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Weekly Reports: REP & IBM: Semester 2

Jun 14, 2025

दरकते संबंधों की दहक: हस्तक्षेप: प्रोफेसर (डॉ.) वर्तिका नन्दा, मीडिया विश्लेषक: 14 June, 2025

शब्द-संख्या:1091

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जब तक अपराध की कोई नई खबर नहीं आएगी, तब तक सुर्खियों में रहेगी सोनम. सोनम के बहाने एक पूरी फिल्मी कहानी तैयार है. इसमें सस्पेंस, थ्रिलर, खौफ, साजिश, हत्या, जेल- सब कुछ है और खास बात यह कि एक अलग तरह का नैरेटिव है. केंद्र में एक युवती, नई नवेली व्याहता और वो ही कथित तौर पर हत्यारिन. मेघालय में अंजाम पर पहुंची इस कहानी का अतीत और उसका निकट भविष्य भी चर्चा में है.

अब तक इस कथा का जो सार बुना गया है, उसके कुछ बीज शब्द हैं- आधुनिक युवतियों का स्वार्थी, निष्ठुर, गैर-संस्कारी और यहां तक कि हत्यारिन भी होना. अब सैट किए गए इसी नैरेटिव के आधार पर अगले कुछ दिनों तक कहानियों के प्लॉट लिखे जाएंगे. खास तौर पर तब तक जब तक कि मीडिया के हाथ कोई नई आपराधिक कहानी नहीं लगती.

अपराध कैसे, कब, क्यों हुआ- इस पर खबरों की कोई कमी नहीं लेकिन मैं बात इस एक खबर के प्रभाव पर करना चाहूंगी.


टेलीविजन एक खबर को कई बार दिखाता है, अलग-अलग तरीकों से दिखाता है, खबर को परोसने के लिए हर संभव मसाले का उपयोग करता है ताकि टीआरपी के जरिए मालिक की तिजोरी लबालब रहे. सोनम जैसी घटना को मिलने वाली प्राथमिकता और रिपोर्टिंग के लिए इस्तेमाल होने वाले शब्द विवाह जैसी गंभीर संस्था को अब गैर-जरूरी बताने लगे हैं. एक घटना मानो यह साबित करने के लिए काफी है कि विवाह से बचा जाए.

नैरेटिव यह भी बन रहा है कि मानो महिलाएं अब हत्या करने से गुरेज नहीं करतीं. वे आपराधिक हो गईं है. अब उन्हें पुरुष के साथ की जरूरत नहीं. वे क्रूर हैं. अपनी बात न माने जाने पर वे साजिश रच सकती हैं, किसी गंभीर अपराध को अंजाम दे सकती हैं. इसे साबित करने की कोशिश करने वाला मीडिया यह भूल जाता है कि पूरी दुनिया में महिलाओं में पुरुषों की तुलना में अपराध की प्रवृत्ति बेहद कम होती है. भारत की जेलों में  पुरुषों की तुलना में औसतन 4 प्रतिशत महिलाएं जेलों में बंद होती हैं.

किसी महिला का अपने ही पति की हत्या में संलिप्त पाया जाना एक अस्वाभाविक घटना है जिसमें समाज की स्वाभाविक रुचि बनती है लेकिन घटना की तह तक पहुंचने से पहले ही या फिर अपराध के साबित होने पर भी मीडिया की रिपोर्टिंग की टोन आने वाले समय में महिला अधिकारों और महिलाओं पर होने वाले अपराधों पर लिए जाने वाले फैसलों को प्रभावित करेगी. महिलाओं के अहित में सोचने वालों के लिए सोनम एक हथियार साबित होगी.

मीडिया और समाज का ध्यान साजिश, अपराध, पुलिस, अदालत और जेल तक सीमित रह जाता है. वह न तो पारिवारिक पृष्ठभूमि पर गहन चिंतन करता है, न जेल औऱ पश्चाताप पर. किसी भी परिवार में कोई भी एकाएक न अपराधी बनता है, न अपराध करता है. उसके कुछ लक्षण और संकेत होते हैं जिन्हें परिवार या तो नजरअंंदाज करता है या छिपा जाता है. आपराधिक प्रवृत्ति के व्यक्ति को इससे सहज शह मिलती है. बाद में अपराध होने पर परिवार को वे सभी संकेत याद आने लगते हैं. 

जेल पर ध्यान वहीं तक जाता है, जब तक कोई व्यक्ति उस दहलीज को पार कर अंदर चला जाता है. उसके बाद अंदाजों की रिपोर्टिंग होती है और फिर अगली खबर की तलाश शुरु. मीडिया को जेल तब ही लुभाती है जब उसे जेल से या तो सनसनी मिले या फिर टीआरपी के तौर पर पैसा. सामाजिक सरोकार की यहां कोई जगह नहीं. 

2016-2017 में तिनका तिनका मध्यप्रदेश पर काम हो रहा था. तिनका तिनका फाउंडेशन से प्रकाशित यह किताब आज भी भारतीय जेलों पर इकलौती कॉफी टेबल बुक है. उस दौरान कई ऐसे बंदियों से मिलने का अवसर मिला जो आजीवन कारावास पर थे. 2017 में केंद्रीय जेल, भोपाल में जन्माष्टमी पर कुछ बंदियों की रिहाई के आदेश आए थे. अगली सुबह रिहाई थी. वे जेल की देहरी पर बैठे थे. उन सभी बंदियों के स्वर में एक ही बात थी- अपराध करके गलती की. एक अपराध ने उनसे जैसे सब कुछ छीन लिया था. उनमें 75 साल के एक बंदी से 14 साल में कोई भी मिलने नहीं आया था. वो देहरी पर बैठे-बैठे कई बार कह चुका था कि वो रिहा नहीं होना चाहता. जेल के बाहर उसे एक और बड़ी जेल मिलने का अंदेशा था.

अपराध के बाद का अगला पड़ाव पश्चाताप और जिंदगी पर हमेशा के लिए लगने वाला विराम भी हो सकता है लेकिन मीडिया और समाज जैसे यह जतलाने की कोशिश करता है कि कानून लचीला है, अपराधी चालाक. इसलिए अपराधी के बचने के आसार ज्यादा हैं. ऐसा अक्सर होता नहीं.

1995 में सुशील शर्मा ने अपनी पत्नी नैना साहनी की हत्या की थी. फिर उसके शव को टुकड़ों मे काटकर तंदूर में जलाने की कोशिश की थी. बाद में पकड़ा गया. उसने तिहाड़ जेल में उम्रकैदी के तौर पर 23 साल काटे. आज भी यह मामला लोगों के जहन में है. तब भी एक कथानक सेट किया गया था लेकिन सच यही है कि सभी पति सुशील की तरह हत्या नहीं करते. 

2022 में दिल्ली पुलिस ने – किस्सा खाकी का- पॉडकास्ट सीरीज की शुरुआत की थी. इसके अब 175 अंक पूरे हो गए हैं. – किस्सा खाकी का- अपराध के सुलझने की सच्ची कहानियों को हर रविवार प्रसारित करता है. इनमें ऐसी कई कहानियां हैं जिनमें पुलिस ने अपराधियों के बेहद शातिर होने के बावजूद उन्हें दबोच लिया. सनसनी के बिना प्रसारित होने वाली यह कहानियां समाज को सचेत और जागरुक करती हैं. यहां मकसद मानवीय सरोकारों का है. सरोकार और व्यापारिक मंशाओं के बीच का लंबा फासला अपराध रिपोर्टिंग के स्वर को प्रभावित करता है.

2025 में सोनम के मामले में जो कहानी बनेगी, उसे लेकर भी सावधान रहना होगा. इसलिए भी कि मुख्यधारा की मीडिया कई बार अपराधों की अतिरेक रिपोर्टिंग करते हुए देश-विदेश के कई अहम जरूरी मुद्दों को नजरअंदाज कर जाती है. पर्यावरण से लेकर परीक्षाओं तक, बदलाव से लेकर विकास तक की कई कहानियां टीवी या अखबार में अपनी जगह सिर्फ इसलिए खो देती है कि उस समय केंद्र में होता है किसी एक खबर से मिलने वाली लोकप्रियता.

बहरहाल, सोनम और राजा की यह घटना डर, शक और अविश्वास की जमीन तैयार कर रही है. स्त्री-पुरुष के दरकते संबंध, शोर मचाता मीडिया, रिपोर्टिंग को देख रहे समाज की संवेदनहीनता,  तत्परता से जज बन बैठने की प्रवृत्ति, रोते चेहरों को दिखाने की होड़, अदालती फैसले से पहले खुद ही न्यायाधीश बन जाने की हड़बड़ी और महिलाओं के शोषण के गंभीर मामलों को अब मौका पाकर टंडे बक्से में डाल देने की कोशिश से हम एक ऐसे समाज को तैयार कर रहे हैं जो ठीक वैसा ही है जैसा उसे नहीं होना चाहिए.

 Newspaper Link: http://www.rashtriyasahara.com/imageview_77583_106143350_4_9_14-06-2025_0_i_1_sf.html

YouTube Link: https: साजिश, अपराध, पुलिस और जेल ।Sonam and Raja Story । Crime । Vartika Nanda - YouTube

प्रोफेसर (डॉ.) वर्तिका नन्दा



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