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Workshop on Sound: Juxtapose pre-event: March 2024

May 26, 2008

आपके लिए यह पाती...

जब बहुत छोटी थी, तभी टीवी से नाता जुड़ गया। रास्ते में कई लोग बार-बार दीए रखते गए, सिखाते गए कि टीवी की दुनिया है क्या। मन प्रिंट का हिस्सा बनने के लिए भी हिलोरे लेता रहा और इस तरह टीवी, प्रिंट और अध्यापन- तीनों ने मुझे हमेशा जगाए रखा।

यह ब्लाग जागी हुई इसी अलख को कायम रखने की कोशिश है। यह एक स्कूल है जिसमें मैं सीख रही हूं। आप भी मेरे साथ इस पाठशाला में शामिल हो सकते हैं। यहां हम मीडिया से जुड़े गुर आपस में बांटेगें, एक-दूसरे से कुछ जानेगें-समझेंगे, संवाद करेंगें और टटोलेंगे कि सीखना क्या वाकई उतना आसान है जितना देखने-सुनने में लगता है।

बहरहाल यह मीडिया स्कूल है। आज के पन्ने में अभी इतना ही।

शुभकामनाएं।

वर्तिका नन्दा

4 comments:

शोभा said...

वर्तिका
मैं आपकी बात से सहमत हूँ। सीखने की प्रक्रिया तो आजीवन चलती है। सस्नेह

सुशील छौक्कर said...

वर्तिका जी
आज ही पता चला कि आपका ब्लोग है। देखकर अच्छा लगा। आपको सुनते पढते देखते आ रहा हूँ तब से जब आप ndtv मे थी। पेपरो मे आपके लेख पढता रह्ता हूँ। आपके विचारो की सोच कुछ अलग है आपकी पोस्ट पहले पढी हुई है सिवाय कविता के। खैर अब आपके विचार यहाँ ब्लोग मे पढने को मिल जाऐ करेगे। कुछ नया जानने को मिलेगा।
ढेरो शुभकामनाऐ।

Jitendra Dave said...

achchaa likhti hain. shubhkaamnaayen..

Meenakshi Kandwal said...

उठाए जा रहे किसी भी कदम के पीछे काम कर रहा मकसद अगर स्पष्ट हो तो उसमें कामयाबी मिलना भी उतना ही स्पष्ट होता है। मीडिया स्कूल के बारे में आपके विचार आपकी सुलझी हुई समझ और नित कुछ नया सीखते रहने का ज़ज़्बा उजागर करते हैं। शुभकामनाएं