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Citizen Journalism

Mar 2, 2009

संतरी

संतरी बाक्स से झांकते संतरी ने
पांच साल में देख लिया है पूरा जीवन
सत्ता में आने के बाद की ढोलक की थाप
दीवालियों, होलियों, ईदों पर तोहफों की बारात
नए साल पर दूर तक फैली गुलाबों की खुशबुएं
हवा में नहाई आती वो युवतियां
रेशम-रेशम हुए जाते अफसरान
और भी पता नहीं क्या कुछ।

इस बार चुनाव में हार गए मंत्रीजी
उस पसरे सन्नाटे में
संतरी के चौबीसों घंटे खड़े रहने वाले पांव
भीगी रूई से हो गए
न कारों का काफिला
न वो फलों के टोकरे
न बच्चों की गूंज
न मैडम की हंसी

उस शाम पहली बार संतरी और मंत्री की नजरें मिलीं
मंत्री ने देखा
खाली मैदान में
आज एक वही था
जो अब भी था खड़ा
वैसा ही
मंत्री ने पूछा उसका नाम
उसके गांव की ली सुध
आज मंत्री को संतरी का चेहरा बड़ा भला लगा
उसकी खिड़की में आज एक सहज शाम
खुद चली आई थी
संतरी के लिए इतना ही काफी था।

3 comments:

अनिल कान्त said...

बहुत ही मार्मिक पोस्ट .....बहुत अच्छा लिखा गया है

मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति

महेन्द्र मिश्र said...

संतरी और मंत्री दोनों पे उम्दा सटीक रचना . वर्तिका जी अच्छी कविता लगी . धन्यवाद.

Unknown said...

अच्छा लिखा है । लिखती रहिये । शुभवर्तमान