Mar 7, 2018

तिनका तिनका : बंद दरवाजे खुलेंगे कभी... आंखों में न रहेगी नमी, न होगी नमी: Vartika Nanda & Tinka Tinka

आरती आज बहुत खुश थी. आज फिर वह एक नई भूमिका में है. उसे मंच पर एक बड़ी भीड़ के सामने एक नाटक में हिस्सा लेना है. यह नाटक उसके लिए सिर्फ एक नाटक नहीं, बल्कि जिंदगी की हकीकत है क्योंकि यह नाटक जेल पर है और वह खुद जेल में बंद है. यह वही आरती है जो तिनका तिनका तिहाड़ का एक जरूरी हिस्सा थी. 2013 के शुरुआती दिनों में मेरी किताब- तिनका तिनका तिहाड़ - पर काम शुरू हुआ और जेल के अंदर से कवियों की तलाश होने लगी. उसी दौरान जेल नंबर 6 में एक आधिकारिक विजिट के दौरान आरती से मेरी मुलाकात हुई. आरती हत्या के जुर्म में जेल के अंदर है. हरियाणा के शहर यमुनानगर की रहने वाली आरती के पिता इंजीनियर हैं और मां डॉक्टर. तीन भाई-बहनों में वह सबसे छोटी हैं. पति साथ में पढ़ता था. बीए के दूसरे साल में पढ़ाई छोड़नी पड़ी. 11 साल के बेटे की मौत सिर्फ इसलिए हो गई कि डॉक्टर ने पुराना पड़ा इंजेक्शन लगा दिया.

तिनका तिनका : बंद दरवाजे खुलेंगे कभी... आंखों में न रहेगी नमी, न होगी नमी

बाद में एक घटना में उसके पति की मौत हो गई और जिंदगी बदल गई. यहां आने के बाद सारे नाते जेल के बाहर ही छूट गए. मायकेवालों ने शादी के समय कहा था- हंसते हुए सकोगी तो आना वरना यहां के दरवाजे बंद रहेंगे. अब परिवार में उसकी छोटी बेटी को लेकर जायदाद की खींच-तान है. उसकी बेटी नहीं जानती कि उसके पिता की मौत हो चुकी है. वह समझती है कि मां यहां जेल में अनाथ बच्चों को पढ़ाती है. इन कई सालों में बेटी तीन बार ही जेल में आई और आने पर उसने यही कहा कि मैं भी अनाथ हूं, आप मुझे पढ़ाने बाहर क्यों नहीं आती. आरती ने एक दिन बताया कि अब उसकी बेटी भी उससे मिलने नहीं आती. बेटी बार-बार जेल में आएगी तो सवाल पूछेगी, इसलिए आरती ने आखिरकार जेल में अकेलेपन को अपना लिया.

तो बात तिहाड़ जेल की हो रही थी. 2013 में जब मैं अपनी किताब के लिए कविताएं लिखने वाली महिला कैदियों की तलाश कर रही थी, उस दौरान एक दिन आरती मेरे सामने आकर हिचकते हुए कहने लगी कि वह इस किताब से जुड़ना चाहेगी. इसके बाद हर मुलाकात के दौरान वह कभी किसी पुराने कागज पर या पेपर नेपकिन पर अपनी किताब लिखकर देने लगी.

फिर एक दिन उसने बताया कि उसकी कुछ कवितायें उसके घर पर पड़ी हैं एक डायरी में. अगर कोई घर में संपर्क करे और वो डायरी जाए तो बहुत मदद मिलेगी. अगली मुलकात में जब उससे उसकी मां मिलने आयी तो उसने उसी डायरी को मांगा. और फिर उस डायरी में लिखी हुई अपनी कविताओं को उसने धीरे-धीरे संवारना शुरू किया.

बाद में जब तत्कालीन गृहमंत्री ने किताब का विमोचन किया तो उसके कुछ दिन बाद तिहाड़ में आरती को यह किताब भेंट की गई. आरती और उसके साथ इस किताब में जुड़ी हुई बाकी तीन महिला बंदी उस दिन खूब रोईं. वे किताब को देखती रहीं और कुछ देर बाद अपनी बहुत- सी भावनाओं को अभिव्यक् करने लगी. यह दिन आरती की जिंदगी का सबसे खास दिन था.

आरती बताया करती थी कि उसकी हर शाम कविता के साथ ढलती है और कविता के साथ ही सुबह का सूरज उगता है. वह 8000 से ज्यादा डायरियां लिख चुकी है जिसमें उसकी जिंदगी के तकरीबन हर दिन का हिसाब है. जेल के अधिकारी अक्सर उसकी डायरियों की छान-बीन कर उसे वापस लौटा देते हैं.

आरती उन चार कवयित्रियों में से एक थी जो तिनका तिनका तिहाड़ मुहिम का एक हिस्सा बनीं थीं. हिंदी और अंग्रेजी के अलावा इस किताब का अनुवाद चार भारतीय भाषाओं में हुआ और इतालियन में भी. यही किताब बाद में लिम्का बुक आफ रिकार्ड्स में भी शामिल हुई. मैंने इन सभी महिलाओं की जिंदगी में आते हुए बदलाव देखे.

बाद में जब गाना महिला और पुरुष बंदियों से गवाया जाना था तो आरती को उससे भी जोड़ा गया. आरती तिनका तिनका तिहाड़ के गाने का एक खास हिस्सा बनी. लोकसभा टीवी के साथ शूट किए गए इस गाने को मैंने लिखा था. ऑडियो पहले ही तत्कालीन गृह मंत्री के हाथों रिलीज हो चुका था. अब ऑडियो और विजुअल की बारी थी. शूट के लिए जेल अधिकारियों से कई दिनों पहले इजाजत ली गई और एक बड़े स्तर पर इसे शूट किया गया. पुरुषों और महिलाओं के साथ बने इस गाने की रौनक और ऊर्जा देखने लायक थी.

बंद दरवाजे खुलेंगे कभी, खुलेंगे कभी, खुलेंगे कभी
आंखों में रहेगी नमी, होगी नमी. होगी नमी
इक दिन माथे पे अबीर, भरेगी घावों की तासीर
हां, ये तिहाड़ है, हां, ये तिहाड़ है, सबका ये तिहाड़ है, हां, सबका तिहाड़ है...

यह गाना शूट हुआ. लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने संसद भवन के अपने कक्ष में इस गाने का विमोचन किया और इस कोशिश पर मुहर लगा दी कि बंदियों के इस काम को सरकार की सराहना और रजामंदी मिल रही है.

आज भी यू ट्यूब पर इस गाने को देखने के बाद बहुत-से लोग मुझसे बार-बार पूछते हैं कि क्या वे कैदी ही हैं? इस गाने में आरती ने खूब खुशी से सक्रिय भागीदारी की.

इस बार बहुत समय बाद सितंबर में आरती से एक सेमिनार में मुलाकात हुई. तिहाड़ जेल और पुलिस अनुसंधान द्वारा आयोजित इस समारोह में आरती पुलिस और बाकी बंदियों के साथ एक पंक्ति में बैठी थी. उस दिन उसने एक नाटक में हिस्सा लिया. उसका किरदार अहम था और उसका अभिनय बहुत ही सुंदर. बतौर बंदी महमूद फारूखी इस नाटक का निर्देशक था और ये देखना सुखद था कि आरती ने नाटक के इस पात्र को पूरी मजबूती, आत्मविश्वास और उत्साह के साथ निभाया. आरती मेरे साथ एक वार्ता का भी हिस्सा बनी जिसमें मंच पर जेल पर काम करने वाले चार प्रतिनिधि और खुद तिहाड़ जेल की महिला वार्ड की असिस्टेंट सुप्रीटेंडेंट भी थीं और साथ में दो बंदी भी जिनमें से एक थी आरती . आरती ने वहां पर महिलाओं की स्थिति को लेकर बहुत बेबाक टिप्पणियां की. मैंने उससे पूछा बाहर की औरत और जेल की औरत में क्या फर्क होता है. इसका उसने जो जबाव दिया वो जबाव शायद बाहर की दुनिया के लिए देना उतना आसान नहीं होता. उसने जो कहा उसका सार यह था कि जेल के अंदर की औरत को कोई औरत समझता ही कहां है.

मंच पर आरती का आत्मविश्वास देखने लायक था. यह कहना मुश्किल है कि यह आत्मविश्वास क्षणिक था या फिर कुछ हद तक स्थायी. लेकिन यह साफ है कि आरती के मन में जेलों के लेकर कुछ स्थायी सरोकार थे. उसने इस बात की चिंता जताई कि जेल में आने पर बंदियों की तलाशी के तरीके में पूरी तरह से बदलाव किया जाना चाहिए. मैंने कुछ मंचों पर पहले भी जेल अधिकारियों या फिर बंदियों को ऐसे सरोकार जताते हुए सुना है लेकिन इस पर कोई ठोस काम अब तक नहीं हुआ. यहां इस बात को जोड़ा जा सकता है कि इस साल अक्टूबर में भारत सरकार की महिला और बाल विकास मंत्रालय ने जेल अधिकारियों और जेल सुधार कार्यकर्ताओं की एक बैठक बुलाई थी जिसमें तिहाड़ जेल के अतिरिक् उप महानिदेशक शैलेंद्र सिंह परिहार ने भी इस मुद्दे को उठाया था. आरती ने उस दिन कार्यक्रम में जिस नाटक में हिस्सा लिया था, वह बंदियों के अपमानजनक और उदासी भरी जिंदगी का आईना था.

एक बड़े सभागार में आरती समेत करीब 40 बंदी तिहाड़ से आये थे और उन्हें जेल कर्मचारियों के साथ बिठाया गया था. इस मौके पर कई बंदियों के रिश्तेदार भी उनसे मिलने आए थे. यह एक यादगार मुलाकात थी. यह सभी बंदी इस शाम को शायद जिंदगी भर याद रखेंगे. हो सकता है आयोजकों को इस कार्यक्रम से कुछ आर्थिक लाभ भी मिले हों, कुछ को शायद भविष् में जेलों से कोई बड़ा काम भी मिल जाये लेकिन उस शाम जेल की गाड़ी में बैठकर जो बंदी खाली हाथ आए थे, वे खाली हाथ ही लौट गए. मंच पर हुए बड़े उत्सव की समाप्ति उस दिन सूरज ढलने के साथ ही हो गई.  

जेलों के इसी कड़वे सच को बदलने की मुहिम जारी है. वह सुबह यकीनन जरूर आएगी 

2 comments:

Unknown said...

It's indeed sad news that there are people like Aarti who are forced to stay in jails, separated from their family. The poem written by Aarti is nice and from the poem we feel that she has an optimistic approach towards life, a feeling that one day her wounds are going to heal. It is wonderful from the part of Vartika Mam that she is able to provide hope to many women like Aarti and bring out the creativity in them. Hats off to Vartika Mam for her dedication and hard work for prison reformation. #tinkatinka #prisonreforms #humanrights

Ananya said...

Dr. Vartika Nanda is doing phenomenal work in prison reforms. She has written three books Tinka Tinka Tihar, Tinka Tinka Madhya Pradesh, Tinka Dasna, and gives a true representation of life inside prisons. Instead of sensationalizing, she has written about the true and lived experiences of inmates and even their children who unfortunately are also lodged inside prisons. She brings a softer side to inmates who are troubled because they can’t meet their families, but even the smallest of things gives them joy like music, dancing, painting, etc. Her newest initiative is opening a prison radio in Haryana, she has earlier done so in Agra. Workshops were held to train inmates and to develop their talents and creativity. The work of Dr. Vartika Nanda, the founder of the movement of prison reforms in India, is a testament to the idea that rehabilitation and not punishment is the answer. The radio will also keep the inmates informed about their rights and will give them respite in these challenging times of the pandemic when the inmates cannot have any visitors.#tinkatinka #tinkamodelofprisonreforms #vartikananda #prisonreforms