अखबार में कविता छपने का स्वाद ही कुछ अलग होता है—एक सधी हुई मिठास, जो मन को भीतर तक छू जाती है। आज का दिन खास रहा, जब मेरी रचना 'स्त्री' को दैनिक भास्कर की लोकप्रिय 'मधुरिमा' में स्थान मिला। यह सुखद अनुभव और भी खास बन गया जब कई अनजाने पाठकों ने अपनी प्रतिक्रिया भेजी—जिनसे कभी कोई संवाद नहीं हुआ था, पर शब्दों ने पुल बना दिए।
शुक्रिया रचना समंदर इस कविता को इतनी सुंदर जगह देने के लिए।
स्त्री किसी भी राजनीति, बहस या मजाक के केंद्र में कहीं से लाकर रख दी जाती है स्त्री उसके बिना गाली पूरी नहीं होती उसके बिना उलाहनों के गट्ठर भी नहीं बन पाते किसी के उजड़ने के पीछे भी किसी स्त्री का नाम जरुरी है गिरते चरित्र का कोई कथानक भी स्त्री के बिना कहां पूरा हो पाता है सामान बेचने के विज्ञापन में भी स्त्री की छुअन जरूरी है भले ही उसका स्त्री से न हो कोई ताल्लुक स्त्री के बिना टीवी की खबर नहीं चलती स्त्री के बिना जुमले पूरे नहीं होते स्त्री के बिना अपराध होने की वजह नहीं टिकती हत्या से आत्महत्या तक महल से बस्ती तक ( संसद से सड़क तक) -सब जगह जो भी अटपटा, टेढ़ा या मटमैला है उसके भी गर्भ में रख दी जाती है-स्त्री और अब तो यह भी कहा जा रहा है कि दफ्तर पर ज्यादा काम जरूरी है कि कोई घर की स्त्री को कितनी देर तक निहारे स्त्री गडमड हो गई है इन सबमें तन से स्त्री रही पर मन में सिलवटें भर आईं वो पुरुष जैसी बने, स्त्री ही रहे या फिर कुछ भी न रहे इसका फैसला भी स्त्री नहीं करेगी वर्तिका नन्दा
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I was pleasantly surprised to receive this beautiful illustration by an unknown artist, later whom I could identify as Unnati Bhilwara from Bharatpur (Rajasthan), an artist by passion. Well done Unnati!!!
पाठकों की प्रतिक्रियाएं
16 जुलाई अंक में रामायण की रचना हो या महाभारत का संग्राम इसमें भी एक स्त्री की ही भूमिका तय की जाती है भले ही वासना, अहंकार या अन्य करण रहे हो वो पुरुष जैसी बने, स्त्री ही रहे, या फिर कुछ भी ना रहे, इसका फैसला भी स्त्री नहीं करेगी यह दृष्टिकोण पुरुष प्रधान समाज की जबरदस्त सोच को ही प्रदर्शित करता है कविता लेखक वर्तिकानंदा एवं मधुरिमा के प्रकाशन पर बधाई साक्षी,समीक्षा सिंघई,बाकल --------------------- कविता "स्त्री" वाकई कम शब्दों में बेहतरीन कविता लगी, वर्तमान समाज में महिलाओं के सशक्तिकरण, सम्मान, सुरक्षा एवं स्वतन्त्रता की बहुत आवश्यकता है। ताकि वे भी अपने सपनों की उड़ान भर सके। कहानी " नाम" एवं "सोच की गुलामी" भी बहुत सकारात्मक एवं प्रेरणादायक लगी। -रविन्द्र नाथ जुंजालिया, सारसंडा (राजस्थान) ---------------- 16 जुलाई का मधुरिमा अंक बेहद शिक्षाप्रद लगा।"स्त्री "कविता स्त्री की अहमियत बताती है आज समाज के हर क्षेत्र में केंद्रबिंदु स्त्री पर टिका होता है। हमें समाज में स्त्री को सम्मान की दृष्टि से देखना चाहिए। शिक्षाप्रद लेखों के लिए मधुरिमा का दिल से शुक्रिया। आजाद पूरण सिंह राजावत निहालपुरा, जयपुर, राजस्थान। ---------------------- नमस्कार, आज के अंक में कहानी कौन मक्कार,कौन होशियार अच्छी लगी।जीवनशैली तय करती है सेहत रुचिकर। कविता स्त्री सच को बयान करती है। धन्यवाद मधुरिमा। -सुभाष चंद्र ---------------------- आदरणीय वर्तिका नंदा लिखित कविता "स्त्री" बहुत ही सुन्दर लगी. स्त्री पर रचित कविता एक दम प्रासंगिक है. कैलाश कपाड़िया ------------------ 16 जुलाई के अंक में ‘स्त्री’ नामक कविता दिल को छूने वाली थी। आदित्य शेखर, इंदौर, मध्यप्रदेश ------------------- 16 जुलाई को प्रकाशित वर्तिका नंदा की कविता स्त्री मन छू गई। दिनेश बारोठ ॓दिनेश ॔ शीतला कॉलोनी सरवन रतलाम ---------------------- मधुरिमा के वैसे तो हर हफ्ते के अंक में प्रकाशित लेख, लघु कहानियां सभी अच्छे और पठनिय होते हैं। लघु कथा नाम और कविता स्त्री बहुत सुन्दर रचना लगी। डा गायत्री तिवारी रतलाम मध्यप्रदेश ।
2 comments:
heart touching poem, resonating every woman life.
Vartika जी, कई बार पढ़ी आपकी ये एक और शानदार दिल छूती प्रस्तुति , स्त्री...
पहले तो लगा कि स्त्री के सामाजिक जीवन के योगदान में आपने कुछ बातें रखी हैं...लेकिन जब बार बार पढ़ने का मन होने लगा, आपके शब्दों के चयन के कारण, तो विषय की गंभीरता भी समझ आई l
आपने सुन्दर, सहज शब्दों से, गंभीर विषय को, हजारों वर्षों से पीड़ित, आहत और कुपोषित माँ भारती को बहुत सही दर्शाया है l
नरेश कुमार डबास l
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