30 December, 2024
खचाखच भरी हुई पत्रकारिता की क्लास में अगर बच्चों से पूछा जाए कि वो अपने कोर्स की पढ़ाई पूरा करने के बाद क्या करना चाहेंगे, तो करीब अस्सी प्रतिशत का जवाब होता है कि वे जनसंपर्क को अपना करियर बनाएंगे. इस पूरे साल में पत्रकारिता का लेखाजोखा देने के लिए यह एक पंक्ति काफी है. कुछ बरस पहले तक पत्रकारिता एक अलग हिस्सा था और जनसंपर्क पूरी तरह से अलग. खांचे तय थे. पत्रकार अपने आप को सिर्फ पत्रकार ही कहलाना चाहता था, उसके नाम के साथ पीआर शब्द को जोड़ना अक्षम्य अपराध था। इसीलिए बीते सालों के कई पत्रकार आज भी पूरी तरह से खांटी पत्रकारिता ही करते हैं. 2024 के जाते-जाते पत्रकार और पीआर आपस में घुल-मिल गए हैं। अब खालिस पत्रकारिता को खोजना होगा। इसी खोज के दिवास्वप्न में यह साल विदाई ले रहा है।
2024 के इस साल में टीवी पत्रकारिता की तत्परता, सजगता, उत्साह में कोई कमी नहीं दिखी. लेकिन गंभीरता, ओजस्विता, विश्वसनीयता के बढ़ने के आसार भी नहीं दिखे. मुख्यधारा की मीडिया की पकड़ से बड़ी खबरें नहीं छूटीं, लेकिन स्थानीयता फिर भी दरकिनार दिखी. खास तौर पर वहां, जहां पर टीआरपी के उछाल के आने की ज्यादा उम्मीद नहीं थी. कुल मिलाकर टीवी पत्रकारिता का शोर, प्रसार-प्रचार बढ़ा लेकिन सम्मान और भरोसे का दायरा घटता ही दिखाई दिया.
इस बीच ब्रूट जैसे कई मंच एक नएपन से उभरते हुए दिखे. ऐसे मंचों ने न्यूज रूम की तेजी को तो अपनाया लेकिन उसकी चपलता-व्याकुलता-चंचलता से खुद को बचाए रखा. वे सतर्क रहे. उन्होंने artificial intelligence की सीमाओं को भी समझा और लोगों के स्वाद को भी लेकिन लोगों के स्वाद के अनुरूप अपने मूल्यों के साथ उन्होंने कोई खास समझौता नहीं किया. ऐसे कुछ मंचों ने गंभीरता के साथ पत्रकारिता की. टीआरपी को अपने सरोकारों में रखा लेकिन उसे सर्वोपरि नहीं बनाया. मानवीयता से लैस कहानियों को ऐसे कुछ शानदार मंच मिले।
इस बीच दर्शक के पास विकल्पों का इजाफा हुआ है। टीवी चैनलों की ही तरह दर्शक भी जल्दबाज हुआ है। वह तुरंत प्रतिक्रियाएं देने लगा है। उसका सब्र घटा है। अब टीवी का प्रस्तोता भी बेसब्र, उससे सुनने-देखने वाला भी। यह बेसब्री अब जिंदगी का राग बन गई है।
इस साल सिटीजन जर्नलिज्म ने भी एक नया उछाल देखा. पूरी दुनिया में जिसके पास भी मोबाइल और इंटरनेट है, वो अपने आप को काफी हद तक एक सिटीजन जर्नलिस्ट कह सकता है. इसी जर्नलिज्म ने प्रिंट, टेलीविजन और ऑनलाइन मीडिया के लिए एक बड़ी चुनौती खड़ी की है. यह बात अलग है कि टीवी आज भी सिटीजन जर्नलिज्म को न तो गंभीर मानता है और न ही बहुत ज़रूरी, लेकिन उसके स्वीकार न करने से ज्यादा फर्क नहीं पड़ता क्योंकि सिटीजन जर्नलिस्ट अब अपनी जगह बनाने के लिए तैयार है.
इस साल एक और नई बात हुई. भारत सरकार के कई मंत्रालय अब खुद पत्रकारिता से के गुर सीखने लगे लगे हैं। इसी तरह से पुलिस और एमसीडी जैसे विभाग भी. यहां पर किस्सा खाकी का नाम की पॉडकास्ट सीरिज का जिक्र जरूरी लगता है. किसी भी पुलिस विभाग का यह इकलौता ऐसा पॉडकास्ट है, जो पुलिस की सच्ची कहानियों को जगह देता है. इनका संचालन पूरी तरह से दिल्ली पुलिस खुद करती है. इसका मतलब यह भी है कि कई विभाग अब अपने लिए न्यूजरूम खुद बना रहे हैं. वे अपनी खबर खुद चुनते हैं, उसे लिखते हैं, उसे सजोते हैं, उसे प्रकाशित या ब्रॉडकास्ट करते हैं. इसके लिए उन्हें बाहरी मीडिया की जरूरत नहीं पड़ती. तो आज जब पत्रकारिता का छात्र यह कहता है कि वह जनसंपर्क में अपना करिर बनाना चाहता है तो वो इस सच से काफी हद तक वाकिफ नहीं है कि जनसंपर्क के लिए कई विभाग अब खुद ही सक्षम और सबल होने लगे हैं. अकेले पीआर के दम पर टिकना अब आसान न होगा। यह भी है कि खबर की समझ के बिना पीआर महज दिखावा और झूठ का पुलिंदा ही हो सकता है। समझ और गंभीरता का कोई और पर्याय हो ही नहीं सकता।
न्यूजरूम खबर देने में पीछे नहीं रहे लेकिन तब भी आदर्श कहलाने के हकदार न बन सके। मामला ऐसा गडमड हुआ कि न्यूज चैनल न तो विशुद्ध तौर पर खबर दिखा पा रहे हैं और न ही अकेला मनोरंजन। फिल्म उसके सांचे में आता नहीं। न्यूजी मनोरंजन के इस घालमेल का सबसे ज्यादा फायदा हुआ है- ओटीटी प्लेटफार्म को। न्यूज मीडिया ने मनोरंजन और सनसनी देने की अपनी जो प्रवृत्ति और छवि बनाई, उसके विकल्प के तौर पर अब ओटीटी सामने आकर खड़ा हो गया है। उसने न्यूजरूम की चतुरता अपना ली है और बाजार के संकेत को समझ लिया है। न्यूजरूम का गडमड होना ओटीटी वालों के लिए सुहानी बयार लेकर आया है। इससे ओटीटी की फसल का लहलहाना स्वाभाविक है।
जाते-जाते यह साल यह सबक भी देकर जा रहा है कि जरूरत से ज्यादा आत्मविश्वास और खुशफहमी विस्तार को रोकने की वजह बनती है. इसलिए मीडिया की दुनिया में अब पताका उन्हीं की फहराएगी जिनके पाँव ज़मीन पर होंगे और आँखें आसमान पर.
(डॉ. वर्तिका नन्दा: मीडिया शिक्षक और जेल सुधारक/ प्रमुख, पत्रकारिता विभाग, लेडी श्रीराम कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय/ vartikalsr@gmail.com)
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