लो मर गई मरजानी
तब भी चैन नहीं
देह से झांक कर देख रही है तमाशा
कुनबुना रहे हैं पति
बेवजह छूट गया दफ्तर सोमवार के दिन ही
बच्चों की छटपटाहट
काश मरतीं कल शाम ही
नहीं करनी पड़ती तैयारी टेस्ट की
अब कौन लाए फूलों की माला इस तपती धूप में
नई चादर
कौन करे फोन
कि आओ मरजानी पड़ी है यहां
देख जाओ जाने से पहले कि
तुम्हें पता लगेगा नहीं
वो मरी कि मारी गई
मरजानी जानती है
नौकरानी को नहीं मिल रहा
हल्दी का पैकेट
पति को अपनी बनियान
बेटे को अपनी छिपाई सीडी
कैसे बताए मरजानी
अलमारी के किन कोनों में
सरकी पड़ी हैं चीजें
मरजानी तो अभी है
पुराने कफन में
कि मौत से पहले
गर तैयार कर लिया होता बाकी का सामान भी खुद ही
तो न होता किसी का सोमवार बेकार
कौन जाने
आसान नहीं होता मरजानी होना
चुपके से मरना
हौले-हौले मरना
दब-दब कर मरना
और मरना
ये मरना सोमवार को कहां हुआ
मरना तो कब से रोज होता रहा
मरजानी को खबर थी
घर की दीवारों को
रंगों को
चिटकनियों को
बर्तनों को
गीले तकियों को
बस उसे ही खबर नहीं थी
जिसका हो गया सोमवार बेकार
9 comments:
उफ़ दिल छू गई सच्चाई , आज के भौतिक युग में शायद यही होना है रिश्तों के बीच इतनी खाई आ गई है की लोगो का मरना भी वीकेंड का इंतज़ार करेगा
बेशक मरजानी की तकलीफ़ पर पैनी निगाह डाली है आपने। किसी स्त्री के मुर्दा होने के पीछे का सच... जिसे हम देख कर भी अनमना बने रहते हैं। ये पड़ताल जारी रखिए... शुभकामना!!
मरजानी तो अभी है
पुराने कफन में
कि मौत से पहले
गर तैयार कर लिया होता बाकी का सामान भी खुद ही
तो न होता किसी का सोमवार बेकार
उफ़!!! कितनी एक जैसी व्यथा है सबकी.... रोमांच हो आया मुझे तो..एक-एक शब्द भीतर तक उतरता चला गया..
bahut hi sundar abhivyakti bhavuk kar dene wali...
http://dilkikalam-dileep.blogspot.com/
मरी नहीं मारी गई ...
ये हमारी विडम्बना है की आज भी मरजानी मारी जा रही है .. और हम उसका मरना देख रहे हैं ..
बहुत अच्छी रचना !
कौन जाने
आसान नहीं होता मरजानी होना
चुपके से मरना
हौले-हौले मरना
दब-दब कर मरना
और मरना
ये मरना सोमवार को कहां हुआ
मरना तो कब से रोज होता रहा
मरजानी को खबर थी
Maut hi es sansar ka shaswat satya hai......
samvedan se bhari katu satya ka maarmik chitran.....
Aapko haardik shubhkamyen
कौन जाने
आसान नहीं होता मरजानी होना
चुपके से मरना
हौले-हौले मरना
दब-दब कर मरना
और मरना
ये मरना सोमवार को कहां हुआ
मरना तो कब से रोज होता रहा
मरजानी को खबर थी
Maut hi es sansar ka shaswat satya hai......
samvedan se bhari katu satya ka maarmik chitran.....
Aapko haardik shubhkamyen
बस उसे ही खबर नहीं थी
जिसका हो गया सोमवार बेकार
इस हकीकत ने रौंगटे खडे दिये मगर सच को आईना दिखाती इस रचना के लिये मेरे पास शब्द कम पड रहे हैं।हर शब्द रूह की गहराइयों मे उतर गया।
vertica aapka lekhan bahut hi sahaj ..aas pas ki cheejo ko leker anayas prasfutit huahai ..aapki ye shally samanya vishay ko uch shkertak lejakerbahut gehre samvedansheel kstro mein manviyata ko aisai chatpatahat de jati hai ki firwah sayad sachet hojker hi vyavharkertahai ki sayad mere bare mein bhi koi aisa na sochle kuch apne mein sudhar keru
wah kya padhneke baad mujhme abhi tak baj raha hai mein uski khoj mein laga hun
aap bahut hi acha lekhan ker rehi hai aadhunki kavya mein aapka sthan avshyahi vasistyata dharan kerega .......
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