तेईस साल का बेटा अपने माता-पिता और 20 साल की बहन की हत्या करता है, फिर सुबह की सैर पर निकल जाता है. घर लौटने पर वह एक कहानी गढ़ता है. पुलिस को फोन करता है और कहता है कि उसकी गैरमौजूदगी में किसी ने उसके घर में इतनी भयंकर वारदात कर दी है. दिल्ली पुलिस जांच में जुटती है और कुछ ही घंटों बाद इस नतीजे पर पहुंचती है कि इन हत्याओं को अंजाम देने वाला खुद यही युवक था. नौ जुलाई, 2024 को दिल्ली की गीता कॉलोनी के पास 38 साल के एक व्यक्ति को 100 दुर्लभ और संरक्षित कछुए के बच्चों के साथ गिरफ्तार किया गया. ये सारे कछुए एक बैग में ठूंसे हुए थे और एक दोपहिया वाहन पर ले जाये जा रहे थे. जब पुलिस ने वाहन को रोका, तो एक बड़े काले रंग के बैग में बहुत सारे कछुए ठुंसे हुए थे. पुलिस ने इन कछुओं को तुरंत एक पुलिस स्टेशन में ले जाकर पानी से भरी बाल्टियों में रखा. छोटे-छोटे उन कछुओं को बाद में कड़कड़डुमा अदालत में जज के सामने पेश किया गया. आरोपी को भी अदालत में पेश किया गया. पुलिस ने देखा कि इतने दिनों से बैग में बंद रहने के कारण कछुओं की हालत बदतर थी. पुलिस ने उन्हें तुरंत पानी में रखा और उनके लिए पानी, बीज और फल का इंतजाम किया. शाम को उन कछुओं को असोला भट्टी वन्यजीव अभयारण्य ले जाया गया. इस तरह से उन कछुओं को बचा लिया गया और इस कहानी का सुखद अंत हुआ.
सोलह जनवरी, 2022 को शुरू हुई सच्ची और संजीदा कहानियों के इस पिटारे का नाम है- ‘किस्सा खाकी का’. यह देश के किसी भी पुलिस विभाग की पहली पॉडकास्ट सीरीज है, जिसका संचालन और प्रस्तुतिकरण दिल्ली पुलिस करती है. कहानियां लोगों को जोड़ने का काम करती हैं, यह बात पुलिस ने भी समझी. वर्ष 2022 में जब ‘किस्सा खाकी का’ की शुरुआत को मंजूरी दी गयी, तब किसी को भी इस बात का इल्म नहीं था कि देखते ही देखते कहानियों का यह पिटारा पुलिस स्टाफ के मनोबल को इस कदर बढ़ाएगा और लोगों के दिलों में जगह बनाने लगेगा. अब तक हुए तमाम अंकों में हर बार किसी ऐसे किस्से को चुना गया, जो किसी अपराध के सुलझने या फिर मानवीयता से जुड़ा हुआ था.
दिल्ली पुलिस अपने सोशल मीडिया के विविध मंचों पर हर रविवार को दोपहर दो बजे एक नयी कहानी रिलीज करती है. आकाशवाणी भी अब इन पॉडकास्ट को अपने मंच पर सुनाने लगी है. दिल्ली पुलिस ने अपने मुख्यालय में ‘किस्सा खाकी का’ एक सेल्फी पॉइंट बना दिया है, ताकि स्टाफ यहां पर अपनी तस्वीरें ले सके और प्रेरित हो सके. आवाज की उम्र चेहरे की उम्र से ज्यादा लंबी होती है. ‘तिनका-तिनका जेल रेडियो’ जेलों की आवाजों को आगे लाने का काम एक लंबे समय से कर रहा है. ‘किस्सा खाकी का’ और ‘तिनका-तिनका जेल रेडियो’, ये दोनों पॉडकास्ट भारत के अनूठे और नवीन पॉडकास्ट हैं. मार्च महीने में ‘तिनका जेल’ पॉडकास्ट ने अपने 99 अंक पूरे किये. इन दोनों पॉडकास्ट की सफलता की कुंजी इनके नयेपन, सकारात्मकता और गतिमयता में है. कंटेंट खालिस हो, तो वह हौले-हौले अपनी जगह बनाने की आश्वस्ति देता ही है. यही वजह है कि शॉट्स की भीड़ और मसालेदार खबरों के शोर में इंसानियत की आवाजें उठने लगी हैं. आवाजों की ये कोशिशें इस अंधेरे संसार में दीया बन रही हैं. लेकिन यह मानना होगा कि जिस तेजी से झूठ वायरल होता है, मनोरंजन और मसाला बिकता है, उतने ही धीमे ढंग से जिंदगी की नर्माहट स्वीकारी जाती है. जेल और पुलिस, दोनों का परिचय अंधेरे से है. दोनों के साथ पारंपरिक तौर से नकारात्मकता की छवियां जुड़ी हैं. अंग्रेजों के जमाने से चली आ रही इन क्रूर छवियों को तोड़ना चुनौती है. दूसरे, समाज जिस आसानी से बाजारी प्रचार से मिली खबरों को पलकों में बिठाता है, वैसा उन कहानियों के साथ नहीं होता, जिनसे सिर्फ संवेदना जुड़ी होती है. दुनिया शायद ऐसे ही चलती है.
बहरहाल, समय की गुल्लक में ऐसी कहानियों का जमा होना तिनका भर उम्मीद को बड़ा विस्तार तो देता ही है. लेकिन सच्ची और संजीदा कहानियों की कुछ सीमाएं भी होती हैं. मसालेदार स्वाद का आदी हो चुका दर्शक-श्रोता कई बार सीधी-सादी कहानियों का ज्यादा स्वाद नहीं ले पाता. जिस तरह से दूरदर्शन की छवि को उसके सरकारीपन से जोड़ कर दर्शक उसके पक्ष को कई बार नजरअंदाज करके शोर भरे चैनलों को तरजीह देने लगता है, ठीक वैसे ही बिना हंगामे के अपनी बात कहते ‘किस्सा खाकी का’ और ‘तिनका जेल रेडियो’ जैसे पॉडकास्ट वायरल नहीं होते. लेकिन इससे इन पॉडकास्ट के वजूद के होने की वजह कम नहीं होती. सेहतमंद कंटेंट और सेहतमंद खाना एक उम्र और समझदारी के बाद ही जिंदगी में शामिल हो पाता है.
(ये लेखिका के निजी विचार हैं.)
आलेख के प्रकाशन के लिए प्रभात खबर और आशुतोष जी का शुक्रिया।
खबरों के शोर में इंसानियत की आवाजें delhi police
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