बचपन में
बत्ती चले जाने में भी
गजब का सुख था
हम चारपाई पे बैठे तारे गिनते
एक कोने से उस कोने तक
जहां तक फैल जाती नजर
हर बार गिनती गड़बड़ा जाती
हर बार विशवास गहरा जाता
अगली बार होगी सही गिनती
बत्ती का न होना
सपनों के लहलहा उठने का समय होता
सपने उछल-मचल आते
बड़े होंगे तो जाने क्या-क्या न करेंगें
बत्ती के गुल होते ही
जुगनू बनाने लगते अपना घेरा
उनकी सरगम सुख भर देती
पापा कहते भर लो जुगनू हथेली में
अम्मा हंस के पूछती
कौन-सी पढ़ी नई कविता
पास से आती घास की खुशबू में
कभी पूस की रात का ख्याल आता
कभी गौरा का
तभी बत्ती आ जाती
उसका आना भी उत्सव बनता
अम्मा कहती
होती है जिंदगी भी ऐसी ही
कभी रौशन, कभी अंधेरी
सच में बत्ती का जाना
खुले आसमान में देता था जो संवाद
उसे वो रातें ही समझ सकती हैं
जब होती थी बत्ती गुल।
10 comments:
बत्तियाँ अभी भी आती जाती हैं
रातें अभी भी हैं, तारे आसमान भी हैं
हमीं बदल गए हैं।
तभी बत्ती आ जाती
उसका आना भी उत्सव बनता
अम्मा कहती
होती है जिंदगी भी ऐसी ही
कभी रौशन, कभी अंधेरी
सच में बत्ती का जाना
खुले आसमान में देता था जो संवाद
उसे वो रातें ही समझ सकती हैं
bahut sunder rachna...achhi parstuti ..bachpan ke is pal ko maine bhi jiya hai..mai samajh sakta hun in bhavo ko...
बत्ती के गुल होते ही
जुगनू बनाने लगते अपना घेरा
उनकी सरगम सुख भर देती
पापा कहते भर लो जुगनू हथेली में
आज वही जुगनू ही तो हथेली से निकल कर कविता की शक्ल ले रहे हैं
शानदार रचना
बचपन की बातों में ले जाकर सार्थक बात कह दी आपने इस रचना में।
सुंदर कविता
bahut khoob....
होती है जिंदगी भी ऐसी ही
कभी रौशन, कभी अंधेरी
अम्मा कितना सच कहती थी।
आपकी सरल सी रचना बहुत पसंद आई।
wow !!!!!!!!!
तभी बत्ती आ जाती
उसका आना भी उत्सव बनता
अम्मा कहती
होती है जिंदगी भी ऐसी ही
कभी रौशन, कभी अंधेरी
सच में बत्ती का जाना
खुले आसमान में देता था जो संवाद
उसे वो रातें ही समझ सकती हैं
जब होती थी बत्ती गुल।
achi rachna he
shekhar kumawat
http://kavyawani.blogspot.com/
बती आज भी जाती है, तारे अब भी चमकते हैं, पर बचपन .........
have no more words. Thanks for reminding those wonderful days.
Ajay Joshi
तभी बत्ती आ जाती
उसका आना भी उत्सव बनता
अम्मा कहती
होती है जिंदगी भी ऐसी ही
कभी रौशन, कभी अंधेरी
सच में बत्ती का जाना
खुले आसमान में देता था जो संवाद
उसे वो रातें ही समझ सकती हैं
जब होती थी बत्ती गुल।
बचपन की यादों को बहुत खूबसूरती के साथ बांधा है आपने शब्दों में---बेहतरीन कविता।
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