Sep 16, 2008

एक था चंचल

चंचल -
यही नाम था उसका
जब दिल्ली में बम फटा तो
उसने अपने कंधों को खून भरे कराहते लोगों को
उठाने में लगा दिया
बाहें उस लड़की को बचाने को मचल उठीं
जो अभी-अभी हरी चूड़ियां खरीद कर
दुकान से बाहर आई थी।

चंचल भागा
एक-एक को उठा सरकारी अस्पताल की तरफ।

वो हांफ गया।

पत्नी का फोन आया इस बीच -
कि ठीक तो हो
वो बोला - हां आज जी रहा हूं
दूसरों को बचाते हुए
सुनाई दे रही है
जिंदगी की धड़कन
इसलिए बात न करो
बस, जज्बातों के लिए बहने दो।

वो खुद खून से लथपथ था।

तभी कैमरे आए
पुलिस भी।

सायरनों के बीच
कोई लपका
चंचल को उठाने
वो बदहवास जो दिखता था!

लेकिन वो बोला- वो ठीक है
जिंदगी अभी उसके करीब है।

चंचल कुछ घंटे यही करता रहा
उसके पास उसके कंधे थे
और अपना हाथ था जगन्नाथ

एक कैमरे ने खींची उसकी तस्वीर(और छापी भी अगले दिन)
लेकिन चंचल रहा बेपरवाह।

जब उसके हिस्से का काम खत्म हुआ
वो चल निकला।

अब उसने वो खाली-बिखरी जगह
मीडिया, पुलिस और नेताओं के लिए छोड़ दी।

15 comments:

वर्षा said...

अच्छी कविता, अंत ख़ासतौर पर

वर्षा said...

आपने अपना प्रोफाइल ऐसे बनाया है कि कोई और आपके बारे में बता रहा है। ब्लॉग तो आपका है।

वर्षा said...

आपने अपना प्रोफाइल ऐसे बनाया है कि कोई और आपके बारे में बता रहा है। ब्लॉग तो आपका है।

संदीप said...

अच्‍छी तरह व्‍यक्‍त की हैं अपनी भावनाएं...

मणेन्द्र कुमार मिश्रा "मशाल" said...

aap jaise logo me bhi itni samvednaye hai ,yah jaan kar aacha laga.tv media ke logo dvara samachar bechane ki kala dekhkar dukh hota hai.

मणेन्द्र कुमार मिश्रा "मशाल" said...

aap log bhi chanchal ke bare me sochte hai,yah jaankar aacha laga. nahi to aaj kal news bechne se chutti hi kaha milti hai..

Unknown said...

bahut accha laga padh k

Udan Tashtari said...

झंकझोर देने वाली रचना!!!

PREETI BARTHWAL said...

इस दर्दनाक दिन में बहुतों की खुशियां छीन ली

Arvind said...

कविता बहुत अच्छी है. आंखे भर आइ. ऐसे ही लिखते रहिये
- Arvind Khare

Arvind said...

कविता बहुत अच्छी है. आंखे भर आइ. ऐसे ही लिखते रहिये
- Arvind Khare

Arvind said...

कविता बहुत अच्छी है. आंखे भर आइ. ऐसे ही लिखते रहिये

Arvind Khare

Arvind said...

कविता बहुत अच्छी है. आंखे भर आइ. ऐसे ही लिखते रहिये

Arvind Khare

मीत said...

मार्मिक रचना!
ऐसे कितने ही चंचल उस विस्फोट के धुएँ में खो गए...
जरी रहे...
इतनी मार्मिक रचना के लिए आभार...

Parvesh K Chauhan said...

vartika ji mai apki rachnao ka fan hu.....