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WEEKLY REPORT: Introduction to Journalism: 2025

Jul 9, 2008

बस यूं ही

पानी बरसता है बाहर
अंदर सूखा लगता है
बाहर सूखा
तो अंदर भीगा
हवा चलती है
मन चंचल
कुछ ज्यादा बेचैन हो उठता है।
सियासत होती है
अंदर बगावत हो जाती है
दिक्कत फितरत में है
या बाहर ही कुछ चटक गया है।
(2)
रब से जब भी मिलने गए
हाथ जोड़े
फरमाइश की फेहरिस्त थमा दी
कुछ यूं जैसे
आटे चावल की लिस्ट हो।

मोल भाव भी किया वैसे ही
कि पहली नहीं है
तो दूसरी ही दे दो
नहीं तो तीसरी।
जो दो रहे हो, वो जरा अतिरिक्त देना
और मुझसे लेने के वक्त रखना एहतियात।

रब के यहां डिस्काउंट नहीं लगता
नहीं मिलती सेल की खबर
पर जमीन के दुकानदार तब भी कर ही डालते हैं
अपनी दुकानदारी।

1 comment:

Advocate Rashmi saurana said...

bhut sundar rachana. likhati rhe.