka Madhya Pradesh, Tinka Tinka Tihar, and Tinka Tinka Dasna. And I love her message of creating a Rainbow in Prisons.. #tinkatinka #prisonreforms #books