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Oct 12, 2009

आहा जिंदगी

पहला अध्याय

नई फ्राक मिली
कचनार के फूलों से लदी डाली पर
गिलहरी-सी
ठुमक-घुमक उठी
जन्नत मुट्ठी में
जमीन आसमान पर

दूसरा अध्याय

दुपट्टा ओढ़ा
नजरें जैसे सारी उसी पर
सपनों के सीप भरे-भरे से
किसी सुनहरे रथ के इंतजार में
इंतजार की सड़क छोटी थी


तीसरा अध्याय

बैलगाड़ी आई
पहियों के नीचे
सपनों ने पलकें मूंदीं
अदरक-प्याज के छौंक में
बैलवाले को चीखें न सुनीं
ये सड़क बड़ी लंबी लगी

चौथा अध्याय

पलों का रेला है
सड़कें सांस हैं
सभी जुड़ीं, गुत्तमगुत्था
जिंदगी सड़कों की लंबाई मापने से नहीं चलती
चलती है जीने से
आह जिंदगी, वाह जिंदगी।


16 comments:

आमीन said...

आपने बहुत अच्छा ब्लॉग शुरू किया है....
बहुत फायदेमंद है... धन्यवाद

M VERMA said...

जिंदगी सड़कों की लंबाई मापने से नहीं चलती
चलती है जीने से
आह जिंदगी, वाह जिंदगी।
जिन्दगी के ये अध्याय निराले लगे
बहुत सुन्दर

विजयप्रकाश said...

ठुमक-घुमक शब्द का प्रयोग कर जैसे आपने बचपन को साकार कर दिया हो.
सीधे, कम शब्दों में आपने अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त कर दिया है.
बधाई.

Vipin Behari Goyal said...

पूरी जिन्दगी को छोटे छोटे चार अध्यायों में समेट दिया .हर अध्याय दिल को छु रहा है.शुभकामनाएँ एवं बधाई

Vipin Behari Goyal said...

सारगर्भित जानकारी के लिए शुक्रिया

कुश said...

हर एक नज़्म में जिंदगी पिरो दी है आपने..

डा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumar said...

पलों का रेला है
सड़कें सांस हैं
सभी जुड़ीं, गुत्तमगुत्था
जिंदगी सड़कों की लंबाई मापने से नहीं चलती
चलती है जीने से
आह जिंदगी, वाह जिंदगी।

वर्तिका जी,
आपकी चारों लघु कवितायें लाजवाब हैं। पूरे जीवन को बखूबी व्याख्यायित किया है आपने इन कविताओं में। सबसे बड़ी बात चारों कविताओं का कसाव या गठन है।सभी अपने आप में मुकम्मल रचनायें हैं।
हार्दिक बधाई।
हेमन्त कुमार

Meenu Khare said...

बहुत प्यारी अभिव्यक्ति. बधाई स्वीकारें.

सागर said...

सपनों के सीप भरे-भरे से किसी सुनहरे रथ के इंतजार में इंतजार की सड़क छोटी थी


प्याज के छौंक में बैलवाले को चीखें न सुनीं ये सड़क बड़ी लंबी लगी

गुत्तमगुत्था जिंदगी सड़कों की लंबाई मापने से नहीं चलती चलती है जीने से आह जिंदगी, वाह जिंदगी।

कितनी चालाकी से लिखी गयी बात... वाह ! सुबह - सुबह मजा आ गया.... शुक्रिया... वाकई आहा ! जिंदगी...

सुशील छौक्कर said...

जिदंगी के अध्यायों को लिख दिया। अद्भुत। साथ ही आपकी नई किताब के लिए मुबारकबाद।

लोकेन्द्र विक्रम सिंह said...

वाह.....
पूरे नारी जीवन के सार को बहुत बेहतरीन अंदाज में दर्शा दिया आपने.....

अमित said...

अच्छी अभिव्यक्ति ! आह और वाह के बीच जिन्दगी जीने का नाम है !बहुत खूब !

तरुण गुप्ता said...

kafi din ho gaye aapne kuchh naya nahi daala

Udan Tashtari said...

बेहतरीन...जारी रहें.

अबयज़ ख़ान said...

आपकी तारीफ़ करना तो हवा का रुख मोड़ने की तरह है... बहुत बढ़िया कविता है... जानकारियों से भरपूर इस ब्लॉग को पढ़कर मज़ा आया...

Unknown said...

vaha vartika, vaha...