Sep 10, 2008

यूं ही

रंग की मानिंद घुलते
रेत की मानिंद फैलते
पेड़ की मानिंद झूमते
और इंसान की मानिंद भटकते रहने में
असीम सुख है
बशर्ते भटकन
किसी छोर से मिलन कराती हो।

2 comments:

sanjay kumar said...

vartika ji,
milan me hi aasal sukh hai

विजेंद्र एस विज said...

बेहद खूबसूरत खयाल लगे..अच्छा लिखतीं हैं आप..