भारत में प्रेस की आजादी की कमी की दुहाई देने वालों ने शायद फ्रांस से आई एक खास खबर न पढ़ी हो। फ्रांस के राष्ट्रपति निकोलस सरकोजी मीडिया में दखल देते रहने की अपनी आदत की वजह से हमेशा से ही विवादों में रहे हैं। हाल ही में आई खबर के मुताबिक सरकोजी ने वहां के प्रसिद्ध समाचार पत्र ली मौंड की बिक्री में जोरदार दखलअंदाजी की। इससे पहले सरकोजी ने फ्रांस के स्थानीय रेडियो के दो व्यंगयकारों – स्टीफेन गुईलॉन और दिदिर पोर्ट – की टिप्पणियों को अपमानजनक और अश्लील बताया था। सरकोजी के इस बयान के कुछ ही दिनों बाद इन दोनों व्यंग्यकारों को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा था।
यह स्थितियां ठीक उस समय बनी हैं जबकि फ्रांस अभी अपने यहां के तीनों सरकारी टीवी चैनलों के प्रमुख के चुनाव को लेकर सरकोजी की बाट जोह रहा है। सरकोजी ने कुछ साल पहले यह कानून बनवा दिया था कि राष्ट्रपति को सरकारी चैनल के अध्यक्ष को चुनने का पूरा अधिकार होगा। एजेंसी फ्रांस प्रेस पहले ही सरकारी मदद से एक पब्लिक फर्म बनने की घोषणा कर चुकी है जिससे कि उसकी आजादी पर भी शंकाएं बनने लगी हैं। एजेंसी फ्रांस प्रेस दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी न्यूज एजेंसी है। इसके किसी भी तरह से सरकारी नियंत्रण में आने से खबरों के निर्बाध प्रवाह पर असर पड़ने की पूरी आशंका है।
इन सभी घटनाक्रमों को अगर आपस में मिला दें तो साफ तौर पर लगता है कि इटली की ही तर्ज पर फ्रांस में चौथे स्तंभ का बर्लुस्कोनाइजेशन शुरू हो चुका है। इटली के प्रधानमंत्री सिलवियो बर्लुस्कोनी इटली के तीन सबसे बड़े निजी टीवी चैनलों के मालिक हैं। इसके अलावा इटली के सरकारी टीवी पर तो उनका पूरा कब्जा है ही जो कि पिछले 30 सालों से बरकरार है। विश्लेषकों का मानना है कि धीरे-धीरे ऐसा करते हुए वे इटली के 90 प्रतिशत मीडिया पर अपना वर्चस्व कायम कर चुके हैं।
तो बात सरकोजी की हो रही थी। फ्रांस के मीडिया पर सरकोजी का दबाव इस कदर बढ़ चुका है कि अप्रैल में फ्रांस की एक पत्रिका ने अपने कवर पर सरकोजी के चित्र के साथ कैप्शन दिया – निकोलस सरकोजी, फ्रांस के टीवी चैनलों के अध्यक्ष।
दरअसल सरकोजी की यह दखलअंदाजी उनके राष्ट्रपति बनने से पहले से ही बनी रही है। 2005में जब वे फ्रांस सरकार में मंत्री थे तो उन्होंनें पेरिस मैच नामक पत्रिका के संपादक को मालिक के जरिए उनकी नौकरी से निकलवा दिया था। इसकी वजह यह थी कि पेरिस मैच ने उनकी तत्कालीन पत्नी सीसिलिया की अपने प्रेमी के साथ तस्वीरें पहले पन्ने पर छाप दी थीं।
सरकोजी भले ही बर्लुस्कोनी की तरह टीवी चैनलों के मालिक नहीं बन पाए हैं लेकिन इससे मीडिया पर उनका दबदबा कम नहीं हो जाता। फ्रांस के दो-तिहाई पत्र-पत्रिकाओं के मालिक –सर्ज देसाल्ट और अर्नार्ड लगारदे उनके बेहद करीबी दोस्त हैं। ये दोनों फ्रांस के प्रमुख हथियार निर्माता भी हैं। जाहिर है कि वे वही गाना गाते हैं जो सरकोजी चाहते हैं।
इस पृष्ठभूमि में भारत में इस बात पर सुकून तो किया ही जा सकता है कि हमारे यहां स्थितियां अब भी काफी बेहतर हैं। लेकिन यह भी सच है कि अगर सतर्कता नहीं बरती गई तो फ्रांस और इटली को भारत में होने में भी ज्यादा देरी नहीं लगेगी। पेड न्यूज, एडवरटोरियल और सरकारी विज्ञापनों के लुभावने लॉलीपॉप के बहाने यह शुरूआत तो बहुत पहले ही हो चुकी है। अब खबर यह भी है कि देश के अब तक के सबसे बड़े खेल आयोजन कॉमन वेल्थ गेम्स की रिपोर्टिंग को अपने हक में लाने के लिए लॉबिंग करने का मैदान भी तैयार किया जा रहा है।
गेंद अभी तो पाले में है लेकिन पाले में ही बनी रहे, यह काम अपने में किसी टेढ़ी खीर से कम नहीं।
(यह लेख 2 अगस्त, 2010 को दैनिक भास्कर में प्रकाशित हुआ)
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