अजब संयोग है या दुर्योग
छूटी हुई प्रार्थनाएं याद आती हैं
तीर्थों में छोड़ आई थी उन्हें
लगा था – वे सुरक्षित रहेंगी और अपनी उम्र पा लेंगी
पानी पर लकीरें ही थीं
किसी की याद में आ गई हिचकियां
कोई थपकी ही थी किसी और छोर की
प्रार्थनाएं सच हों, यह अनिवार्य कहां
फिर भी फरेब की चोट से
टूट चुकी लकीरें भी
खुद में समाए रखती हैं – प्रार्थनाएं।
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