ऐसा लगता है कि साल
2017 जेलों को लेकर चिंतन और अवलोकन का साल रहा है.
इस साल सितंबर में जस्टिस एमबी लोकुर और जस्टिस दीपक गुप्ता की बेंच ने कहा कि जेल को
'जेल'
की बजाय
'सुधार गृह'
करने से मकसद पूरा नहीं होगा.
जेलों के हालात को सुधारने के लिए बड़े पैमाने पर काम करने की जरूरत है.
इसके लिए निर्धारित निर्देशों को इस साल के अंत तक लागू करने की हिदायत दी गई है.
दरअसल 13 जून, 2013 को सुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस आरसी लाहोटी ने तत्कालीन चीफ जस्टिस को पत्र लिखकर कहा था कि जेलों में कैदियों के हालात परेशान करने वाले हैं. उन्होंने पत्र में 1382 कैदियों के साथ बातचीत का हवाला दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने इस पत्र को जनहित याचिका में बदलकर सुनवाई शुरू की थी और इस साल सितंबर में सभी हाईकोर्ट और राज्य सरकारों को 11 दिशा-निर्देश जारी थे.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस
2012 के बाद जेलों में हुई अस्वाभाविक मौतों को संज्ञान में लेकर पीड़ित परिवारों को मुआवजा दिलवाएं.
साथ ही राज्य सरकारों को निर्देश दिया कि कैदियों को स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया कराएं.
इसके अलावा सभी जेलों में मॉडल प्रिजन मैनुअल लागू करवाने,
जेलों में आत्महत्या और अस्वाभाविक मौतें रोकने के लिए मानवाधिकार आयोग की स्ट्रेटजी,
नेलसन मंडेला नियम और गाइडलाइंस लागू करने,
गृह मंत्रालय को एनसीआरबी को आदेश देकर स्वाभाविक और अस्वाभाविक मौतों का अंतर को स्पष्ट करने,
राज्य सरकारें जेलों में राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण,
राज्य पुलिस और ब्यूरो ऑफ पुलिस रिसर्च एंड डेवलपमेंट के साथ मिलकर जेल स्टाफ को कैदियों के प्रति संवेदनशील बनाने,
जेलों में विशेष काउंसलर नियुक्त करने,
कैदियों की परिजनों से मुलाकात को बढ़ावा देने,
मुलाकात का समय बढ़ाने,
परिजनों से बात करवाने के लिए फोन और वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की संभावना पर विचार करने,
हर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस से अपने क्षेत्र की जेलों में कैदियों की दुर्दशा पर जांच कराने और जेलों में अस्वाभाविक मौत रोकने के लिए जेल में स्वास्थ सेवाएं सुधारने पर जोर दिया गया था.
कोर्ट ने यह बात जोर देकर कही थी कि कर्नाटक,
पश्चिम बंगाल और दिल्ली की जेलों में सुविधाएं निम्न दर्जे की पाई गईं हैं.
यह अस्वाभाविक मौत का एक प्रमुख कारण है.
इसलिए कोर्ट का कहना था कि सभी राज्य सरकारें जेलों में सर्वे करवाकर कैदियों को मिलने वाली सहायता का जायजा लें और खामियां दूर करें और कैदियों की स्थिति सुधारने के लिए एक बोर्ड बनाएं.
इसमें समाज के प्रबुद्ध लोगों को शामिल करें,
जो मॉडल जेल मैनुअल लागू कराएं और कैदियों के सुधार में सहयोग करें.
इनमें से कई दिशा-निर्देशों को लागू करने की आखिरी तारीख
30 नवंबर है.
इसी साल अभिनेता संजय दत्त ने एक जनहित याचिका के जरिये जेलों की स्थिति को सुधारने की अपील की थी.
इसी तरह गौरव अग्रवाल ने भी एक नागरिक के तौर पर देश भर की जेलों में भीड़ को कम करने और अमानवीय परिस्थितियों को घटाने की तरफ ध्यान दिलाया.
पीटर मुखर्जी और इंद्राणी मुखर्जी से लेकर शशिकला और राम रहीम तक,
कई प्रभावशाली लोगों के जेलों में प्रवास की वजह से भी जेलें इस साल सुर्खियों में रहीं लेकिन इस बीच जेल सुधार को लेकर मीडिया की तरफ से कोई बहस होती नहीं दिखी.
सभी मामले खबर केंद्रित होकर सिमट गए.
कुछ कोशिशें गैर सरकारी संस्थाओं की तरफ से हुई जिसका नतीजा विचार-मंथन के तौर पर दिख रहा है और अब जेलों को लेकर सरकार गंभीर रुख लेती प्रतीत हो रही है.
हरियाणा की जेलों में
2018 तक सौर उर्जा का
100 प्रतिशत इस्तेमाल किया जा सकेगा.
इसके अलावा जेल के अधिकारियों
के काम को जांचने के लिए कई नियामक भी बनाए गए हैं जिनमें जैसे जेल में हिंसा,
कैदी के पास मोबाइल मिलना जैसे प्रावधानों पर नंबर कम होने का प्रावधान है.
इसके अलावा जेलों में किसी भी तरह के उत्पाद बनना या सृजनात्मक गतिविधि को शामिल किया गया है.
असल में जेलें कभी भी बहुत गंभीरता से नहीं ली जातीं.
पिछले कुछ समय में जेलों में हो रहे काम को लेकर मीडिया की दिलचस्पी कुछ जरूर बढ़ी है लेकिन इसकी वजह कई प्रभावशाली लोगों का जेलों में जाना है.
जेल के अंदर जो मानवीय संपदा मौजूद है,
उसे लेकर अब तक देश में कोई गंभीर और ठोस नीति नहीं बन सकी.
हाल के दिनों में तिहाड़ जेल में हुनर हाट की शुरूआत हुई.
तेलंगाना और मध्य प्रदेश के अलावा केरल में भी जेल के उत्पादों को बेचने और उसका मुआवजा कैदियों तक पहुंचाने का प्रावधान रहा है.
लेकिन यह बहुत छोटी कोशिश है.
हरियाणा सरकार ने दावा किया है कि उनकी जेलों के पुस्तकालय में
2000 से ज्यादा किताबें हैं.
आम तौर पर जेलें पढ़ती नहीं दिखतीं.
मैंने अब तक एक भी ऐसी जेल नहीं देखी जिसकी लाइब्रेरी बहुत विस्तृत या विशेष है.
जेलें सभी को एक ही पैमाने में आंकती हैं.
वे मानती हैं कि महिला बंदी पापड़ बनाएंगी और सिलाई करेंगी और पुरूष साफ-सफाई.
वे अपनी रसोई का खाना बनाएंगे और जेल की व्यवस्था को खुद ही देखेंगे.
यही जेल का सार है.
निर्धारित की गई इन लकीरों को बदलने की कोशिश होती नहीं दिखती.
गृह मंत्रालय भी अपनी तरफ से रत्ती भर यह प्रयास नहीं करता कि जेलों पर काम करने के इच्छुक लोगों के समूह को जुटा सके.
सुप्रीम कोर्ट की फटकार से जागते मंत्रालय जब तेजी दिखाते हैं तो उम्मीद बंधती है लेकिन उम्मीदें तीन घंटों की बैठकों से यथार्थ में बदल नहीं सकतीं. जेलों में भीड़, जगह की कमी, बच्चों और महिलाओं के लिए असुविधाजनक परिस्थितियों के अलावा जेलें और भी बड़े पहाड़ों से टकरा रही हैं. जेलों को न सोचने योग्य माना जाता है और न राष्ट्र निर्माण योग्य. शहरों से दूर जेलों को बसा लेने और अपनी स्मृतियों से परे धकेल लेने से यह सच मिट नहीं सकता कि जब तक समाज रहेगा, तब तक जेलें भी रहेंगी .
2 comments:
The ideas put forward for betterment of jails are good, but as Vartika Mam mentioned in the article, the bitter condition of jails is an issue which is not taken as seriously by the government. Even though we hear news related to prisons in newspapers, we never see an article related to prison reformation. It's a good news that the government has taken a few steps towards prison reformation, but we need to do a lot more. #tinkatinka #prisonreforms #humanrights
Dr. Vartika Nanda is working tremendously hard to spread the movement for prison reforms in India. Through her activism, she has produced three books, Tinka Tinka Madhya Pradesh, Tinka Tinka Tihar, and Tinka Tinka Dasna. And I love her message of creating a Rainbow in Prisons.. #tinkatinka #prisonreforms #books
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