17 अगस्त, 2025: सुंदर दिनों की तस्वीरें ऐसी ही होती हैं- वो रौशन करती हैं और महकती हैं. आज का दिन ऐसा ही था. डीडी उर्दू में- हौसलों की उड़ान- के निर्माता Dr. Syed Nazam Iqbal जी के आमंत्रण पर एक शानदार इंटरव्यू का सौभाग्य मिला. इंटरव्यू राशिद ने लिया. साक्षात्कार के केंद्र में था- तिनका तिनका जेल.
इसी बहाने दूरदर्शन को लेकर बीते दिनों की कई यादें ताजा हुईं. एशियाड खैलो के समय बना यह खेल गांव में दूरदर्शन का यह कार्यलय किसान चैनल के नाम है. उर्दू चैनल भी यहीं से संचालित होता है.
यह इस देश के बहुत से लौगों की नासमझी ही है कि वे दूरदर्शन और आकाशवाणी को वह सम्मान दे ही नहीं पाए जिसके वे हकदार है. पूरे देश को संचार के माध्यम से एकसाथ पिरोने का कां इन दोनों ने किया लेकिन मलाई किसी और ने खाई. खैर, मलाई खाने वाले चैनलों से मुझे गुरेज नहीं पर यह अफसोस जरूर है कि इस देश में प्रसारण का ककहरा जिन्होंने सिखाया, वे भुला दिए गए. बिना चीखे-चिल्लाए देश की संस्कृति-संस्कार को जोडने वाले इन माध्यमों को हमने सम्मान दिया होता तो आज ऐसे प्राइवेट मीडिया का सामना न करना पड़ता.
बहरहाल, कल के इस अविस्मरणीय दिन के लिए शुक्रिया दूरदर्शन। शुक्रिया Mohammad Salim का भी क्योंकि एक साल पहले उन्होंने रोज़गार से कामयाबी तक में Mass Communication और Journalism पर संवाद करने के लिए मुझे यहीं पर आमंत्रित किया था.
बहरहाल, इस अविस्मरणीय दिन के लिए शुक्रिया दूरदर्शन। लौटते हुए किसान चैनल की संकल्पना और आज तक के सबसे लंबे कृषि कार्यक्रम- कृषि दर्शन- के लिए भी मन भावों से भरा रहा.
वैसे आपको बता दूं कि एक साल से कृषि दर्शन पर कुछ शोध कर रही हूं. शोध करने के लिए किसी युवा छात्र की भी आवश्यकता थी. बस, कहानी वहां अटक गई. बाकी कहानी कभी और बताती हूं.
(लौटते समय एक अन्य एंकर मोनालिसा से मुलाकात हुई. उसने याद दिलाया कि 2004 में प्रभात खबर के मीडिया संस्थान में जब मैं किसी कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के तौर पर गई थी, तब वो वहां एक छात्र थी. यह पुरानी स्मृति भी बड़ी स्नेहिल लगी.)
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