Featured book on Jail

DEHRADUN JAIL RADIO: UTTARAKHAND

Feb 19, 2013

मेरे समय की औरतें

लड़कियां फुटबाल की तरह उछल कर खेल लेतीं हैं इन दिनों

और अपने सीने में सीलन को दबाए

मुस्कुरा भी लेती हैं 

 

लड़कियों के पास अब अपना एक आसमान है

 

अपनी पगडंडी

अपनी कुटिया

अपनी हंसी

अपना दुपट्टा


समय के साथ बदल गई हैं लड़कियां

कालेज के बार भेलपूरी खाते हुए

यहां-वहां झांकतीं नहीं वे

 

खुश रहने लगी हैं लड़कियां

अपमान पी गईं हैं लड़कियां

हां, बदल गईं हैं लड़कियां



बादलों के बीच  


हर औरत लिखती है कविता

हर औरत के पास होती है एक कविता

हर औरत होती है कविता

कविता लिखते-लिखते एक दिन खो जाती है औरत

और फिर सालों बाद बादलों के बीच से

झांकती है औरत


सच उसकी मुट्ठी में होता है

तुड़े-मुड़े कागजसा

खुल जाए

तो कांप जाए सत्ता

पर औरत

ऐसा नहीं चाहती

औरत पढ़ नहीं पाती अपनी लिखी कविता

पढ़ पाती तो जी लेती उसे


इसलिए बादलों के बीच से झांकती है औरत

बादलों में बादलों सी हो जाती है औरत