जो दिखता है वो होता नहीं
जो होता है, वो होता है और कहीं
परियों की कहानियों
यादों के संदूकों में बंद
कहीं छिपा
शहर ही की तरह होता है दिल
बड़ा भी, उतना ही कभी तंगदिल भी
मकबरे की तरह शिथिल भी
उत्सव की तरह खिल-खिल भी
किताब में जिस पत्ते को 1980 में सहेज रख छोड़ा था
उस दिन की याद में
वैसा ही गुमसुम भी
झुरझुरी की तरह निजी भी
उस बाल की तरह जिसकी सफेदी
अभी कालेपन के नीचे दबी है
पर वो भी है एक सच
चलो, इस सड़क को जरा खींच लिया जाए
बना दिया जाए यहां एक बांध
खोल दिया जाए तितलियों से भरा एक झोला
इत्र की बोतलों की कई सुरमई खुशियां
बस, बात सिर्फ इतनी थी
खुशबुओं की तैराई समझने के लिए
मूंदो तो पलकें पल भर को
रोको सांसें
जिंदगी खुद ही सरक आएगी
आंचल के छोर में बंधने
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शहर ही की तरह होता है दिल
बड़ा भी, उतना ही कभी तंगदिल भी
दिल तो दिल्लगी करता है
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