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Dec 15, 2018

अब जिंदगी जीती दिख रहीं राजस्थान की जेलें...

राजस्थान की सेंट्रल जेल 40.76 वर्ग एकड़ में फैली है. इस जेल में करीब 40 बैरक हैं. इस समय बन्दियों की संख्या 2000 है जबकि क्षमता 1673 है.

दिल्ली स्थित धौला कुंआ में सुबह की बस लेने के लिए बिना किसी बुकिंग के बस अड्डे पहुंची तो वहां तैनात दिल्ली पुलिस के दो सिपाहियों ने बताया कि चूंकि किसी वीआईपी को वहां से गुजरना है, इसलिए बसों की सेवा अगले एक घंटे तक चालू नहीं होगी. मैं बेबस महसूस करती हूं. बेहद गंदे बस अड्डे पर खड़े उस एक-डेढ़ घंटे में वीआईपी मूवमेंट और पुलिस विभाग के इस सरकारी दुरूपयोग के बीच मैं अपने मकसद पर बार-बार सोचती हूं. मुझे वाकया याद आता है. किसी ने फोन कर इच्छा जताई थी कि वो मेरे साथ एक बार जेल देखने  जाना चाहता है. एक ऐसी बात जिससे मुझे बेहद कोफ्त होती है, क्योंकि जेल कतई कोई पर्यटन स्थल नहीं है. मैं समझाती हूं. वह अडिग रहता है. मैं कहती हूं मैं कल जा रही हूं. वह इच्छा दोहराता है. वह पूछता है- कैसे. मैं कहती हूं- बस से. उसे अच्छा नहीं लगता. मैं जोड़ती हूं कि अपने पैसों से टिकट लेकर. बात वहीं टूट जाती है. अपने पैसे से शायद कोई जेल काम के लिए यात्रा तो क्या, कुछ मिनट की शक्ति भी लगाना नहीं चाहता.

खैर, बस आती है और एक थकाऊ, शोर भरी यात्रा मेरे सामने है पर मकसद के सामने यह तकलीफ बेहद छोटी है. बस स्टाप पर उतरते ही सीधे मुख्यालय जाना है और उसके बाद जेल क्योंकि जेल के बंद होने का समय हो रहा है. यहां अपनी सुविधाएं और इत्मिनान कोई मायने नहीं रखतीं. यह जेल का दरवाजा है. लकड़ी का बना हुआ है. जेल 1874 में बनी. तब से लेकर अब तक वही है. आने और जाने वाले बदलते रहे, लेकिन जेल वह तस्वीर ऐसे ही बनी रही.

जयपुर जेल के कलाकार बंदियों के साथ वर्तिका नन्दा

यह राजस्थान की सेंट्रल जेल है. 40.76 वर्ग एकड़ में फैली इस जेल में करीब 40 बैरक हैं. इस समय बन्दियों की संख्या 2000 है जबकि क्षमता 1673 है. 24 बन्दी फांसी की सजा में हैं और 551 सिद्धोष आजीवन कारावास पर हैं. विचारधीन बन्दी करीब 1500 हैं. फांसी घर में आखिरी फांसी 1995 में हुई थी. उसके बाद किसी को फांसी तो नहीं दी गई, लेकिन उस दौर को याद दिलाता फांसी घर आज भी मौजूद है. रियासती शासन के हटने के बाद 1956 से लेकर आज तक करीब 40 जेल अधीक्षक नियुक्त किये जा चुके हैं.

जेल पार करते ही एक बड़ा कमरा है. इन दीवारों पर बंदियों की बनाई गई बड़ी-बड़ी तस्वीरें हैं. जेल की लाइब्रेरी में करीब 4900 किताबें हैं. इनमें 1500 किताबे वे भी हैं जिन्हें हाल ही में मुंबई की एक संस्था ने दान में दी हैं. ज्यादातर किताबें हिन्दी साहित्य की है लेकिन कुछ किताबें अंग्रेज़ी में भी हैं. जेल में बंधन में सृजन नाम से एक शाला भी है. इस समय इस कमरे में 5 बन्दी अपने सपनों में रंग भर रहे हैं.

जेल की इस रंगशाला में अचानक मेरी मुलाकात 2 ऐसे बंदियों से होती है, जिन्हें 2015 में तिनका तिनका इंडिया अवार्ड दिया गया था. ये हैं- राधा मोहन कुमावत और देव किशन. दोनों पेंटिंग करते हैं. आजीवन कारावास पर हैं. इनके साथ महावीर प्रसाद और नूर इस्लाम- यह दो कलाकार भी हैं. नूर इस्लाम की खासियत यह है कि वो मलमल के कपड़े पर सिल्क के धागे से तस्वीर बनाता है. बहुत ही महीन काम. मैंने नूर की तरफ देखा उसकी थकी आँखे आंसुओ से भरी हुई लगती थीं वो एकदम चुप था. मैंने पूछा- नूर, पिछली बार तुम कब मुस्कुराये थे. नूर के पास इसका कोई जवाब नही था.

हाल के दिनों में शायद कोई महिला अधिकारी जेल में आईं थीं. वो 25 तस्वीरों को खरीदने का आर्डर देकर गईं. नूर इस्लाम ने रात दिन मेहनत करके उन तस्वीरों को बनाया. जेल अधिकारियों ने उनका फ्रेम बनवाया लेकिन बनने के बाद वो महिला उन तस्वीरों को लेने नही आई. सभी 25 तस्वीरें आज भी वहीं धरी पड़ी हैं और नूर इस्लाम का भरोसा भी. लेकिन जेलों में टूटते भरोसों की परवाह ही कौन करता है. इन चारों कलाकारों के साथ मेरी बातचीत बहुत ही रोचक रही. सबके पास अपने-अपने अनुभव थे. हम लोगों ने कुछ चीज़ें तय कीं और मुझे लगा कि शायद इस जेल में जो संभावनाएं हैं, यह उसकी शुरुआत का एक जरूरी कदम है. चारों बंदी चलते हुए मेरे साथ गेट तक आए.

इस पूरी जेल में जगह-जगह पर मोर दिखते हैं और बंदर भी. बंदर अपनी शरारत के साथ जेल को अपनी अठखेलियों से भरता है, और मोर अपनी लचक, अपनी नजाकत, अपनी खूबसूरती से नीरस पड़ी हुई जेल में रंग भरने की कोशिश-सी करता हुआ दिखाई देता है. जेल की पीली दीवारें और उनके ऊपर राजस्थानी शैली में की गयी पेंटिंग बार-बार यह याद दिलाती है कि यह राजस्थान है.

जेल के अंदर ही एक छोटा-सा अस्पताल भी है और एक और अलग वार्ड है जिसमें कुछ आतंकवादी बंद हैं. वे अपना ज्यादातर समय पढ़ने में बिताते हैं. यह कहे बिना बात पूरी नहीं होगी कि जेलों का संस्कार असर में जेलर, सुप्रिटेंडेंट और जेल के आला अधिकारी के स्वभाव की छाया होता है. इन्हें जानना-समझना हो तो उनके इलाके की जेल को देख लीजिए। खाका सामने होगा. देश में ऐसी जेलों की कोई कमी नहीं जहां महानिदेशक या जेल मंत्री अपनी जेलों को झांक कर देखना तक पसंद नहीं करते. तब जेलें अपनी मौत रोज मरती हैं लेकिन जहां ऐसा नहीं होता, वहां जेलों में जिंदगी के पन्ने बने-लिखे जाने लगते हैं. राजस्थान की जेलें भी अब जिंदगी जीती दिख रही हैं और इसके हकदार जितने यहां के बंदी हैं, उनसे ज्यादा जेल का स्टाफ और आला अधिकारी जिन्होंने बंदियों के अंदर के इंसान को पहचानने-तराशने की कोशिश की है.

हालांकि खबरों की दुनिया में जेलों की पहचान उनकी सीखचों से होती है या उनके फांसी घर से, लेकिन जेलें इससे कहीं परे हैं. यह दुखद ही है कि जेल को असल में इन पर्यायों से भर दिया गया है, लेकिन जेलों में जो रोशनियां सकती हैं और जिन्हें आना चाहिए, उन पर काम कम हुआ है. ऐसा लगता है अब उसकी शुरुआत होने लगी है. फिलहाल उम्मीद कम है लेकिन शायद एक तिनका कोशिश कभी राजस्थान से भी होगी.

Courtesy- Zee News

http://zeenews.india.com/hindi/special/rajasthan-jail-and-his-prison-blog-by-vartika-nanda/471238

4 comments:

Unknown said...

Anyone who will know the cause of your initiative will definitely feel the vibe that how much unaware he/she was before. Actually the problem lies with us. We never discuss them publicly,we don't have guts to talk about it. And we blame prisoners that they lack guts,
Because they have done different crimes. The reality of jails and inmates is being shown in the books Tinka Tinka Tihar and Tinka tinka dasna written by Vartika Ma'am. Although we must know, what it's like being an inmate. Thank you and congratulations ma'am for being such an inspiration. #Vartikananda #prisoners #human_rights #humanity #change #tinkatinka #Vartikananda

Unknown said...

Generally when people think about prisons, a negative image is formed in their mind. They think of it as a place meant for offenders. Vartika Mam through her writings has managed to change that negative image. I liked the way in which Mam has described the jail. It is sad that there are talented people like Noor, who go unnoticed only because they are in jail. It is wonderful from the part of Vartika Mam that she is able to bring hope in the lives of people like Mr Radha Mohan and Mr Dev Kishan. I hope she is able to overcome all the hurdles and continue her activities in the future. #tinkatinka #prisonreforms #humanrights

Unknown said...

When we think of prison we think of a dark and lonely place where capital punishment is executed but there is more to a prison, prison is the place of change for inmates like Manoj Jha, prison is the place where Lord Krishna was born, prison is not just a place of punishment it is so much more than that, it's a place of self discovery. #vartikananda #tinkatinka #jail #prison

Ananya said...

Dr. Vartika Nanda is working tremendously hard to spread the movement for prison reforms in India. She has written three books Tinka Tinka Tihar, Tinka Tinka Madhya Pradesh, Tinka Dasna, and gives a true representation of life inside prisons. In her books, instead of sensationalizing, Dr. Vartika Nanda sensitizes readers to the harsh realities of prisons. She is shattering the dehumanized and barbaric image of those incarcerated. Through her work, she is showing that inmates are humans with talent, aspirations, and a will to improve themselves. Her newest initiative is opening a prison radio in Haryana, she has earlier done so in Agra. Workshops were held to train inmates and to develop their talents and creativity. The work of Dr. Vartika Nanda, the founder of the movement of prison reforms in India, is a testament to the idea that rehabilitation and not punishment is the answer. The radio will also keep the inmates informed about their rights and will give them respite in these challenging times of the pandemic when the inmates cannot have any visitors.#tinkatinka #tinkamodelofprisonreforms #vartikananda #prisonreforms