शादी के विरोध के नाम पर गला काट देना, जला देना, किसी भी तरह से बस हिंसक हो उठना - यह सब जब होता है तो भारत के सभ्य समाज में उसे ऑनर किलिंग कहा जाता है। त्रासदी यहीं से शुरू होती है।
बीचे कुछ महीने इन्हीं शर्मनाक हत्याओं के गवाह बने। जगह-जगह की खप पंचायतों ने अपने फरमान जारी किए और नतीजा रहीं- जघन्य हत्याएं। यह हत्याएं होती तो पहले भी थीं लेकिन तब इन्हें उछाल कर बाहर खींच लाने वाला सजग मीडिया नहीं था। अब कैमरे हैं, कलम है, तस्वीरें हैं और क्रूरता से भरे चेहरों को तुंरत घर बैठे बार-बार देखते रहने की सुविधा है।
दरअसल यह सारा मामला सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक और शैक्षिक पृष्ठभूमि से जुड़ा हुआ है। इन सबकी इसमें गहरी भूमिका है। अगर समाज सेहतमंद-तरक्कीपसंद रहे तो आपसी मर्जी से की गई या की जाने वाली शादी कुछ बहसों के बाद ही शांत हो जाए। अगर आर्थिक आजादी का माहौल और मजबूती हो तो प्रेमी जोड़ों की निर्भरता का स्तर घटने से भी शादियां सहज हो जाएं क्योंकि सफल आदमी सिर्फ सफल होता है। सफल आदमी के निजी मसलों को लेकर समाज की भाषा ही कुछ और हो जाती है। उसके फैसले सराहे जाते हैं। उस मामले में समाज उसे उसे उदारवादी-धर्मनिरपेक्ष सरीखी कोई बड़ी पदवी दे देता है। धार्मिक इसलिए कि दुहाई हमेशा धर्म और रूढियों की ही दी जाती है और उसके जोर पर अ-धर्म कर दिए जाते हैं। पंडितों-मुल्लाओं से सिर खपाने वालों को खुद ही कई बार पूरी बातों का इल्म नहीं होता और इसी का फायदा कथित धर्म रक्षक उठा जाते हैं। वे उन पोथियों का हवाला देते हैं जिनकी गलियों में ज्यादातर लोग झांकते भी नहीं। इसलिए कठमुल्लाओं की बातें सर-आंखों पर बैठा दी जाती हैं। शैक्षिक इसलिए कि फरमान-आदेश जारी करने वाले अगर खुले दिमागों वाले हों तो मुद्दों के फंदों को भी खुले आसमान के नीचे मजे से सुलझा लिया जाए। वहां तर्क और बदलाव का कद बड़ा होता है। पर ऐसा हो नहीं पा रहा। पंजाब, हरियाणा, बिहार और राजस्थान इस बार खप की वजह से सुर्खियों में रहे। विश्वास करना मुश्किल था कि यह वही पंजाब है जिसने हरित क्रांति का बिगुल बजाया था, वही हरियाणा है जहां दूध की नदियां बही थीं, वही बिहार है जहां 15 साल बाद अब विकास के ग्राफ के ऊपर चढ़ने के सबूत दिए जा रहे हैं और वही राजस्थान है जहां अतिथि देवो भव की सम्मानित परंपरा रही है।
पाकिस्तान की करो-करी की बरसों पुरानी कुरीति उत्तरी भारत में जड़ें जमाने लगी है। सरकारें इस बार भी हाथ मल कर देख रही हैं। इसलिए हालात में बदलाव लाने के लिए मीडिया और सिनेमा आगे आया है।
खबर है कि प्रियदर्शन गोत्र हत्याओं पर एक फिल्म पर जोरों से काम कर रहे हैं। बिहार की पृष्ठभूमि में बन रही इस फिल्म में अजय देवगन, अक्षय खन्ना और बिपाशा बसु होंगें। हसरतें और अस्तित्व जैसे कई टीवी धारावाहिकों के निर्माता रहे अजय सिंहा अब एक फिल्म बनाने जा रहे हैं जिसका नाम होगा- खप- ए स्टोरी आफ ऑनर किलिंग। इस फिल्म में ओम पुरी, गोविंद नामदेव और युविका चौधरी होंगी। 1988 में जख्मी औरत बना चुके अवतार भोगल भी इसी तर्ज पर एक फिल्म बनाने में जुटे हैं। इससे पहले दिबाकर बैनर्जी की फिल्म लव, सेक्स और धोखा में भी इस मसले को छुआ गया था।
लगता यही है कि अगर मीडिया और सिनेमा पूरी एकजुटता दिखाए तो आनर किलिंग का आनर जाते ज्यादा देर लगेगी नहीं। इस परेशानी का जवाब फिलहाल मीडिया से ही निकलता दिखाई देता है।
1 comment:
सच कहा है आपने मीडिया और सिनेमा अगर एकजुट हो जाय तो इस समस्या का कुछ तो हल निकलेगा ही।--इसी विषय पर अभी कथा क्रम के संपादक शैलेन्द्र सागर जी ने भी अपना संपादकीय लिखा था।----पर मुझे लगता है कि सिर्फ़ इतने से ही बात नहीं बनने बनने वाली है--इसके विरोध में एक आन्दोलन चलाना होगा--जनता को जागरूक करना होगा तभी शायद कुछ हो सके।
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