Promo of Episode 16:
Apr 26, 2022
Delhi Police: Podcasts: Kissa Khaki Ka: Episode 16
Delhi Police: Podcasts: Kissa Khaki Ka: Episode 15
Promo of Episode 15:
Apr 23, 2022
Reports of Guest Lectures
Apr 17, 2022
Podcast on stories of struggle, love and success: 'Thee. Hoon .. Rahungi…' by Vartika Nanda: थी.हूं..रहूंगी...
Vartika Nanda starts a new podcast on stories of struggle, love and success: 'Thee. Hoon .. Rahungi…'
A podcast titled - Thee. Hoon..Rahungi…(I was, I am, I will
be) based on real life stories of struggle, love and success has been
launched by prison reformer and media educator, Dr. Vartika Nanda.
Thee. Hoon..Rahungi… was the title of the book written by
Vartika Nanda. It was published by Rajkamal Prakashan in 2012 This
anthology was highly appreciated among readers and literary critics. The
book was also awarded 'Rituraj Parampara Samman' and 'Dr.
Radhakrishnan Award'.
Ten years later, a new series of stories with the same title will commence narrating the tales of life. All the stories will be based on true events.
Tinka Tinka Jail Radio and Kissa Khaki Ka
Two podcasts started by Vartika Nanda have been in the news
for quite some time now. 'Tinka Tinka Jail Radio' is the first such
podcast based on jails,which narrates and documents stories from prisons
to the outside world. This is the only podcast in India that is dedicated to
real stories from prisons. This is among the several initiatives of Tinka Tinka
movement launched by Dr. Vartika Nanda. Tinka's Prison Radio Podcast series is
available on all major streaming platforms, including YouTube, Spotify and
Google Podcasts and has opened new avenues for the inmates in showcasing their
creative talent to the world at large.
The second podcast, Kissa Khaki Ka, is a joint creation of Delhi Police and Vartika Nanda, describing the tales of police officials who are going the extra mile beyond their call of duty to contribute to the society. These are stories of crime, investigation and humanity. This is an initiative by Shri Rakesh Asthana, Delhi Police Commissioner, released every Sunday at 2 pm on the official social media platforms of Delhi Police.
Duration
'Thee. Hoon.. Rahungi…' will be aired on YouTube channel 'Vartika Nanda' with mini-podcast episodes of about 3 minutes each.
Tinka Jail Radio Podcast
The flagship podcast series conceived and hosted by Dr.
Vartika Nanda, founder of Tinka Tinka Foundation, has been dedicated to prison
voices especially in Uttar Pradesh and Haryana.
The podcast series, consisting of 35 episodes, has been appreciated by the jail staff and the common audience alike for providing jail inmates a platform to feature as RJs and singers on social media platforms.
About Tinka Tinka Foundation and Dr. Vartika Nanda
Haryana Jail Radio is the brainchild of Dr. Vartika Nanda,
founder of Tinka Tinka Foundation. Dr. Nanda heads the Department of
Journalism at Lady Shri Ram College, University of Delhi. She has been
honored with the Stree Shakti Award from the President of India in 2014.
Her work on prisons has twice found a place in the Limca Book of Records.
Previously, the Foundation had started Jail Radio in District Jail, Agra in 2019. The growth of prison radios in Haryana are part of an ongoing study on the Tinka Tinka Model of Prison Reforms. They have created an umbrella with the tagline- Creating rainbows in prisons. Every year, the Tinka Tinka Foundation also encourages inmates and jail staff by conferring exclusive Tinka Tinka India Awards.
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2022: 17 अप्रैल: एक कविता संग्रह के तौर पर थी.हूं..रहूंगी...2012 में राजकमल ने प्रकाशित की। किताब खूब चर्चित हुई। आज 2022 में, ठीक 10 साल बाद, थी.हूं..रहूंगी...एक नए रूप में आपके सामने है। कवर में दिखतीं अपनी ओढ़नी से सिसकियों को सोख चुकी यह औरतें समय का सच हैं। तिनका तिनका बरसों से अपराध के अलग-अलग रंगों को करीब से देख रहा है। अब यह रंग एक नए आकार में आवाज में तब्दील होने जा रहे हैं।
थी. हूं..रहूंगी...में हर बार सुनिए जिंदगी के सच को कहती कोई नई कहानी- मेरे -यानी वर्तिका नन्दा के साथ।
आपकी जिंदगी की कोई कहानी हो और आप चाहें कि मैं उन्हें कहूं, तो बताइएगा।
Link: थी. हूं..रहूंगी..Podcast। Vartika Nanda। वर्तिका नन्दा - YouTube
Apr 13, 2022
April 10, 2022
Tinka Jail Radio: Navratri prayers in
Kurukshetra Jail
15 inmates gathered in a room on the ninth day of
Navratri to offer prayers on Ram Navami through hymns and a traditional 'Mata
ki Chowki'. The divine echo enchanted the rest of the inmates too who were
prompted to request that the devotional rhythm be played repeatedly. It is all
to Tinka Jail Radio's credit that a new flame of righteousness and devotion has
sparked among the inmates encouraging them to become better human beings.
History of Kurukshetra Jail
Spread over 15 acres of land, District Jail,
Kurukshetra, was inaugurated in the year 1995 by the then Jail Minister of
Haryana. At present, there are nearly 670 male inmates and 32 female inmates
lodged in this jail.
Kurukshetra Jail Radio
The mission to bring jail radio to Haryana's jails
commenced in the year 2020. The first jail radio was established in Panipat in
2021. For the last few months, the work of bringing jail radio to Kurukshetra
Jail has also begun for which 10 men and 2 women inmates have been
selected as radio jockeys.
Kurukshetra's Jail Radio is going to start its operations very soon. Considering the historicity of Kurukshetra, programmes are also being prepared on the discourses related to Gita and Mahabharata.
Tinka Tinka Foundation and Vartika Nanda
Prison
Radio in Haryana is conceptualised and executed by Dr. Vartika Nanda, Founder,
Tinka Tinka Foundation and head of Department of Journalism in Lady Shri Ram
College, Delhi University.
Link: Ep 37: Tinka Jail
Radio: Ramnavami in Kurukshetra Jail Radio। तिनका जेल रेडियो - YouTube
Apr 12, 2022
Delhi Police: Podcasts: Kissa Khaki Ka: Episode 14
Promo of Episode 14:
Apr 3, 2022
दैनिक ट्रिब्यून का पहला पन्ना, 30 साल का सफर और तिनका तिनका
1992 से 2022
अप्रैल 3, 2022
सितारों भरा आसमान को 1992 में दैनिक ट्रिब्यून और हिमाचल प्रदेश सरकार की पहली कहानी प्रतियोगिता में पहली जगह मिली थी। समारोह के कुछ दिन बाद अखबार के संपादक श्री विजय सहगल ने मुझे कहा था कि मैं पत्रकारिता की विधिवत पढ़ाई करुं और दिल्ली जाऊं। IIMC के बारे में उन्होंने ही बताया। फार्म भरनें मे सिर्फ दो दिन बचे थे। फार्म भरा। परीक्षा में अव्वल रही। अंबाला और चंडीगढ़ से भौतिक नाता छूटा पर दिल का एक टुकड़ा हमेशा वहीं बसा रहा।
आज ठीक 30 साल बाद दैनिक ट्रिब्यून के संपादक श्री नरेश कौशल ने नवरात्र पर मुख पृष्ठ पर बेहद महत्वपूर्ण जगह देकर मेरे मन को कृतज्ञता से भर दिया है। एक कोने में 1992 की तस्वीर है, दूसरी तरफ 2022।
जिस दिन अंबाला से दिल्ली आई थी, मुट्ठी में संकल्प भरे थे। कुछ संकल्प पूरे कर सकी हूं। तिनका तिनका का जन्म उन्हीं संकल्पों का नतीजा है। मेरा जीवन समाज के उन हिस्सों के लिए हमेशा रहेगा जहां रौशनी नहीं है। यह मेरा यज्ञ है। मेरी प्रार्थना।
खामोश आकाश को वाणी देतीं वर्तिका
निस्संदेह,
नवरात्र नारी-शक्ति को
प्रतिष्ठित करने का पर्व
है। इसके आध्यात्मिक-सामाजिक
निहितार्थ यही हैं कि
हम अपने आस-पास
रहने वाली उन बेटियों
के संघर्ष का सम्मानपूर्वक स्मरण
करें जिन्होंने अथक प्रयासों से
समाज में विशिष्ट जगह
बनायी। साथ ही वे
समाज में दूसरी बेटियों
के लिये प्रेरणास्रोत भी
बनीं। दैनिक ट्रिब्यून ने इसी कड़ी
में उन देवियों के
असाधारण कार्यों को अपने पाठकों
तक पहुंचाने का एक विनम्र
प्रयास किया है, जो
सुर्खियों में न आ
सकीं। उनका योगदान उन
तमाम बेटियों के लिये प्रेरणादायक
होगा जो अनेक मुश्किलों
के बीच अपना आकाश
तलाशने में जुटी हैं।
‘कर्मठ
कन्याएं’ के इस कॉलम
में प्रेरणा की एक आहूति
डालते हुए मेरे जेहन
में चलती है एक
फ्लैशबैक... घटनाक्रम है 1992 में मार्च महीने
का। दैनिक ट्रिब्यून के संपादक विजय
सहगल के कमरे में
एक छरहरे बदन की रबड़
की गुड़िया सी लड़की प्रवेश
करती है। अभिवादन के
उसके तौर-तरीके में
गजब का सलीका है।
कोकिला स्वर की धनी
आगंतुक कन्या बोलती है, 'सर, मैं
वर्तिका नंदा।' संपादक महोदय खुशी में मानो
बल्लियों उछल पड़ते हैं,
'नरेश यही है वर्तिका
नंदा, जिसने दैनिक ट्रिब्यून की कथा प्रतियोगिता
में प्रथम पुरस्कार जीता।' इसके साथ ही
संपादक जी से मेरी
नियमित रिपोर्टिंग की बैठक मानो
एक जश्न में बदल
जाती है।
शिमला
के गेयटी थियेटर में 15 मार्च को नवोदित कथाकार
वर्तिका नंदा ने 'द
ट्रिब्यून' के तत्कालीन प्रधान
संपादक वीएन नारायणन और
हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री शांता
कुमार से पुरस्कार प्राप्त
करने से पूर्व अपनी
कहानी 'सितारों भरा आसमां' पर
चर्चा की। वह बोलती
गईं, 'मेरे बहुत सारे
सपने थे, आसमान को
देखना मुझे बहुत अच्छा
लगता था... बचपन में मैं
आकाश देखती तो सोचती थी
कि प्रकृति ने आकाश और
सितारों को जोड़कर बहुत
बड़ा काम किया है...।'
वर्तिका
की सितार की झंकार भरी
आवाज आज जेल की
बड़ी-बड़ी दीवारों को
ध्वस्त कर रही हैं।
समाज से तिरस्कृत, उपेक्षित
और निष्ठुर माने जाने वाले
कैदियों के लिए वह
संवेदनाओं का संबल बनकर
उभरी हैं। 'तिनका-तिनका' चुनकर मानवीयता के ऐसे घोंसले
बना रही हैं जिनमें
से प्रेरणा और नवजीवन की
आशाओं के गीत उसी
आकाश की बुलंदियां छू
रहे हैं और वह
स्वयं उसी आकाश में
सितारे-सी चमक रही
हैं जिसका सपना उन्होंने दैनिक
ट्रिब्यून की उस पुरस्कृत
रचना 'सितारों भरा आसमां' में
देखा था। तो आइये
वर्तिका से यह जानने
का प्रयास करते हैं कि
लिम्का बुक से लेकर
राष्ट्रपति भवन तक की
बुलंदियां छूने के लिए
उसने प्रेरणा के ऐसे कौन
से पंख लगा रखे
हैं।
नयी
दिल्ली के लेडी श्रीराम
कॉलेज में जर्नलिज्म डिपार्टमेंट
की चेयरपर्सन डॉ. वर्तिका नंदा
आज किसी पहचान की
मोहताज नहीं हैं। जेलों
में सुधार के कार्यों में
जुटी डॉ. नंदा की
बदौलत ही हरियाणा, उत्तराखंड
और उत्तर प्रदेश की जेलों की
खामोशियों को आवाज़ मिली
है। ऊंची और मजबूत
दीवारों से अब संगीत
फूटता है। तिनका-तिनका
फाउंडेशन के बैनर तले
वे इन राज्यों की
कई जेलों में पॉडकास्ट यानी
'तिनका-तिनका' रेडियो की शुरुआत कर
चुकी हैं।
भागदौड़
भरी इस जिंदगी में
किसी के पास दो
पल की फुर्सत नहीं,
लेकिन डॉ. वर्तिका नंदा
न केवल जेलों को
वक्त देती हैं, बल्कि
कैदियों व बंदियों के
जीवन में बदलाव भी
ला रही हैं। उनका
जेलों और कैदियों के
प्रति नज़रिया भी तब बदला,
जब उन्होंने जेलों में पत्रिकारिता की
शुरुआत की।
अध्यापन
से पहले मीडिया में
रह चुकीं वर्तिका की पहचान अब
जेल सुधारक, लेखिका और मीडिया शिक्षक
के रूप में होती
है। पंजाब में जन्मीं डॉ.
नंदा अपराध पत्रकारिता को लेकर लीक
से हटकर काम करती
हैं।
वह बताती हैं कि जेलों
में रेडियो की शुरुआत उन्होंने
सबसे पहले 2019 में देश की
सबसे पुरानी जेल इमारत यानी
आगरा की जिला जेल
से की। वर्ष 2021 में
हरियाणा और उत्तराखंड की
जेलों में रेडियो लाने
का श्रेय भी उन्हीं को
जाता है। उनके इन
प्रयासों से जेलों की
जिंदगी में महत्वपूर्ण बदलाव
आए हैं। 'तिनका-तिनका' जेलों और समाज के
बीच संवाद का पुल बन
रहा है। 2020 में आईसीएसएसआर की
इम्प्रेस स्कीम, मानव संसाधन विकास
मंत्रालय के लिए भारतीय
जेलों में संचार की
जरूरतों पर एक कार्योन्मुखी
शोध पूरा किया, जिसे
उत्कृष्ट मानते हुए प्रकाशन के
लिए प्रस्तावित किया गया।
जेलों
में शुरू किए रेडियो
की कमान उन्होंने कैदियों
को ही सौंपी हुई
है। खुद भी रेडियो
जॉकी की भूमिका में
रहती हैं। वह आगे
कहती हैं कि जेलों
में रेडियो की शुरुआत चुनौतियों
भरी डगर थी, लेकिन
वे जेल प्रशासन की
मदद से 'पुल' बनाने
में कामयाब रहीं। उनके खुद के
शब्दों- 'जेलों के अंदर ठिठके
पल बाहर नहीं आते,
बाहर की रोशनी अंदर
नहीं जाती। मुझे एक पुल
बनाना है, यह मेरी
जिद है', से भी
स्पष्ट है कि जेलों
में कदम रखते ही
उन्हें चुनौतियों और मुश्किलों का
आभास हो गया था।
वे कहती हैं कि
जेलों में सुधार में
सामाजिक स्तर पर किसी
तरह का सहयोग नहीं
मिलता। लोग न तो
समय निकालते हैं ओर न
ही किसी तरह का
काम करना चाहते हैं।
इसी वजह से उन्होंने
इसका नाम 'तिनका-तिनका'
रखा।
डॉ.
वर्तिका नंदा ने पहला
कविता संग्रह 2012 में और 'रानियां
सब जानती हैं' नामक पुस्तक
2015 में, लिखी, जबकि पुस्तक 'मरजानी'
का विमोचन बर्मिंघम में आयोजित हिंदी
सम्मेलन में हुआ। इसके
अतिरिक्त वह 'नये समय
में अपराध पत्रकारिता', 'मीडिया, लॉज एंड एथिक्स',
'मीडिया और बाजार', 'रेडियो
जर्नलिज्म इन इंडिया', 'खबर
यहां भी' तथा 'मीडिया
और जनसंवाद' जैसी कई पुस्तकें
भी लिख चुकी हैं।
कई पुरस्कारों से नवाजी गयी
वर्तिका को अल्फा पब्लिकेशंस
ने 108 नामी पत्रकारों के
एन्साइक्लोपीडिया में भी शामिल
किया।
उसकी
आवाज भले रेशम के
रेशों-सी है, मगर
जब बोलती है तो समझ
में आता है कि
उसमें जेलों की कठोर सलाखों
को पिघलाने की जिद है
और जुनून भी है। वह
कहती हैं कि कैदी
व बंदी कितने ही
खूंखार क्यों ना हों, उनकी
नज़र में वे 'इंद्रधुनष'
के रंगों जैसे हैं। क्राइम
किसी भी स्थिति-परिस्थिति
या वजहों से किया हो।
ऐसे लोगों को भी समाज
की मुख्यधारा से जोड़ने की
एक कोशिश है उसकी। हम
जानते हैं कि सुप्रीम
कोर्ट, मानवाधिकार आयोग से लेकर
सरकारें भी इसके प्रति
गंभीर हैं। ऐसे तमाम
प्रयासों और कोशिशों के
बीच यह आवाज ऐसी
है जो कैदियों के
दिल की गहराइयों में
खोई आवाज और उनके
मर्म को समझती है।
खामोशियों को आवाज देने
वाली ऐसी शख्सियत से
पीढ़ी दर पीढ़ी हमारी
बच्चियां प्रेरणा ले सकती हैं।
जेलों
में रेडियो की शुरुआत
महिला
होने के बावजूद वर्तिका
ने खौफ देती जेलों
के अंदर जाकर बंदियों
में बदलाव के लिए काम
किया। तिनका-तिनका के तहत वे
देश की अलग-अलग
जेलों को मीडिया से
जोड़ कर नये प्रयोग
कर रही हैं। मीडिया
शिक्षण, मीडिया लेखन और पत्रकारिता
के जरिये अपराध, जेल और मानवाधिकार
पर उनका जोर है।
उनके रेडियो को अब यूट्यूब
पर तिनका-तिनका जेल रेडियो के
नाम से प्रसारित किया
जाता है।
जब राष्ट्रपति ने बढ़ाया 'मान'
: तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी द्वारा डॉ. वर्तिका नंदा
को 'स्त्री शक्ति पुरस्कार' से नवाज़ा गया।
वर्तिका को यह पुरस्कार
मीडिया और साहित्य के
जरिये महिला अपराधों के प्रति जागरूकता
लाने के लिए दिया
गया। 2018 में सुप्रीम कोर्ट
में जस्टिस एमबी लोकूर और
जस्टिस दीपक गुप्ता की
बेंच ने जेलों में
महिलाओं और बच्चों की
स्थिति की आकलन प्रक्रिया
में उन्हें शामिल किया।
Source: नरेश कौशल (दैनिक ट्रिब्यून)