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Writing for TV News: Class Assignment: Batch of 2027-28

Sep 23, 2011

दुआ सलाम

कुछ शहर कभी नहीं सोते
जैसे कुछ जिंदगियां कभी सोती नहीं
जैसे सड़कें जागती हैं तमाम ऊंघती हुई रातों में भी

कुछ सपने भी कभी सोते नहीं
वे चलते हैं
अपने बनाए पैरों से
बिना घुंघरूओं के छनकते हैं वो
भरते हैं कितने ही आंगन

कुछ सुबहें भी कभी अंत नहीं होतीं
आंतरिक सुख के खिले फूलदान में
मुरझाती नहीं वहां कोई किरण

इतनी जिंदा सच्चाइयों के बीच
खुद को पाना जिंदा, अंकुरित, सलामत
कोई मजाक है क्या

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